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विरोध की हर आवाज दबाकर बोली थीं इंदिरा- एक कुत्ता तक नहीं भौंका

दमन और लोकतंत्र पर आघात का खेल 19 महीने तक चला. मीसा और डीआईआर कानून के तहत देश में एक लाख से ज्यादा लोगों को जेल में डाल दिया गया. सभी बड़े विरोधी नेताओं को भी जेल की हवा खानी पड़ी.

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (फाइल फोटो) पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (फाइल फोटो)
जावेद अख़्तर
  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2018,
  • अपडेटेड 11:38 AM IST

आज से 43 साल पहले 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव लड़ने पर 6 साल की रोक लगा दी गई. उन्हें संसदीय कार्यवाही से दूर रहने का आदेश दिया गया. जिसके बाद इंदिरा पर इस्तीफा देने का दबाव बना. लेकिन इससे उलट उन्होंने 25-26 जून की रात तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर से देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई.

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इंदिरा गांधी के उस फैसले के साथ ही विरोध के स्वर दबाए जाने लगे. फैसले की मुखालफत करने वाले नेताओं को जेल में डाला जाने लगा. यहां तक कि मीडिया को भी खामोश कर दिया गया. आपातकाल लागू होने के साथ ही इंदिरा गांधी को असीमित अधिकार मिल गए. उन्हें लोकसभा या विधानसभा के लिए चुनाव की जरूरत नहीं थी. सरकार कोई भी कानून पास करा सकती थी. यानी सबकुछ इंदिरा गांधी के इशारे पर तय होने लगा.

दमन और लोकतंत्र पर आघात का यह सिलसिला 21 महीने तक चला. दमनकारी कानून मीसा और डीआईआर के तहत देश में एक लाख से ज्यादा लोगों को जेल में डाल दिया गया. सभी बड़े विरोधी नेताओं को भी जेल की हवा खानी पड़ी. एक तरफ इंदिरा गांधी ने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए, वहीं दूसरी तरफ उनके बेटे संजय गांधी ने देश को आगे बढ़ाने के नाम पर पांच सूत्रीय एजेंडे पर काम करना शुरू कर दिया. उनके एजेंडे में परिवार नियोजन जैसे कार्यक्रम बड़े विवाद का हिस्सा बने. जबरदस्ती लोगों की नसबंदी करा दी गई.

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पूरे देश में उथल-पुथल का माहौल रहा. जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं के नेतृत्व में बड़ी तादाद में लोग सड़कों पर उतरे और इंदिरा गांधी के फैसले को पुरजोर विरोध किया. हर तरह माहौल में अफरा-तफरी नजर आई, लेकिन मुखालफत की हर मुमकिन आवाज को दबाने की कोशिश की गई. सत्ता के गलियारों में सिर्फ इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की हनक थी. बाद में इंदिरा गांधी ने खुद आपातकाल की सख्ती का उदाहरण दिया. इंदिरा गांधी ने स्वयं कहा था कि आपातकाल के दौरान एक कुत्ता तक नहीं भौंका.

21 मार्च 1977 तक आपातकाल लगा रहा. जेपी की लड़ाई निर्णायक मुकाम तक पहुंची. इंदिरा को सिंहासन छोड़ना पड़ा. मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी का गठन हुआ. 1977 में फिर आम चुनाव हुए. 1977 के चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हारी. इंदिरा खुद रायबरेली से चुनाव हार गईं और कांग्रेस 153 सीटों पर सिमट गई. 23 मार्च 1977 को इक्यासी वर्ष की उम्र में मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बने. ये आजादी के तीस साल बाद बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी.

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