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क्या है डिटेंशन सेंटर का सच? आजतक की ग्राउंड रिपोर्ट में मिले जवाब

असम के गोवालपारा जिले के मटिया में पहले डिटेंशन सेंटर का निर्माण कार्य चल रहा है. यहां बाकायदा इसका बोर्ड भी लगा हुआ. इस सेंटर का करीब 65 फीसदी हिस्सा अब तक बनकर तैयार हो चुका है.

असम में डिटेंशन सेंटर का निर्माण (फोटो-Tapas Bairy) असम में डिटेंशन सेंटर का निर्माण (फोटो-Tapas Bairy)
मनोज्ञा लोइवाल
  • गोवालपारा,
  • 25 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 2:07 PM IST

  • असम के गोवालपारा के मटिया में पहले डिटेंशन सेंटर का निर्माण
  • दिसंबर 2018 से चल रहा है डिटेंशन सेंटर के निर्माण का काम

देश में इन दिनों नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के साथ ही डिटेंशन सेंटर पर बहस छिड़ी हुई है. कहा जा रहा है कि घुसपैठियों की पहचान करने के बाद डिटेंशन सेंटर में उन्हें रखा जाएगा. लेकिन इसके बाद सवाल सामने आता है कि आखिर ये डिटेंशन सेंटर कहां हैं, कैसे हैं, कौन उसमें रहता है? इन्हीं सवालों का जवाब जानने के लिए आजतक की टीम ग्राउंड जीरो पर पहुंची.

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नागरिकता कानून और एनआरसी पर संसद से सड़क तक संग्राम छिड़ा है. हंगामा, जुबानी जंग के साथ ही सरकार के विरोध में नारेबाजी देखने को मिल रही है. विपक्ष भी हमलावर है और आरोपों के गोले केंद्र सरकार पर लगातार दाग रहा है. तो वहीं सरकार इस मामले में बचाव का कोई भी तरीका छोड़ नहीं रही है. एनआरसी से घुसपैठियों की पहचान करने के बाद उन्हें डिटेंशन सेंटर में भेजे जाने की बात सामने आने के बाद सरकार ने दावा किया कि देश में कोई डिटेंशन सेंटर नहीं है. लेकिन आजतक की ग्राउंड रिपोर्ट में कुछ और ही सच सामने आया है.

कहां बन रहा है डिटेंशन सेंटर?

असम के गोवालपारा जिले के मटिया में पहले डिटेंशन सेंटर (हिरासत केंद्र) का निर्माण कार्य चल रहा है. यहां बाकायदा इसका बोर्ड भी लगा हुआ. इस सेंटर का करीब 65% हिस्सा अब तक बनकर तैयार हो चुका है. मटिया में आबादी से दूर ढाई हेक्टेयर में बन रहे डिटेंशन सेंटर का काम दिसंबर 2018 से चल रहा है. इसे दिसंबर 2019 तक बन जाना था लेकिन अब बारिश और बाढ़ के कारण इसमें देरी हो गई.

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असम में डिटेंशन सेंटर का निर्माण (फोटो-Tapas Bairy)

कितनी इमारतों का हो रहा है निर्माण

इसको लेकर ठेकेदार चंदन कलिता का कहना है कि बारिश के कारण डिटेंशन सेंटर बनने में देरी हुई है. बारिश के चलते इमारत निर्माण के लिए जरूरी मैटेरियल ले जाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. वहीं आजतक की ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आया कि मटिया डिटेंशन सेंटर में चार-चार मंजिलों वाली 15 इमारतें बन रही हैं. इनमें 13 इमारतें पुरुषों और 2 महिलाओं के लिए बन रही है. इस कैंपस में स्कूल और अस्पताल भी बन रहा है ताकि नागरिकता साबित न करने वालों को मूलभूत सुविधाएं मिल सकें.

असम में डिटेंशन सेंटर का निर्माण (फोटो-Tapas Bairy)

कितना आएगा खर्च?

बता दें कि असम में डिटेंशन सेंटर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद तैयार हो रहा है. मटिया में डिटेंशन सेंटर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स के मुताबिक बन रहा है. मटिया डिटेंशन सेंटर को 46 करोड़ रुपए के खर्च पर बनाया जा रहा है. इसमें 3000 घुसपैठियों या विदेशी नागरिकों को रखा जा सकेगा. हालांकि डिटेंशन सेंटर में कौन रहेगा, इसका फैसला एनआरसी के बाद ही हो पाएगा. जिसे लेकर अभी से सियासी घमासान छिड़ा है.

असम में डिटेंशन सेंटर का निर्माण (फोटो-Tapas Bairy)

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क्या पहले भी मौजूद थे डिटेंशन सेंटर?

वहीं ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आया कि असम में पहले से कई डिटेंशन सेंटर मौजूद हैं. आजतक की टीम उन लोगों से मिली जो इन डिटेंशन सेंटर में सालों बीता चुके हैं. डिटेंशन सेंटर से लौटे शख्स सुधन सरकार ने बताया, 'जिस जगह मुझे लेकर गए थे वो जगह नरक थी. इंसानों की तरह वहां सलूक नहीं किया गया था. साढ़े तीन साल मैं वहीं था. बिल्कुल पागल सा हो गया था. बाहर कहीं जा नहीं सकते थे. क्या करें, क्या न करें...परिवार की कोई खबर नहीं मिल पाती थी.'

दरअसल, असम के मटिया में पहला डिटेंशन सेंटर तैयार हो ही रहा है. लेकिन यहां के कई जिलों में मौजूदा जेल को भी डिटेंशन सेंटर के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है. सूत्रों के मुताबिक असम में डिब्रूगढ़, सिलचर, तेजपुर, जोरहाट, कोकराझार और गोवालपारा में जेलों को ही डिटेंशन सेंटर बनाया गया है.

असम में डिटेंशन सेंटर का निर्माण (फोटो-Tapas Bairy)

कब बनाया जेलों को डिटेंशन सेंटर?

जेलों को डिटेंशन सेंटर बनाने का फैसला 2009 में कांग्रेस सरकार ने लिया था. उस वक्त केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी. पी चिंदबरम गृह मंत्री थे और राज्य की कमान तरूण गोगोई के हाथ में थी. उस वक्त की सरकार ने घुसपैठियों की लिस्ट को लेकर कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था. घुसपैठिए गायब न हो जाए इस वजह से इन्हें डिटेंशन सेंटर में रखा गया था.

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क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े?

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक असम में 1985 से लेकर इस साल अक्टूबर तक एक लाख 29 हजार लोगों को विदेशी घोषित किया गया है लेकिन इनमें करीब 72 हजार लोगों का कोई पता-ठिकाना नहीं है. जबकि असम एनआरसी की लिस्ट से 19 लाख लोगों को बाहर रखा गया है.

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