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करुणानिधि: 14 की उम्र में छोड़ी पढ़ाई, अभी तक नहीं हारे हैं चुनाव

तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (DMK) प्रमुख एम. करुणानिधि की तबीयत बिगड़ गई है. 94 वर्षीय करुणानिधि का इलाज चेन्नई स्थित उनके आवास पर ही चल रहा है.

एम. करुणानिधि (तस्वीर- getty images) एम. करुणानिधि (तस्वीर- getty images)
अजीत तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 27 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 8:41 AM IST

दक्षिण भारत की राजनीति में एक अलग मुकाम बनाने वाले द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के प्रमुख एम. करुणानिधि का स्वास्थ्य खराब है. करुणानिधि चेन्नई के कावेरी अस्पताल के आईसीयू में भर्ती हैं. वहीं अस्पताल के बाहर समर्थकों की भारी भीड़ जुटी हुई है, जिस वजह से सुरक्षा बढ़ा दी गई है. 

दरअसल बीते 3 जून को करुणानिधि ने अपना 94वां जन्मदिन मनाया है. ठीक 50 साल पहले 26 जुलाई को ही उन्होंने डीएमके की कमान अपने हाथ में ली थी. लंबे समय तक करुणानिधि के नाम हर चुनाव में अपनी सीट न हारने का रिकॉर्ड भी रहा. वो पांच बार मुख्यमंत्री और 12 बार विधानसभा सदस्य रहे हैं. अभी तक वह जिस भी सीट पर चुनाव लड़े हैं, उन्होंने हमेशा जीत दर्ज की है. करुणानिधि ने 1969 में पहली बार राज्य के सीएम का पद संभाला था, इसके बाद 2003 में आखिरी बार मुख्यमंत्री बने थे.

बीमार पत्नी को छोड़ की थी पार्टी की बैठक

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एम करुणानिधि डीएमके के प्रति अपनी वफादारी के लिए जाने जाते हैं. एक वाक्या है जो उनकी पार्टी के प्रति वफादारी को उचित ठहराता है. दरअसल, करुणानिधि के जीवन में एक समय ऐसा भी आया, जब उनकी पहली पत्नी पद्मावती मृत्युशैया पर थीं, लेकिन वो इनके पास ठहरने के बजाय पार्टी की बैठक के लिए चले गए थे. उनके इस कदम ने पार्टी कार्यकर्ताओं में उन्हें काफी लोकप्रिय बना दिया था और पार्टी में उनका कद काफी बढ़ गया था.

म्यूज़ियम में बदला घर

एक सफल लेखक, कवि, विचारक और वक्ता कलैगनार एम. करुणानिधि भारत के वरिष्ठतम नेताओं में से एक हैं. करुणानिधि वृद्धावस्था संबंधी बीमारियों की वजह से लगभग एक साल से सक्रिय राजनीति से दूर हैं. उनका बचपन का नाम दक्षिणमूर्ति था. 1924 में थिरुक्कुवालाई गांव में जन्में करुणानिधि के घर को म्यूज़ियम में बदल दिया गया है. इसी घर में उनका जन्म हुआ था. यहां पोप से लेकर इंदिरा गांधी तक के साथ उनकी तस्वीरें लगी हैं.

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14 साल की उम्र में थामा राजनीति का दामन

महज 14 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ करुणानिधि सियासी सफल पर निकल पड़े. दक्षिण भारत में हिंदी विरोध पर मुखर होते हुए करुणानिधि 'हिंदी-हटाओ आंदोलन' की तख्ती लेकर चल पड़े. 1937 में स्कूलों में हिन्दी को अनिवार्य करने पर बड़ी संख्या में युवाओं ने विरोध किया, करुणानिधि भी उनमें से एक थे. इसके बाद उन्होंने तमिल भाषा को अपना हथियार बनाया और तमिल में ही नाटक, अखबार और फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिखने लगे.

उनकी बेहतरीन भाषण शैली को देखकर पेरियार और अन्नादुराई ने उन्हें 'कुदियारासु' का संपादक बना दिया. हालांकि, पेरियार और अन्नादुराई के बीच पैदा हुआ मतभेद और उसके बाद दोनों के अलग होने पर वो अन्नादुराई के साथ जुड़ गए. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1957 में हुए चुनाव में वो पहली बार विधायक बने. इस दौरान उनके अलावा पार्टी से 12 अन्य लोग भी विधायक बने थे. करुणानिधि ने राजनीति के क्षेत्र में जमकर पसीना बहाया और 1967 के चुनावों में पार्टी ने बहुमत हासिल किया और अन्नादुराई तमिलनाडु के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने. डीएमके के सत्ता में आने के बाद तमिलनाडु में कांग्रेस की हालत ऐसी हुई कि आज तक वहां सहयोगी के रूप में ही बनी हुई है.

