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बच्चों से पूछताछ: क्या बीदर पुलिस को 'राजद्रोह' के मायने भी पता हैं?

21 जनवरी 2020 को स्कूल में क्लास 4,5 और 6 के छात्रों ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के विरोध में एक नाटक का मंचन किया था. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) कार्यकर्ता नीलेश रक्षाला की शिकायत पर न्यू टाउन पुलिस स्टेशन ने 26 जनवरी को एफआईआर दर्ज की थी.

पुलिस के मुताबिक बच्चों से पूछताछ जांच का हिस्सा है पुलिस के मुताबिक बच्चों से पूछताछ जांच का हिस्सा है
नोलान पिंटो
  • बेंगलुरु,
  • 06 फरवरी 2020,
  • अपडेटेड 12:15 AM IST

  • बीदर पुलिस मानती है कि बच्चों से घंटों तक पूछताछ करने में कुछ गलत नहीं
  • पुलिस की कार्रवाई को लेकर बाल अधिकार ग्रुपों, शिक्षकों ने कड़ा ऐतराज जताया

कर्नाटक के बीदर के एक स्कूल में पुलिस हर दिन आती है और 9 साल तक के बच्चों से सवाल पूछती है. सवाल या पूछताछ का ये दौर कई घंटे तक चलता है. ये सब बिना किसी अभिभावक की मौजूदगी में होता है. इस दौरान पुलिस भी वर्दी में होती है. इस सबसे बच्चों के कोमल मस्तिष्क पर क्या असर होता होगा, कोई भी ये समझ सकता है. शाहीन प्राइमरी और हाईस्कूल में बीते 10 दिन से ठीक यही स्थिति बनी हुई है. 9 साल से 12 साल के बच्चों को यही सब झेलना पड़ रहा है.

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बीदर पुलिस यही मानती है कि ये सब उसकी जांच का हिस्सा है. क्योंकि राजद्रोह का केस दर्ज हुआ है इसलिए बच्चों से इस तरह पूछताछ किया जाना जायज है. बीदर के एसपी नागेश डीएल के मुताबिक पुलिस बच्चों से सवाल पूछने में तय प्रक्रिया का ही पालन कर रही है इसलिए इसमें कुछ भी गलत नहीं कर रही है.

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21 जनवरी 2020 को स्कूल में क्लास 4, 5 और 6 के छात्रों ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के विरोध में एक नाटक का मंचन किया था. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) कार्यकर्ता नीलेश रक्षाला की शिकायत पर न्यू टाउन पुलिस स्टेशन ने 26 जनवरी को एफआईआर दर्ज की थी.

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नीलेश ने स्कूल प्रबंधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'अपमान' करने के साथ ही राजद्रोह का आरोप लगाया था. पुलिस ने स्कूल प्रबंधन के खिलाफ राजद्रोह के आरोप में एफआईआर दर्ज की है. लेकिन यहां दिक्कत वाली बात ये है कि पुलिस ने इस पर मौन साध रखा है कि नाटक में क्या था जो राजद्रोह का मामला बनता है.

बता दें कि इस घटना में पुलिस की कार्रवाई को लेकर बाल अधिकार ग्रुपों, शिक्षकों और शिक्षाविदों ने कड़ा ऐतराज जताया है. 'केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य' मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फैसले में स्पष्ट है कि धारा 124ए सिर्फ का इस्तेमाल ऐसे भाषण पर ही हो सकता है जिसकी प्रवृत्ति राज्य के खिलाफ हिंसा भड़काने की है.

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एक्टिविस्ट्स का दावा है कि हिंसा का संकेत तक नहीं है जो लोगों को सरकार का तख्ता पलटने की कोशिश के लिए उकसा सके. इसलिए ये मामला धारा 124ए का नहीं बनता जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने 'केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य' मामले में सीमित किया. एक्टिविस्ट्स के मुताबिक पुलिस को नाटक को 'असहमति की राय' के तौर पर ही लेना चाहिए. ये धारा 124 ए या आईपीसी की किसी अन्य धारा के लिए फिट केस नहीं है.

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ये माना जा सकता है कि प्रधानमंत्री के खिलाफ असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया गया लेकिन ये हिंसा भड़काने वाला नहीं है. शिकायतकर्ता ने सबूत के लिए सोशल मीडिया पर नाटक का एक हिस्सा ही अपलोड किया, पूरा नाटक नहीं किया. लेकिन पुलिस सूत्रों का कहना है कि इस मामले में राजद्रोह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत मौजूद हैं.

मामला दो महिलाओं की गिरफ्तारी से और पेचीदा हो गया. इन दोनों महिलाओं को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है. इनमें से एक महिला उस बच्ची की मां है जिस बच्ची पर एक डायलाग के जरिए पीएम मोदी का 'अपमान' करने का आरोप है. दूसरी महिला हेड टीचर है जिसकी देखरेख में नाटक हुआ.

रिमांड रिपोर्ट में स्कूल प्रबंधन और दो महिलाओं पर 'CAA और NRC को लेकर झूठी सूचना फैलाने की कोशिश करने' का आरोप लगाया है. साथ ही  उन पर नाबालिग बच्चों से पीएम मोदी  के लिए 'अपमानजनक' शब्द कहलवाने का भी आरोप है. महिला कांग्रेस अध्यक्ष पुष्पा अमरनाथ ने कहा कि ये और कुछ नहीं बच्चों का उत्पीड़न है, हैरत है कि सिर्फ इसी संस्था को पुलिस क्यों निशाना बना रही है.

स्थानीय पुलिस पर दबाव बढ़ने के साथ ऐसा कहा जा रहा है कि कुछ वक्त के लिए पुलिस बच्चों से पूछताछ नहीं करेगी. बुधवार को बीदर जिला और सत्र कोर्ट ने दो महिलाओं की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई के लिए 11 फरवरी की तिथि निर्धारित की.

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