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फिसड्डी साबित हुई रेलवे की जीरो एक्सीडेंट पॉलिसी

20 तारीख को सुबह तड़के 3:10 पर ट्रेन पटरी से उतर गई और इसमें इसके 14 डिब्बे रेल पटरी से नीचे आ गए. कानपुर में हुआ भयानक रेल हादसा एक बार फिर से एक्सीडेंट के मामले में जीरो टॉलरेंस पॉलिसी की पोल खोल गया.

ट्रेन हादसा ट्रेन हादसा
सिद्धार्थ तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 21 नवंबर 2016,
  • अपडेटेड 3:40 AM IST

रेल मंत्री सुरेश प्रभु की जीरो एक्सीडेंट की पॉलिसी उस समय बेमतलब साबित हो गई, जब कानपुर के पास पुखरायां में इंदौर सिटी पटना एक्सप्रेस पटरी से उतर गई और इस हादसे में 120 से ज्यादा लोगों की जान चली गई. यह हादसा इतना भयानक था कि लोगों के लिए इस को भुला पाना संभव नहीं होगा.

20 तारीख को सुबह तड़के 3:10 पर ट्रेन पटरी से उतर गई और इसमें इसके 14 डिब्बे रेल पटरी से नीचे आ गए. कानपुर में हुआ भयानक रेल हादसा एक बार फिर से एक्सीडेंट के मामले में जीरो टॉलरेंस पॉलिसी की पोल खोल गया. शुरूआती वजह बताई जा रही है कि रेल पटरी में फ्रैक्चर हुआ, लेकिन इस एक्सीडेंट के सही कारणों का पता तब भी चलेगा, जब रेलवे कमिश्नर सेफ्टी अपनी जांच पूरी करेगा. बहरहाल जो भी हो इस हादसे ने बुलेट ट्रेन की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले रेल मंत्री सुरेश प्रभु और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पोलपट्टी खोल कर रख दी है. इस हादसे में यह साबित कर दिया है कि सेफ्टी के मामले में रेलवे पूरी तरह से फिसड्डी साबित हुआ है.

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हम आपको याद दिला दें कि जिस दिन नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी यानी 26 मई 2014, उसी दिन उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर में गोरखधाम एक्सप्रेस ने एक खड़ी मालगाड़ी में टक्कर मार दी थी इस हादसे में तकरीबन दो दर्जन लोग मारे गए थे. इस हादसे पर प्रधानमंत्री मोदी ने अफसोस जताया था, लेकिन उसके बाद रेलवे को बेहतर बनाने के लिए वायदे किए गए थे. रेलवे को विकास के मामले में सरपट दौड़ाने के लिए रेल मंत्री सुरेश प्रभु को लाया गया.

नहीं नजर आ रहा प्लान
वैसे देखें तो मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद अब तक का सबसे भयानक हादसा है. सबसे बड़ी बात यह है की मोदी सरकार का फोकस रेलवे को आगे बढ़ाने पर है और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह कहते रहे हैं की रेलवे ही देश के विकास का इंजन है, लेकिन इस विकास को बढ़ाने के लिए निवेश पर जोर दिया जाता रहा है. इनवेस्टमेंट कहां हो रहा है यह तो फिलहाल नजर नहीं आ रहा है. रेल मंत्री सुरेश प्रभु का दावा है कि रेलवे इन्फ्रास्ट्रक्चर को ताकतवर बनाने के लिए जीवन बीमा निगम से डेढ़ लाख करोड़ का ऋण लिया जा रहा है, इसमें से कुछ पैसा रेलवे के पास आ भी गया है, लेकिन इसे खर्च करने का अभी कोई प्लान नजर नहीं आ रहा है. हां यह जरूर हुआ है कि नई रेल लाइन को बिछाने के लिए कुछ घोषणा की गई है.

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कर्मचारियों की कमी
वैसे देखें तो रेलवे सेफ्टी के मामले में मौजूदा रेल नेटवर्क को सेफ और सिक्योर बनाने के लिए पिछले ढाई साल में कोई बड़ी योजना सामने नहीं आई है. हालात इतने खराब है की भारतीय रेलवे की सेफ्टी से जुड़े 2 लाख पद खाली पड़े हैं. ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के जनरल सेक्रेटरी शिव गोपाल मिश्रा का कहना है की मौजूदा सरकार का कोई विजन नहीं है. रेलवे सेफ्टी के मामले में सरकार दावे तो बड़े-बड़े करती है, लेकिन ग्राउंड रियलिटी कुछ और ही है. शिव गोपाल मिश्रा का कहना है कि एनसीआर डिविजन में जहां पर यह हादसा हुआ है वहीं पर 2000 गैंगमैन की जगह खाली है. ऐसे में रेलवे से सेफ्टी की उम्मीद की जाए तो क्या की जाए. उनके मुताबिक 1991 के बाद से तो रेलवे में सेफ्टी का कोई नया पद बनाया ही नहीं गया, जबकि बीते 24 साल में ट्रेनों की संख्या दोगुना से भी ज्यादा हो गई है.

