
काली कमाई को सफेद करने के जुगाड़ में लगे कैश माफिया के तार पूर्वोत्तर में दूरदराज के इलाकों तक भी फैले हैं. ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि टैक्स चोरी के पैसे से एक और खतरनाक खेल भी खेला जा रहा है. ये खतरनाक खेल है काली कमाई से हथियार खरीदने का. इस सारे गोरखधंधे को इंडिया टुडे ग्रुप के अंडर कवर रिपोर्टर्स ने अपनी जांच से बेनकाब किया है.
नोटबंदी के ऐलान के बाद से ही इंडिया टुडे ग्रुप ने काली कमाई को खपाने वाले जुगाड़ तंत्र के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है. इसी मुहिम के तहत ग्रुप के अंडर कवर रिपोर्टर्स पहुंचे सुदूर पूर्वोत्तर के दुर्गम इलाकों तक. तहकीकात में सामने आया कि किस तरह काली कमाई को स्थानीय जनजातियों के बैंक खाते में डाला जा रहा है. इन जनजातियों को अपनी कमाई पर कोई इनकम टैक्स नहीं देना पड़ता. अंडर कवर रिपोर्टर ने जांच में ये भी पाया कि किस तरह हथियारों के सौदागर अपनी काली कमाई का इस्तेमाल नॉर्थ-ईस्ट रूट से हथियार खरीदने में कर रहे हैं.
बता दें कि पिछले महीने अवैध नोटों से भरा एक विमान नगालैंड पहुंचा तो उसे लेकर पूरे देश में अटकलों का बाजार गर्म हो गया था. लेकिन इस घटना के बावजूद पुख्ता सबूतों का आना बाकी था कि पूर्वोत्तर में काले धन को सफेद करने के नापाक खेल को किस तरह अंजाम दिया जा रहा है. इंडिया टुडे ग्रुप की विशेष जांच टीम इन्हीं कड़ियों की तलाश करती हुई नगालैंड के दीमापुर जा पहुंची.
अंडर कवर रिपोर्टर का वहां सबसे पहले कैश के दलाल नूर मोहम्मद से सामना हुआ. रिपोर्टर ने नूर मोहम्मद को अपना परिचय मार्बल कारोबारी के तौर पर दिया. नूर मोहम्मद ने अवैध नोटों को स्थानीय जनजातियों के लोगों के खातों में बिना किसी परेशानी के जमा कराने का वादा किया. नूर मोहम्मद ने कहा, 'एक अकेले परिवार के 10 से 15 खाते हैं. लेकिन आप एक ही परिवार के सारे खातों का इस्तेमाल करना पसंद नहीं करेंगे. आपको अलग अलग परिवारों के 4 या 5 खातों की जरूरत होगी. ये नगा लोग कोई टैक्स नहीं देते. वो 25 पैसे तक टैक्स नहीं देते.'
नूर मोहम्मद ने सलाह के लहजे में कहा कि नगा खातों में कई किश्तों में पैसा जमा कराया जा सकता है. नूर मोहम्मद के मुताबिक वो अपनी कमीशन रख कर अवैध नोटों को वैध नोटों में बदलने का काम करा देगा. जाहिर था कि नूर मोहम्मद आयकर कानून के उस प्रावधान के खुले दुरुपयोग की बात कर रहा था जिसके तहत नगालैंड, त्रिपुरा, मणिपुर, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों को आयकर के दायरे से बाहर रखता है.
लेकिन नगा खाते अकेले नहीं हैं जिनका पूर्वोत्तर क्षेत्र में टैक्स चोर अपनी काली कमाई को खपाने में कर रहे हैं. इसके अलावा बेहिसाबी कमाई से हथियार खरीदने के विकल्प को भी निवेश के तौर पर आजमाया जा रहा है. दीमापुर में हथियारों के कुछ सप्लायर्स दूसरे राज्यों के लोगों के लिए शस्त्र लाइसेंस दिलवाने को तैयार दिखे. वो भी अवैध करार दिए जा चुके नोटों के बदले में. जाहिर है ये काम भ्रष्ट अधिकारियों की मुट्ठी गर्म किए बिना नहीं हो सकता.
दीमापुर के सरमती गन हाउस के विराज नाम के शख्स ने 32 बोर की पिस्तौल का एक लाइसेंस दिलवाने के लिए 1 लाख 40 हजार रुपये की मांग की. विराज ने कहा, ये लाइसेंस का रेट है, पिस्तौल की कीमत अलग है.’ विराज इसके बाद एक और व्यक्ति को लेकर आया. इस व्यक्ति ने अपना परिचय राज्य पुलिस विभाग के स्टाफ के तौर पर दिया. डेविड किबामी नाम के इस शख्स ने कहा, 'मैं पुलिस में टाइपिस्ट हूं. मैं शस्त्र विभाग से जुड़ा हूं. चिंता मत कीजिए. कुछ नहीं होगा.'
विराज और किबामी ने इंडिया टुडे के अंडर कवर रिपोर्टर को जल्दी से जल्दी बंदूक का लाइसेंस दिलाने का वादा किया. किबामी ने कहा, 'ये यहीं से बनेगा.' बंदूक का लाइसेंस दिलाने की गारंटी देने के बाद विराज ने बताया कि वो किस तरह अंडर कवर रिपोर्टर की काल्पनिक रकम को खपाएगा. विराज ने कहा, 'हम इसे (काले धन को) हथियार के साथ एडजस्ट कर देंगे. इतनी देर तक आपको लाइसेंस भी मिल जाएगा.'
विराज के ही एक और साथी विकास ने 80 लाख रुपये की काल्पनिक राशि के लिए अपना खाता मुहैया कराने की पेशकश की. बदले में उसने 25 फीसदी कमीशन की मांग की. विकास ने कहा, 'हमें सेल्स टैक्स इंस्पेक्टर को भी घूस देनी होगी. साथ ही हमें किताब में भी सब कुछ दिखाना होगा. ये सालाना बही है. हमें आपके पैसे को वहां एडजस्ट करना होगा.' अंडर कवर रिपोर्टर ने विकास से पूछा- '80 लाख रुपये एडजस्ट करने में कोई समस्या नहीं आएगी. सही है ना.' विकास ने जवाब दिया, '80 लाख की रकम तक कोई समस्या नहीं आएगी.'