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राजस्थान बीजेपी के प्रमुख मदन लाल सैनी इतिहास का गलत हवाला देने की वजह से ट्रोल हो रहे हैं. सैनी के मुताबिक हुमायूं और बाबर के बीच भी गाय को लेकर चर्चा हुई थी. सैनी के मुताबिक मुगल बादशाह हुमायूं जब मृत्युशैया पर थे तब उन्होंने बाबर को बुलाकर कहा था कि अगर तुम्हें हिन्दुस्तान पर राज करना तो तीन चीजों का ध्यान रखना. गाय, ब्राह्मण और महिला. इनका अपमान नहीं होना चाहिए. हिन्दुस्तान इनको सहन नहीं करता है. इन का सम्मान होना चाहिए.
सैनी का सोशल मीडिया पर इसलिए मखौल उड़ा जा रहा है कि बाबर की मृत्यु पहले हुई थी. हुमायूं की मृत्यु 25 साल बाद 1556 में हुई थी. क्या बीजेपी नेता ने जो कहा वो पूरी तरह गलत था? इंडिया टुडे की फैक्ट चेक टीम ने मुगलों से जुड़े लेख-दस्तावेज खंगाल कर और इतिहासकारों से बात कर ये जानने की कोशिश कि उस वक्त गायों को लेकर क्या नीति थी?
इतिहासकारों का कहना है कि सैनी ने शायद 17वीं सदी की किताब जिसे बाबर की ‘वसाया’ (या वसीयतनामा) बताया गया, के हवाले से ये बात कही. विशेषज्ञों का कहना है कि उस किताब में बाबर की ओर से बेटे हुमायूं को गोहत्या के खिलाफ आगाह करने का जिक्र है. लेकिन किताब को लेकर साथ ही चेतावनी है कि वो फर्जी है. बाबर और हुमायूं दोनों 16वीं सदी में सक्रिय रहे, जबकि कथित ‘वसाया’ शाहजहां की बादशाहत के दौरान आई बताई गई.
विशेषज्ञों के मुताबिक ये किताब इसीलिए लाई गई जिससे गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के लिए अधिक समर्थन जुटाया जा सके, ये हवाला देकर कि मुगलों के शासन की शुरुआत में भी ये प्रतिबंध लागू था.
इतिहासकारों के मुताबिक बाबर की जीवनी ‘तुजुक-ई-बाबरी’ में गोहत्या का कोई जिक्र नहीं है. इसमें सिर्फ ये कहा गया है कि गाय को भारत में पवित्र माना जाता है. इससे ये साफ नहीं होता कि मुगल बादशाह ने गोहत्या पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया था. बाबर के पुत्र हुमायूं का शासन बड़ा उथल-पुथल वाला था. हुमायूं की जीवनी ‘हुमायूंनामा’ में भी गोहत्या को लेकर कोई सीधा जिक्र नहीं है.
यद्यपि बादशाह के एक खिदमतगार जौहर की किताब ‘तेजकेरेह-अल-वकीयत’ में मुगलों के निजी संस्मरणों का जिक्र है. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के मेजर चार्ल्स स्टुअर्ट ने इसका अनुवाद किया था. इसमें गाय के सवाल पर रौशनी डाली गई है.
जौहर ने एक घटना का जिक्र किया है जिसमें हुमायूं ने साफ तौर पर गोहत्या का विरोध किया था. किताब में कहा गया है कि हुमायूं की ओर से काबुल शहर से विद्रोही भाई कामरान को खदेड़ने के बाद रात के खाने में गोमांस परोसा गया था. किताब के मुताबिक बादशाह ने उसे खाने से मना कर दिया था.
किताब में हुमायूं को ये कहते उद्धृत किया गया है- ओह बदनसीब कामरान! क्या ये तुम्हारे जीने का तरीका था? और क्या तुमने गायों के मांस से पाकीजगी की पनाहगाह को खिलाया?...ये खाना तो उन लोगों के लिए भी सही नहीं जो हमारे वालिद की कब्र पर इंतजार करते हैं. क्या हम, उनके चार पुत्र, उनकी निशानी का सम्मान नहीं कर सकते थे?
हालांकि इतिहासकार ब्रिटिश अधिकारी के अनुवाद की क्षमता पर शक जताते हैं लेकिन तब भी पर्याप्त संकेत है कि शुरुआती मुगल बादशाह गोहत्या और गोमांस खाने के खिलाफ थे. अकबर के कार्यकाल मे गोहत्या पर सख्त पाबंदी थी. इसका पालन उनके बेटे जहांगीर और पोते शाहजहां ने भी किया.
ये सर्वविदित है कि बादशाह औरंगजेब ने हिन्दुओं के खिलाफ कट्टर रुख अपनाया था. जे गोर्डन मेल्टन ने अपनी किताब ‘फेथ्स अक्रॉस टाइम : 5,000 इयर्स ऑफ रिलीजियस हिस्ट्री’ में लिखा है कि एक जैन मंदिर को अपवित्र करने के बाद औरंगजेब ने परिसर में एक गाय की हत्या कराई थी. विशेषज्ञ, हालांकि इस पर शक जताते है कि औरंगजेब ने अपने पूर्वजों की ओर से गोहत्या पर लगाया गया प्रतिबंध हटा लिया होगा.
मुगल काल में आगे चलकर भी प्रतिबंध को लेकर दस्तावेजी हवाले मिलते हैं. बादशाह फर्रूख सियर की हुकूमत के दौरान भी गोहत्या के आरोप में शाही अदालत में सुनवाई होने के लिखित साक्ष्य मौजूद हैं. ऐसे उल्लेख भी हैं कि बकरीद पर प्रतिबंध में छूट दी जाती थी.
फैक्ट चेक से साफ है कि बीजेपी नेता ने फर्जी दस्तावेज का हवाला देते हुए जो कहा वो तथ्यात्मक तौर पर गलत था. लेकिन साथ ही ये भी स्थापित तथ्य है कि मुगल काल में गोहत्या पर सख्त प्रतिबंध था.