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चीन ने अगर फिर दोहराई डोकलाम जैसी हरकत, तो यूं जवाब देगा भारत

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को सिक्किम-भूटान-तिब्बत ट्राइ जंक्शन का दौरा किया था. सीतारमण का यह दौरा एक खास रणनीति के तहत किया गया था. दोनों देशों के बीच डोकलाम विवाद शांत हो गया है लेकिन भारत चीन की फितरत को देखते हुए भविष्य के लिए रणनीति बनाने में जुट गया है. भारत चीन की खतरनाक सलामी स्लाइसिंग की रणनीति से निपटने के लिए योजना बना रहा है.

रक्षा मंत्री का दौरा (फाइल) रक्षा मंत्री का दौरा (फाइल)
प्रज्ञा बाजपेयी
  • नई दिल्ली,
  • 11 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 5:58 PM IST

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को सिक्किम-भूटान-तिब्बत ट्राइ जंक्शन का दौरा किया था. सीतारमण का यह दौरा एक खास रणनीति के तहत किया गया था. दोनों देशों के बीच डोकलाम विवाद भले ही शांत हो गया है, लेकिन भारत चीन की फितरत को देखते हुए भविष्य के लिए रणनीति बनाने में जुट गया है. भारत चीन की खतरनाक 'सलामी स्लाइसिंग' की रणनीति से निपटने के लिए योजना बना रहा है.

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रक्षा मंत्री सीतारमण ने सिक्किम में कहा था कि सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार गंभीरता से काम कर रही है. सीतारमण ने अपने दौरे से यह साफ कर दिया कि भारत का जोर अब सीमाई इलाकों के विकास पर रहेगा. इन इलाकों में विकास ना हो पाने की वजह से ही चीन को यहां पैर पसारने का मौका मिल जाता है. रक्षा मंत्री सीतारमण की योजना अब भारत-चीन सीमा एलएसी (4057 किमी) पर बुनियादी ढांचा विकसित करने की है.

सलामी स्लाइसिंग का मतलब है- पड़ोसी देश के खिलाफ चुपके-चुपके छोटे-छोटे सैन्य अभियान चलाकर धीरे-धीरे किसी बड़े बूभाग पर कब्जा कर लेना. ऐसे अभियान इतने छोटे स्तर के होते हैं कि इनके युद्ध में बदलने की संभावना पैदा नहीं होती है. लेकिन पड़ोसी देश के लिए यह समझना मुश्किल हो जाता है कि ऐसे अभियानों का कैसे और किस तरह से जवाब दिया जाए. इस तरह के अभियानों से चीन ने कई क्षेत्रों में अपना कब्जा जमाने में सफलता पाई है.

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सीमाई इलाकों में विकास के नाम पर चीन भारतीय क्षेत्रों में घुसपैठ कर लेता है. इन इलाकों में बुनियादी ढांचे का अभाव भारतीय सेनाओं को विकलांग बना देता है. चीन की सलामी स्लाइसिंग की रणनीति इसीलिए और कारगर हो पाती है क्योंकि भारत के सीमाई इलाकों में बुनियादी सड़कें तक भी नहीं हैं.

वहीं चीन ने अपनी सेना के लिए तिब्बत में रेलवे नेटवर्क, हाइवेज, सड़कें, एयरबेस, रडार और तमाम बुनियादी ढांचा खड़ा कर दिया है. चीन ने इलाके में सेना की 30 टुकड़ियां तैनात कर रखी हैं जिसमें 15,000 सैनिक हैं. इनमें से 5-6 रैपिड रिएक्शन फोर्सेज भी हैं.

भारत इस मामले में पड़ोसी देश चीन से बहुत पीछे छूट चुका है. 15 साल पहले एलएसी पर 73 सड़कें (4,643 किमी.) बनाने का प्रस्ताव किया था. अब तक इनमें से केवल 27 सड़कें ही बन पाई हैं. यही नहीं, लंबे समय से प्रस्तावित 14 रणनीति रेलवे लाइन्स बिछाने का काम अब तक शुरू भी नहीं हो पाया है.

आर्मी चीफ बिपिन रावत ने हाल ही में चीन की इसी खतरनाक रणनीति के खिलाफ आगाह किया था. उत्तर की स्थिति पर बोलते हुए उन्होंने कहा था कि चीन ने अपनी ताकत दिखानी शुरू कर दी है. 'सलामी स्लाइसिंह', यानी धीरे-धीरे भूभाग पर कब्जा करना, और दूसरे की सहने की क्षमता को परखना. उन्होंने कहा था कि यह हमारे लिए चिंता का विषय है और हमें इस प्रकार की  परिस्थितियों से निपटने के लिए के लिए तैयार रहना चाहिए जिनसे भविष्य में गंभीर टकराव पैदा हो सकता है.

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सीमाई इलाकों में बुनियादी ढांचे के विकास से ना केवल चीन की भारत में बढ़ती घुसपैठ को रोका जा सकेगा बल्कि विवादित इलाकों पर उसका दावा भी कमजोर पड़ जाएगा.

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