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पांच बार बने मुख्यमंत्री

1957 में जब करुणानिधि पहली बार विधायक बने तो केंद्र में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जवाहरलाल नेहरू विराजमान थे. करुणानिध जब पहली बार सीएम बने तो देश की पीएम की कुर्सी पर इंदिरा गांधी विराजमान थीं. गौर हो कि आपातकाल के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने वाले आयोग की सिफारिशों के आधार पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने करुणानिधि की सरकार को बर्खास्त कर दिया था. इसके बाद करुणानिधि तीसरी बार सीएम बने. उस वक्त राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे. चौथी बार सीएम बने तो पीवी नरसिम्हा राव पीएम थे और पांचवी बार सीएम बने तो मनमोहन सिंह पीएम थे.

..जब डीएमके में पड़ी फूट

तमिलनाडु की राजनीति में एक मोड़ ऐसा भी आया जब डीएमके में फूट पड़ी और वो एक से दो पार्टियों में विभाजित हो गई. इस विभाजन के बाद 1972 में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कणगम (एआईएडीएमके) का जन्म हुआ.

आगे चलकर 1999 में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए से करुणानिधि ने समझौता किया और गठबंधन में शामिल हो गए. हालांकि बाद में करुणानिधि भाजपा का दामन छोड़ कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए सरकार का हिस्सा बने. वर्तमान में उनके बेटे एमके स्टालिन तमिलनाडु की प्रमुख विपक्षी पार्टी डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष हैं.

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तीन शादियां, 4 बेटे और 2 बेटियां

करुणानिधि ने तीन शादियां की हैं. उनकी पहली पत्नी पद्मावती, दूसरी पत्नी दयालु अम्माल और तीसरी पत्नी रजति अम्माल हैं. तीन पत्नियों में से पद्‍मावती का निधन हो चुका है, जबकि दयालु और रजती जीवित हैं. उनके 4 बेटे और 2 बेटियां हैं. बेटों के नाम एमके मुथू, जिन्हें पद्मावती ने जन्म दिया था, जबकि एमके अलागिरी, एमके स्टालिन, एमके तमिलरासू और बेटी सेल्वी दयालु अम्मल की संतानें हैं. करुणानिधि की तीसरी पत्नी रजति अम्माल कनिमोझी की मां हैं.

मलेशिया में दिया था भाषण

साल 1970 में पेरिस (फ्रांस) में हुए तृतीय विश्व तमिल सम्मेलन में उन्होंने उद्‍घाटन समारोह में एक विशेष भाषण दिया था. साल 1987 में कुआलालम्पुर (मलेशिया) में हुए छठे विश्व तमिल कॉन्फ्रेंस में भी उन्होंने उद्‍घाटन भाषण दिया था. 2010 में हुई विश्व क्लासिकल तमिल कॉन्फ्रेंस का अधिकृत थीम सांग एम. करुणानिधि ने ही लिखा था, जिसकी धुन एआर रहमान ने तैयार की थी.

रामसेतु पर उठाया था सवाल

सेतुसमुद्रम विवाद के जवाब में करुणानिधि ने हिन्दुओं के आराध्य भगवान श्रीराम के वजूद पर ही सवाल उठा दिए थे. उन्होंने कहा था, 'लोग कहते हैं कि 17 लाख साल पहले कोई शख्स था, जिसका नाम राम था. कौन हैं वो राम? वो किस इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएट थे? क्या इस बात का कोई सबूत है?' उनके इस सवाल और बयान पर खासा बवाल हुआ था.

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लिट्टे का समर्थन

राजीव गांधी की हत्या की जांच करने वाले जस्टिस जैन कमीशन की अंतरिम रिपोर्ट में करुणानिधि पर लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया था. अंतरिम रिपोर्ट में इस बात की सिफारिश की थी कि राजीव गांधी के हत्यारों को बढ़ावा देने के लिए तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम.करुणानिधि और डीएमके पार्टी को जिम्मेदार माना जाए.

गिरफ्तारी भी हुई

साल 2001 में करुणानिधि, पूर्व मुख्य सचिव के. ए. नाम्बिआर और अन्य कई लोगों के एक समूह को चेन्नई में फ्लाईओवर बनाने में भष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.

वंशवाद को बढ़ावा

करुणानिधि के विरोधियों, उनकी पार्टी के कुछ सदस्यों और अन्य राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने करुणानिधि पर वंशवाद को बढ़ावा देने और नेहरू-गांधी परिवार की तरह एक राजनीतिक वंश का आरंभ करने का आरोप भी लगाए थे. हालांकि गलत काम करने का दोषी पाए जाने पर उन्होंने अपने अन्य दो बेटों एमके मुथु और एमके अलागिरी को पार्टी से भी निकाला था. इसी तरह दयानिधि मारन को भी केंद्रीय मंत्री के पद से हटा दिया था.

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