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Exclusive: भारत में भी वोटर का डेटा हो रहा चोरी, देसी 'कैंब्रिज एनालिटिका' सक्रिय

भारत सरकार ने कैम्ब्रिज एनालिटिका और फेसबुक दोनों को ही 10 मई की डेडलाइन देते हुए विस्तृत जवाब देने के लिए कहा है. उनसे पूछा गया है कि भारतीयों से जुड़े डेटा को लेकर कहीं उल्लंघन हुआ है तो उसका पूरा ब्यौरा दिया जाए. फेसबुक को तभी से बुरे संकट का सामना करना पड़ रहा है जब से ये आरोप दुनिया के सामने जाहिर हुए कि कैम्ब्रिज एनालिटिका ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मौजूद 8 करोड़ 70 लाख लोगों की जानकारी से जुड़े डेटा को बटोरा. 

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
अजीत तिवारी/मो. हिज्बुल्लाह/नितिन जैन/अमित कुमार चौधरी
  • बेंगलुरु/नई दिल्ली,
  • 30 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 12:28 AM IST

अमेरिका में 2016 में ट्रम्प कैम्पेन के लिए वोटरों को लुभाने के वास्ते इंग्लैंड स्थित कंपनी ‘कैम्ब्रिज एनालिटिका’ ने फेसबुक से अमेरिकी नागरिकों की निजी जानकारी से जुड़ा डेटा उड़ाकर जैसे इस्तेमाल किया, उससे कहीं खुल्लमखुल्ला और बेखौफ ढंग से भारत में इस गोरखधंधे को अंजाम दिया जा रहा है. ये खुलासा इंडिया टुडे की स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम की जांच में हुआ है.

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भारत सरकार ने कैम्ब्रिज एनालिटिका और फेसबुक दोनों को ही 10 मई की डेडलाइन देते हुए विस्तृत जवाब देने के लिए कहा है. उनसे पूछा गया है कि भारतीयों से जुड़े डेटा को लेकर कहीं उल्लंघन हुआ है तो उसका पूरा ब्यौरा दिया जाए. फेसबुक को तभी से बुरे संकट का सामना करना पड़ रहा है जब से ये आरोप दुनिया के सामने जाहिर हुए कि कैम्ब्रिज एनालिटिका ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मौजूद 8 करोड़ 70 लाख लोगों की जानकारी से जुड़े डेटा को बटोरा.  

लेकिन ये उस खतरे के सामने कुछ भी नहीं जो सवा अरब आबादी वाले भारत में हो सकता है, जहां करीब आधी आबादी की अब इंटरनेट तक पहुंच है. वो भी ऐसी स्थिति में जहां भारत जैसे विकासशील देश में निगरानी का वैसा माहौल नहीं है जैसा कि अमेरिका जैसे विकसित देशों में.

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इंडिया टुडे की अंडर कवर जांच में ऐसे कई राजनीतिक सलाह देने वाले देसी ठिकाने बेनकाब हुए जिन्होंने तमाम तरह के स्रोतों से नागरिकों के डेटा जुटा रखे हैं. फेसबुक और ट्विटर को एक तरफ रखें तो भी इनके पास नागरिकों से जुटी जानकारी हासिल करने के अनेक रास्ते हैं. जांच में सामने आया कि ये देसी ठिकाने राजनीतिक पार्टियों के लिए वोटरों के प्रोफाइल छान रहे हैं जिससे कि चुनाव कैम्पेन के वक्त लक्षित संदेशों को उन तक पहुंचाया जा सके.

नई दिल्ली स्थित चुनाव प्रबंधन कंपनी ‘जनाधार’ के संस्थापक मनीष ने अंडर कवर रिपोर्टर को नागरिकों से जुड़े तमाम तरह के डेटा उपलब्ध कराने की पेशकश की. ये डेटा रिटेल चेन्स, जॉब पोर्टल्स, शॉपिंग ऐप्स, बैंक, टेलीकॉम, डीटीएच कंपनियों जैसे तमाम स्रोतों से इकट्ठा किया गया जिससे कि उसका वोटरों पर ‘मनोवैज्ञानिक युद्ध’ छेड़ने के लिए इस्तेमाल किया जा सके.  

मनीष से इंडिया टुडे के अंडर कवर रिपोर्टर ने कर्नाटक चुनाव में हिस्सा लेने वाले राजनीतिक दल के काल्पनिक एजेंट के तौर पर बात की. मनीष ने कहा, ‘हम सर्वे, रणनीति, अमल, डिलिवरी से शुरु करेंगे. सब कुछ साथ, हम सब कुछ करेंगे.’  

रिपोर्टर- ‘डिलिवरी से क्या मायने? क्या वो वोटों में तब्दील होगा.’

