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लौट रही है महंगाई, आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियां लेकर आ रहा है साल 2019

केन्द्रीय रिजर्व बैंक मान रहा है कि आने वाले वर्ष में महंगाई का खतरा बढ़ रहा है. क्या नया साल महंगाई लेकर आ रहा है? यदि आरबीआई को ऐसेसंकेत दिखाई दे रहे हैं तो यह महंगाई अपने साथ नई सरकार के लिए कड़ी आर्थिक चुनौतियों भी लेकर आ रही है.

चुनाव की तैयारी (प्रतीकात्मक फोटो) चुनाव की तैयारी (प्रतीकात्मक फोटो)
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 20 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 7:02 PM IST

पिछला लोकसभा चुनाव 2014 में ऐसे वक्त में हुआ जब कच्चे तेल की कीमत आसमान पर होने के चलते महंगाई घर कर चुकी थी. हालांकि नतीजे आने के तुरंत बाद कच्चे तेल की कीमत मौजूदा दशक के न्यूनतम स्तर पर चली गई और बीते चार साल के दौरान केन्द्र सरकार को सबसे बड़ी राहत महंगाई गायब होने से मिली. अब 2019 के चुनाव होने जा रहे हैं. क्या फिर महंगाई दस्तक देने वाली है.

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केन्द्रीय रिजर्व बैंक मान रहा है कि आने वाले वर्ष में महंगाई का खतरा बढ़ रहा है. क्या नया साल महंगाई लेकर आ रहा है? यदि आरबीआई को महंगाई के संकेत दिखाई दे रहे हैं तो यह महंगाई अपने साथ नई सरकार के लिए कड़ी आर्थिक चुनौतियों भी लेकर आ रही है.

दरअसल, मौद्रिक समीक्षा नीति के बाद आरबीआई द्वारा जारी किए गए समीक्षा ब्यौरा में तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा कि जहां वित्त वर्ष 2018-19 के दूसरी छमाही में महंगाई 2.7 से 3.2 फीसदी हो सकती है वहीं वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही के दौरान यह 3.8 से 4.2 फीसदी हो सकती है.  

ये हैं चुनौतियां

मौजूदा समय में महंगाई पर केन्द्र सरकार की लगाम है और उपभोक्ता को खाद्य सामग्री की गिरी हुई कीमत (खाद्य महंगाई) से महंगाई का एहसास नहीं हो रहा है. हालांकि रिजर्व बैंक का मानना है कि इस स्थिति में परिवर्तन हो सकता है और खाद्य वस्तुओं की कीमत बढ़ने से सरकार के लिए चुनौती बढ़ सकती है.

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अमेरिका में भी केन्द्रीय बैंक का चीफ डोनाल्ड ट्रंप की नहीं सुनता!

एमएसपी में किए गए इजाफे का खाद्य महंगाई पर क्या असर पड़ेगा इसपर संशय बरकरार है. इसके अलावा मौजूदा समय में खाद्य उत्पादों की बाजार में कम कीमत के चलते देश के ग्रामीण उपभोक्ता की आमदनी कमजोर रहने की आशंका है.

कच्चे तेल की कीमतों पर फिलहाल लगाम लगी है. अमेरिका में कच्चे तेल की कीमत गिर रही है वहीं खाड़ी देशों द्वारा कटौती के अंतरिम ऐलान के बाद कच्चे तेल की कीमत स्थिर नजर आ रही है. हालांकि इससे कच्चे तेल की कीमत में इजाफे की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता और यह सरकार के हित के विपरीत चल सकती हैं.    

अमेरिका में ब्याज दरों में साल में चौथी बार इजाफा हुआ है. इस फैसले से दुनियाभर के शेयर बाजार और बॉन्ड मार्केट में दबाव है. डॉलर के मुकाबले अन्य वैश्विक मुद्राओं में कमजोरी देखी जा रही है.

देश में आम चुनाव का बिगुल बजने वाला है. ऐसे में केन्द्र और राज्य सरकारें आने वाले दिनों में लोकलुभावन योजनाओं का ऐलान कर सकती हैं. वहीं पूर्व में हुई लोकलुभावन योजनाओं के लिए खर्च का बोझ केन्द्र और राज्य सरकार के खजाने पर पड़ सकता है. ऐसी स्थिति में केन्द्र सरकार को अधिक वित्तीय घाटे के लिए तैयार रहने की जरूरत है.

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