
शिवाजी बस टर्मिनल पर डीटीसी की क्लस्टर और ग्रीन बसों के रिएलिटी चेक के दौरान बस की मेडिकल किट टूटी-फूटी और जर्जर हालत में मिलीं. कई में अग्निशामक यंत्र गायब था. वहीं, दिल्ली सरकार का दावा है कि ज्यादातर बसों में जीपीएस या फिर स्पीड नियंत्रित करने की डिवाइस लगी है.
शिवाजी बस टर्मिनल पर रिएलिटी चेक में ड्राइवर, कंडक्टर को नहीं पता कि आखिर स्पीड नियंत्रित कैसे करते हैं? जबकि ज्यादातर बसों की स्पीड 60 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा है. स्पीड की तय लिमिट सिर्फ 40 किलोमीटर प्रति घंटा ही है. दिल्ली पुलिस के आंकड़े के मुताबिक, क्लस्टर बसों की वजह से इस साल मई तक 18 लोगों की जान गई, जबकि 2018 में ये आंकड़ा 10 था. डीटीसी बसों के जरिए 9 जान गई, जबकि 2018 में ये आंकड़ा सिर्फ 5 था. आरटीवी ने इस साल 8 जाने लीं, जबकि पिछले साल ये आंकड़ा 5 का था. प्राइवेट कारों की वजह से 97 और ट्रक जैसे भारी वाहनों से 71 मौतें हुईं.
ज्यादातर क्लस्टर बसों के ड्राइवर पूरी तरह से प्रशिक्षित नही हैं. रूट नंबर-910 शिवाजी स्टेडियम से सैयद गांव को चलने वाली लो फ्लोर बस के ड्राइवर संजीव ने दावा किया कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों में स्पीड पहले से तय कर दी गई है. वहीं, डीटीसी बस का मेंटेनेंस देखने वाले मोहित त्यागी को भी नहीं पता कि आखिरकार बस में स्पीड गवर्नर कहां पर लगा होता है. ऐसे में एक तरफ मेट्रो में मुफ्त सफर का सरकारी दावा है, वहीं खस्ताहाल बसें पब्लिक ट्रांसपोर्ट की असल सच्चाई उजागर करने के लिए काफी हैं.