मनीष- ‘हां, अगर आपके कहने का ये मतलब है कि कैम्पेन पर खर्च किए जाने वाले पैसे का रिटर्न मिलेगा. कुल मिलाकर हम आपको ऑफलाइन और ऑनलाइन स्रोतों से सब कुछ उपलब्ध कराएंगे. हम आपको बाजार की सूचना भी मुहैया कराएंगे. साथ ही ये भी बताएंगे कि आपके बारे में वोटर क्या बात करता है.’  

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मनीष ने ये भी बताया कि जानकारी का चुनाव प्रचार के दौरान क्या इस्तेमाल किया जा सकता है- ठीक वैसे ही जैसे कि डोनाल्ड ट्रम्प के अभियान के दौरान 2016 में एनालिटिका के डेटा का इस्तेमाल किया गया.

मनीष ने कहा, ‘हम आपको बताएंगे कि उनका खरीददारी का पैटर्न क्या है. क्या वो (वोटर्स) शॉपिंग के आदि हैं, वो कौन सा क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करते हैं. कैम्ब्रिज एनालिटिका भी यही सब है. आपको आपके कार्ड पर एक एसएमएस मिलेगा. इसी एसएमएस को डिलिवर (मोबाइल फोन्स पर) किया जाएगा, तो मेरे पास आपके लिए सब कुछ है.’    

इंडिया टुडे का अंडर कवर रिपोर्टर दोबारा मनीष से मिलता, इससे पहले ही उसने दक्षिण बेंगलुरु निर्वाचन क्षेत्र के दो लाख लोगों के ईमेल डेटा जुटा कर रखे हुए थे.

नमूने के तौर पर मनीष ने नागरिकों से जुड़ी जानकारी की 10 एक्सेल शीट भी भेजीं. इसमें नागरिकों के नाम, पते, पैन कार्ड, आधार, मोबाइल नंबर, सिम के साथ साथ आर्थिक जानकारियां भी दर्ज थीं.  

मनीष ने कहा, ‘अगर कोई जॉब में है और उसका सीवी जॉब पोर्टल पर है तो आपको सब कुछ मिल जाएगा जो आप चाहते हैं. अगर किसी के पास क्रेडिट कार्ड है तो वो डेटा मुहैया करा दूंगा. अगर किसी के पास लाइफस्टाइल (सर्विस) की लॉयल्टी मेंबरशिप है तो मैं वो डेटा दूंगा. जहां कहीं भी डेटा दिया गया है, वो मैं दूंगा.’

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एक बार ये डेटा साम-दाम-दंड-भेद जैसे भी तरीके से जुटा लिया जाता है तो फिर वोटरों पर संदेशों की बौछार कर दी जाती है. इसके लिए उनकी आर्थिक हैसियत, पेशा, व्यक्तित्व का ध्यान रखा जाता है. ये वोटर से बिना अनुमति लिए किया जाता है.   

मनीष ने कहा, ‘इसके लिए ‘360 डिग्री बमबारी’ (संदेशों की) की जाती है. सुबह जागेंगे तो अखबार में पर्चा मिलेगा. ऑफिस पहुंचेंगे तो हमारा ईमेल (कैम्पेन का) मिलेगा. जब फेसबुक खोलोगे तो फोटो (विज्ञापन) दिखेगा. तो यहां जो किया जाता है वो ये है कि वोटर को चारों दिशाओं से घेरा जाए. एक ही चीज को बार बार दोहराया जाएगा. अगर आप प्रवासियों का कल्याण चाहते हैं तो मुझे वोट दीजिए’. ये वोटर के दिमाग में अच्छी तरह बिठा दिया जाएगा. ये रट्टा लगवाने जैसा है.’  

मनीष ने अंडर कवर रिपोर्टर को ये सब उपलब्ध कराने के बदले में जो रकम मांगी वो हैरान करने वाली थी. बेंगलुरु के एक निर्वाचन क्षेत्र के डेटा के लिए 1 करोड़ 20 लाख रुपए मांगे. मनीष ने साथ ही दावा किया कि रकम ऊंची है तो उसके बदले में लाभ भी ऊंचा ही मिलेगा.

मनीष ने फिर समझाने के लहजे में कहा, ‘मैं आपको बता रहा हूं कि इससे 50 फीसदी (वोट शेयर में) बढ़ोतरी होगी.’

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इंडिया टुडे की अंडर कवर टीम ने फिर रुख किया कंसल्टेंसी के नाम पर चलाए जा रहे एक और देसी ठिकाने- ‘पोलस्टार’ का.  यहां से भी ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों प्लेटफार्म्स से जुटाए गए वोटरों के प्रोफाइल्स का खजाना मुहैया कराने का दावा किया गया. इसके  संस्थापक मनीष तिवारी ने कबूल किया कि उसकी टीम ने दक्षिण बेंगलुरु में कुछ टेलीकॉम अधिकारियों से साठगांठ कर वहां स्थित सभी सेल टॉवर से जुड़ा मोबाइल डेटा जुटा रखा है.   

तिवारी ने कहा, निर्वाचन क्षेत्र में टॉवर्स पर साढ़े चार लाख सक्रिय फोन नंबर हैं. इनमें से डेढ़ लाख वॉटसऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं.

