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कई राज्यों में डॉग अटैक से बच्चों की मौत, तो क्या किसी वजह से आदमखोर पशु में बदल रहे हैं कुत्ते?

देश के अलग-अलग हिस्सों से डॉग अटैक के दिल दहलाने वाले मामले आ रहे हैं. हाल में राजस्थान से लेकर हैदराबाद तक कई जगहों पर कुत्तों ने छोटे बच्चों पर हमला कर उनके चीथड़े उड़ा दिए. तो क्या धीरे-धीरे कुत्ते नरभक्षी हो रहे हैं! अचानक हिंसक हो चुके इस जानवर में क्यों आ रहा है ये बदलाव! समझें, कैसे कोई पशु नरभक्षी हो जाता है.

एकाध साल के भीतर कुत्तों के हमले की घटनाएं तेजी से बढ़ीं. सांकेतिक फोटो (Unsplash) एकाध साल के भीतर कुत्तों के हमले की घटनाएं तेजी से बढ़ीं. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 02 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 2:30 PM IST

कुछ सालों पहले मलेशिया में कुत्तों की आबादी तेजी से बढ़ रही थी. इसपर कंट्रोल के लिए वहां की सरकार ने पश्चिमी हिस्से के एक सूने द्वीप पर आवारा कुत्तों को छोड़ना शुरू कर दिया. वहां सैकड़ों की तादाद में डॉग्स तो थे, लेकिन उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था. जल्द ही वो एक-दूसरे को खाने लगे. कॉमन ये था कि मजबूत कुत्ते मिलकर कमजोर का शिकार करते. ऐसा करते हुए सैकड़ों में से कुछ ही डॉग्स बाकी रहे. 

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कॉमन है कुत्तों में ये आदत
कुत्तों में एक-दूसरे को खाने की प्रवृति बहुत रेयर नहीं. जर्नल ऑफ कंपेरेटिव साइकोलॉजी में छपी रिपोर्ट कैनिबलिज्म इन डॉग्स में बताया गया कि हर 11 में से सिर्फ 2 ही कुत्ते ऐसे होते हैं, जो दूसरे डॉग्स को खाने से बचें. इनमें से 5 डॉग्स के सामने कुत्तों का मांस परोसा जाए तो वे आराम से खा लेते हैं. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ वेटरनरी साइंस एंड मेडिसिन का भी यही कहना है कि कुत्तों में कैनिबलिज्म की आदत कोई नई नहीं. 

क्या है कैनिबलिज्म?
कैंब्रिज डिक्शनरी के अनुसार, जब इंसान ही इंसान का मांस खाने लगे तो उसे आदमखोर या कैनिबल कहते हैं. हालांकि जब कोई प्रजाति अपनी प्रजाति के पशुओं को खाने लगे तो ये भी कैनिबलिज्म के तहत ही आता है. दुनिया के कई हिस्सों में हाल तक कैनिबलिज्म एक प्रथा थी. जैसे पापुआ न्यू गिनी देश में साल 1950 तक लोग अपने मृत परिजनों का मांस खाते थे. वे इसे आत्मा की शुद्धि का तरीका मानते. बाद में इसपर पाबंदी लग गई. 

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आमतौर पर शांतिप्रिय हाथी फसलों और गांवों को तबाह कर रहे हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

क्या इंसान आदमखोर हो सकते हैं?
सामान्य हालातों में नहीं. लेकिन अपराधी मानसिकता वाले कई लोग ऐसा कर चुके हैं. वहीं एक रूसी अपराधी एंड्रेई चिकेतिलो पर भी 50 से ज्यादा हत्याएं कर लोगों को खाने का आरोप लगा था. इसी तरह का दिल दहलाने वाला मामला अमेरिका के ब्रुकलिन से भी आया था. ये तो हुई अपराधियों की बात, लेकिन कई सामान्य लगने वाले लोग भी ऐसा कर चुके हैं. कनाडियन कलाकार रिक गिबसन पर भी नरमांस खाने का आरोप लगा था. 

कई ,बार एक्सट्रीम हालातों में भी इंसान अपनी जान बचाने के लिए कमजोर इंसानों को खाने लगता है, ऐसी घटनाएं हिस्ट्री में दर्ज हैं. जैसे साल 1958 के आखिर में चीन में पड़े भयंकर अकाल के बारे में पत्रकार यंग जिशेंग ने अपनी किताब टूम्बस्टोन में ऐसी कई घटनाओं का जिक्र किया है. हालांकि चीन की सरकार ने इससे इनकार किया और किताब पर बैन भी लगा दिया. 