सेफ्टी और सिक्योरिटी में रेल कर्मचारियों के खाली पड़े पदों की वजह से हालत यह हो चुकी है कि 8 घंटे की ड्यूटी में रेलकर्मियों की टीम को 3 ट्रेनों की बोगियों की मैन्टिनंस करने के लिए कहा जाता है. जब की एक ट्रेन की बोगियों की प्राइमरी मैन्टिनंस के लिए ही 4 घंटे लगते हैं. दूसरी तरफ रेलवे अधिकारियों के पदों का हाल देखिये की रेलवे बोर्ड में ही जॉइंट सेक्रेटरी पद के 85 अफसर कुर्सियों पर काबिज हैं और आए दिन नई पोस्टों का ऐलान होता रहता है.

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डिब्बे बदलने पर जोर
इंदौर सिटी और पटना के बीच चलने वाली दुर्घटनाग्रस्त ट्रेन सामान्य मेल एक्सप्रेस ट्रेन थी. अब लगातार रेलवे ट्रेनों की स्पीड बढ़ाने के लिए काम करने का दावा कर रहा है, लेकिन एक्सीडेंट रोकने के लिए रेलवे किस तकनीक और प्लान पर काम कर रहा है, इस पर रेलवे अफसर बात करने से ही कतराते हैं. वैसे देखें तो इस ट्रेन के डिब्बे आईसीएस तकनीक पर बने हुए साधारण डिब्बे थे. यह ऐसे डिब्बे हैं जिनको अगर 100 किलोमीटर प्रति घंटे के ऊपर से चलाया जाए और ऐसे में अचानक ब्रेक लगाना पड़े तो यह पटरियों पर स्किड कर जाते हैं. रेलवे के आला अफसरों को यह बात अच्छी तरह से मालूम है और इसी वजह से देशभर की ट्रेनों को एलएचबी कोचेज में तब्दील करने की बात बार-बार की जाती रही है. लेकिन देशभर में चलने वाली ज्यादातर ट्रेनें एलएचबी कोच से नहीं बल्कि साधारण कोच से बनी हुई रेल गाड़ियां हैं ऐसे में रेल पटरियों पर ज्यादा तेज दौड़ाने पर इनके दुर्घटनाग्रस्त होने की आशंका ज्यादा रहती है. इसके अलावा साधारण डिब्बों में एक्सीडेंट होने की अवस्था में अंदर बैठे लोगों को घातक चोट लगने की ज्यादा संभावना रहती है. कुछ ऐसा ही हुआ इंदौर पटना एक्सप्रेस के हादसे में.

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पटरियों पर मौसम का असर
एक दूसरी चीज जिसकी बार-बार बात की जा रही है वह है इस समय का मौसम जिसकी वजह से ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है की रेल की पटरी में फ्रैक्चर आ गया होगा. दरअसल होता यह है कि इस समय दिन और रात के तापमान में एक बड़ा अंतर होता है और इस वजह से पटरी रात में सिकुड़ती है और दिन में बढ़ जाती हैं. इस स्थिति में रेल पटरी में फ्रैक्चर होने की संभावना बढ़ जाती है. इस स्थिति से बचने के लिए रेलवे की पटरियों पर इंजीनियर के साथ गैंगमैन घूमते रहते हैं और उनको निर्देश है कि किसी भी पटरी को 24 घंटे में एक बार जरूर जांचा जाए. लेकिन रेलवे में मैन पावर की कमी को देखते हुए ऐसा लगता है किस को सुनिश्चित कर पाना मुश्किल है.

ऐसे में इस तरह के भयानक हादसे दोबारा फिर हो सकते हैं. उधर रेल ट्रैक को सेफ बनाने को लेकर कई तकनीकों का रेलवे सालों से ट्रायल ही कर रहा है. अब तक न तो उस पर जोर दिया गया है और न ही इस पर कोई रिसर्च किया जा रहा है अलबत्ता मोदी सरकार बुलेट ट्रेन का सपना जरूर दिखा रही है. रेलवे के आला अफसरों का कहना है जिस बुलेट ट्रेन की एक लाइन पर एक लाख करोड़ खर्च किया जा रहा है, अगर वहीँ रकम रेलवे के मौजूदा नेटवर्क में डाली जाय तो न सिर्फ सभी रूट पर 200 किमी की स्पीड पर ट्रेनें चल सकतीं बल्कि सफर सेफ भी बन सकता है.

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