तिवारी के डेटा जुटाने के पारंपरिक तरीकों में भी छल की पूरी छाप थी. जैसे कि पहचान बदलवा कर अपने स्टाफ को रिहाइशी बस्तियों में भेजना जिससे कि किसी वोटर के बारे में पड़ौसियों से जानकारी जुटाई जा सके.

तिवारी ने कहा, ‘हमारी टीमें डेटा इकट्ठा करने के लिए करीब 25,000 घरों में जाएंगी. वो वहां मतदान के लिए जागरूकता जगाने जाएंगे. लोगों से वोट करने की अपील की जाएगी. हम एक एनजीओ के नाम पर ये मुहिम चलाएंगे. यही सब करते हुए बुनियादी जानकारी जैसे कि फोन नंबर, परिवार में कितने सदस्य आदि. अगर हम ऐसे डेटा को लक्ष्य करेंगे तो कम से कम 5-6 फीसदी (वोट शेयर) को प्रभावित किया जा सकेगा.’  

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दिल्ली स्थित मावरिक डिजिटल कंपनी के निदेशक विवेक बांका ने राजनीतिक ग्राहकों समेत अनेक स्टेकहोल्डर्स के लिए अनेक मार्केटिंग कैम्पेन चलाने का दावा किया.

बांका ने कहा कि विरोधी खेमे के वोटरों को भी लक्षित संदेश भेजना कोई मुद्दा नहीं है. हमारे संदेश उन तक भी पहुंचेंगे. मान लीजिए कि अगर कांग्रेस चाहती है कि उसका डिजिटल कंटेंट बीजेपी समर्थकों को भी दिखे, तो उन्हें भी ये 100 फीसदी मिलेगा.  

बांका के मुताबिक चुनाव के दौरान लोगों के मूड की जानकारी भी मुहैया कराई जा सकती है. बांका ने फिर ये भी बताया कि ये सब जुटाने के लिए क्या तरीके अपनाए जाते हैं.  

बांका ने कहा, ‘इसके लिए हमें तह तक जाना होता है. मान लीजिए कि किसी वोटर की प्रतिक्रिया रणनीतिक दृष्टि से अहम है तो हमें उसी वोटर विशेष के लिए खास डिवाइस का इस्तेमाल करना होता है.’

रिपोर्टर- वो क्या होता है?

बांका ने कहा, ‘ये मूल रूप से मूड का विश्लेषण करने वाला ट्रैकर होता है. वोटर्स, नागरिक क्या बात कर रहे हैं, सकारात्मक, नकारात्मक और तटस्थ. उसी के हिसाब से ये तीन सेगमेंट्स में बंटा होता है. हमें इसके लिए खास टूल (युक्ति) डिजाइन करना होगा.’

बांका ने फिर उसकी कीमत बताते हुए कहा, ‘ये आपको दो से चार लाख रुपए में पड़ेगा. इसकी असीमित क्षमता होगी. कीमत कम ज्यादा हो सकती है. पहले जरूरत क्या है ये पहचान कर ली जाए. उसी के हिसाब से टूल को बनाया जाएगा. मैं जानता हूं दूसरे राजनीतिक दल भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं.’  

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बांका के साथी और कंपनी के क्रिएटिव हेड ओम देव शर्मा ने फिर बताया कि इस तरह के जासूसी ऐप्स किस तरह काम करते हैं.

शर्मा ने बताया, पेड-फॉर टूल्स इस्तेमाल किए जाते हैं. इनमें कीवर्ड्स सेट होते हैं. कौन किस पार्टी के लिए काम कर रहा है- बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी, एसपी. विरोधी पार्टियों के लोग क्या बात कर रहे हैं. उनके एजेंडा पर क्या है. कौन से हैशटेग वो इस्तेमाल कर रहे हैं. ये सकारात्मक है या नकारात्मक. फीडबैक क्या है. हम सभी का विश्लेषण करते हैं और अपना फीडबैक तैयार करते हैं.

मुंबई स्थित क्रोनो डिजिटल मार्केटिंग कंपनी के बिजनेस हेड तरुण जैन ने अज्ञात वेंडर्स से फेसबुक डेटा खरीदने और फिर राजनीतिक ग्राहकों को उपलब्ध कराने की बात कबूल की.

जैन ने कहा, ‘आप मुझे दिल्ली या कर्नाटक के पिन कोड्स बताएं. आप जिस लोकेशन का चाहेंगे वहां का सेम्पल डेटा दिखा देंगे. डेटा पहले से ही मेरे पास है. हम इसे रोज खरीदते हैं. हम इसके बिना काम नहीं कर सकते. मैं हर दिन 40 सेवाओं को अंजाम देता हूं, इनमें एसएमएस, वॉट्सऐप और ईमेल्स शामिल हैं. बिना डेटा के ये सब मैं कैसे कर सकता हूं.’

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