डॉग्स के आदमखोर होने का कितना खतरा?
कुत्ते जैसा आमतौर पर दोस्ताना पशु इतना हिंसक हो रहा है कि बच्चों को चीरने-फाड़ने लगा है. ये एकाएक नहीं हुआ. कहीं न कहीं हम ही इसके जिम्मेदार हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन की ताजा रिसर्च इसी ओर इशारा करती है. इसके मुताबिक तापमान में बदलाव के कारण खानपान का जो असंतुलन पैदा हो रहा है, वो इंसानों और पशुओं के बीच 80 फीसदी टकराव की वजह बनेगा. 

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जीवन की जंग है ये
शोध के अनुसार, बीते एक दशक में दोनों के बीच संघर्ष के मामले कई गुना बढ़ गए हैं. जैसे जंगल में रहते हाथी गांवों पर हमले कर रहे हैं, या फिर समुद्री मछलियां जहाज को खत्म करना चाहती हैं. नेचर क्लाइमेट चेंज में छपे इस शोध में इंसानों के साथ कई पशुओं के संघर्ष को देखा गया. कुत्ते इसमें शामिल नहीं हैं, लेकिन माना जा रहा है कि बढ़ती गर्मी और खाने के लिए जंग उन्हें आक्रामक बना रही है. चूंकि कुत्ते आबादी के बीच ही रहते हैं तो इंसान और खासकर बच्चे उनका पहला शिकार बनते दिख रहे हैं. 

हिंसक होने की दूसरी वजहें भी?
पालतू कुत्तों की बात करें तो उनमें बढ़ते गुस्से की एक बहुत सीधी वजह है लोगों को एग्जॉटिक नस्ल को पालने का फितूर. उदाहरण के तौर पर, साइबेरियन हस्की ब्रीड बेहद ठंडी जगहों पर रहने वाले कुत्ते हैं, लेकिन अब ये भारत जैसे अमूमन गर्म देश में भी मिलने लगे हैं. लोग विदेशों से उन्हें मंगवाते और घरों पर रखते हैं. इसी तरह से पिटबुल या अमेरिकन बुलडॉग को लें तो ये भी जंगली ब्रीड हैं. इन्हें घर पर रखने से पहले पक्की ट्रेनिंग न हो, तो वे हिंसक होकर सीधा इंसानों पर अटैक करते हैं. 

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क्रॉस-ब्रीडिंग भी बड़ी समस्या 
क्रॉस ब्रीडिंग यानी दो अलग-अलग नस्लों को वंश बढ़ाने के लिए आपस में मिलाना. इसके कई नियम हैं, जैसे किन दो नस्लों की ब्रीडिंग खतरनाक हो सकती है, किन दो नस्लों के मिलने से कुत्तों में बीमारियां बढ़ सकती हैं. हमारे यहां बहुत से डॉग सेंटर चलाने वालों को न तो इस नियम की जानकारी है, न ही वे इसे समझना ही चाहते हैं. यहां तक कि ऐसे बहुत से शॉप्स रजिस्टर्ड तक नहीं हैं. विदेशी नस्ल के कुत्तों की खरीद-फरोख्त ज्यादातर इन्हीं अनरजिस्टर्ड शॉप्स में होती है. समय-समय पर इसपर कार्रवाई भी होती है, लेकिन फिर सब वैसा ही चल पड़ता है. 

कैसे पहचानें कि डॉग अटैक कर सकता है?
इसका कोई पक्का संकेत नहीं है. हालांकि स्ट्रे डॉग्स अगर आपको देखकर दूर से ही भौंक रहे हैं, या उनके हावभाव में बेचैनी हो, तो वे परेशान हैं, और उनके पास से गुजरने पर वे हमला भी कर सकते हैं. स्ट्रे डॉग्स का अपना एरिया भी होता है, ठीक वैसे ही जैसे हमारा घर होता है. वे अपने इलाके में घुसने वालों पर हमला कर सकते हैं. कई बार कुत्ते बड़ी तेजी से अपनी पूंछ मरोड़ते-काटते दिखते हैं, ये भी इशारा है कि वो आपको दूर रहने कह रहा है.

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