
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में हरियाणा के चरखी दादरी में चुनावी सभा में वादा किया कि नदियों का जो पानी भारत का है और पाकिस्तान जा रहा है, उसे रोक कर रुख जल्दी ही हरियाणा और राजस्थान की ओर किया जाएगा. जिससे वहां खेती में लाभ मिल सके.
मोदी ने कहा, '70 सालों से जिस पानी पर भारत और हरियाणा के किसानों का हक़ है, पाकिस्तान में बह रहा है. मोदी इस पानी को (पाकिस्तान में बहने से) रोकेगा और आपके घरों तक लाएगा.'
ये पहली बार नहीं है जब प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान की तरफ बहने वाले पानी को रोकने की बात कही है. उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान 8 मई 2019 को कुरुक्षेत्र में भी ऐसा ही बयान दिया. 2016 में भी उन्होंने दो बार मिलते जुलते बयान दिए.
दिल्ली में 26 सितंबर 2016 को और फिर बठिंडा, पंजाब में 25 नवंबर 2016 को. दिल्ली में पीएम मोदी ने कहा था, खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते. तब मोदी उरी में सेना के कैम्प पर आतंकी हमले की घटना के बाद बोल रहे थे.
ये पुराना मुद्दा है और पीएम मोदी और उनकी पार्टी के नेताओं की ओर ओर से कई मौकों पर दोहराया जाता रहा है. इंडिया टुडे ने सूचना के अधिकार (RTI) के तहत जल शक्ति मंत्रालय में याचिका दाखिल कर ये जानना चाहा कि भारत सरकार ने पाकिस्तान को जाने वाले पानी को रोकने के लिए क्या अब तक कोई कदम उठाया, अगर उठाया तो वो क्या था?
बता दें कि नदियों के पानी का जिम्मा जल शक्ति मंत्रालय पर ही है. यही मंत्रालय पानी को रोकने या उसका रुख मोड़ने संबंधी फैसला कर सकता है.
RTI के जरिए हमने इन सवालों के जवाब जानने चाहे-
1. क्या भारत सरकार की ओर से ब्यास, रावी और सतलुज नदियों से पाकिस्तान को पानी रोकने का फैसला लिया जा चुका है?
2. अगर हां, तो ये फैसला कब लिया गया?
3. भारत सरकार ने इन तीन पूर्वी नदियों के पानी के पूरे हिस्से के इस्तेमाल के लिए क्या कदम उठाया है?
4. अभी इन तीन नदियों से कितने पानी का भारत में इस्तेमाल हो रहा है और कितना पाकिस्तान जा रहा है?
5. भारत इन तीन नदियों का पानी पाकिस्तान जाने से पूरी तरह रोकने की स्थिति में कब होगा?
6. पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर कितना खर्च आएगा?
इन सवालों के जवाब में हमें बताया गया, 'इस संदर्भ में, ये उल्लेखित है कि सिंधु जल संधि (1960) के तहत भारत को पूर्वी नदियों (सतलुज, रावी और ब्यास) का पानी 33 मिलियन एकड़ फीट (MAF) के औसत सालाना बहाव के साथ आवंटित है. भारत की ओर से पूर्वी नदियों के पानी के अधिकतम इस्तेमाल के लिए स्टोरेज, डायवर्जन और इंटरलिंकिंग जैसे कई प्रोजेक्ट्स का निर्माण किया गया है.
जैसे कि भाखड़ा बांध, पोंग बांध, रंजीत सागर बांध (थीन बांध), ब्यास-सतलुज लिंक प्रोजेक्ट, माधोपुर-ब्यास लिंक प्रोजेक्ट आदि. हालांकि पानी का कुछ हिस्सा अब भी, खास तौर पर मानसून में, पाकिस्तान की ओर बहता है. पूर्वी नदियों के पानी के अधिकतम इस्तेमाल के लिए कई और प्रोजेक्ट या तो लागू होने या निरूपित होने के विभिन्न स्तरों पर हैं जैसे कि शाहपुरकंडी बांध प्रोजेक्ट, उझ बहुउद्देश्यीय प्रोजेक्ट, दूसरा रावी-ब्यास लिंक प्रोजेक्ट. इन तीन प्रोजेक्टों को राष्ट्रीय प्रोजेक्ट घोषित किया गया है और ये भारत सरकार से वित्तीय सहायता पाने के हक़दार होंगे.'
मंत्रालय की ओर से हमारे किसी भी सवाल का स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया, इसके लिए अपील दाखिल की गई. अपील के जवाब में बताया गया-
1. सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर के साथ ही भारत सरकार की ओर से स्टोरेज, डायवर्जन और इंटरलिंकिंग जैसे कई प्रोजेक्ट्स पर काम किया गया है. जैसे कि भाखड़ा बांध, पोंग बांध, रंजीत सागर बांध (थीन बांध), ब्यास-सतलुज लिंक प्रोजेक्ट, माधोपुर-ब्यास लिंक प्रोजेक्ट आदि. भारत की ओर से इनका निर्माण पूर्वी नदियों के पानी के अधिकतम इस्तेमाल के लिए किया गया.
2. इनके अलावा भारत सरकार पूर्वी नदियों के पानी के अधिकतम हिस्से के इस्तेमाल के लिए पूर्वी नदियों पर कई और प्रोजेक्ट बना रही है जैसे कि शाहपुरकंडी बांध प्रोजेक्ट, उझ बहुउद्देश्यीय प्रोजेक्ट, दूसरा रावी-ब्यास लिंक प्रोजेक्ट. ये प्रोजेक्ट या तो लागू होने या निरूपित होने के विभिन्न स्तरों पर हैं
हमारी अपील के बावजूद हमने मूल RTI में जो सवाल पूछे थे, उनमें किसी का भी कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला.
हमारी समझ के हिसाब से जल शक्ति मंत्रालय ने जो भी जवाब दिए वो ना सिर्फ अस्पष्ट बल्कि धुंधले थे.