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फेक न्यूज को लेकर मुश्किल में वॉट्सएप, सरकार की सख्ती के बाद कार्रवाई का दिया भरोसा

मंगलवार को भारत सरकार ने अपने बयान में सख्त रुख अपनाते हुए इस मैसेजिंग सर्विस को आगाह किया था और गैर जिम्मेदाराना रुख अपनाने का आरोप लगाया था.

प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो
मोनिका गुप्ता/बालकृष्ण/खुशदीप सहगल
  • नई दिल्ली,
  • 04 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 6:51 PM IST

सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ (फर्जी खबरों) की भरमार की वजह से देश के कई हिस्सों में निर्दोष लोगों की पीट पीट कर हत्या कर दी गई. भारत सरकार ने वॉट्सएप को अपने प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग होने से रोकने में नाकाम रहने पर मंगलवार को आगाह किया था.

वॉट्सएप ने बुधवार को भारत सरकार को भेजे जवाब में कहा है कि वह इस तरह की घटनाओं को लेकर ‘भयभीत’ है. वॉट्सएप ने फेक न्यूज और अफवाहों के ‘आतंक’ के खिलाफ समुचित कदम उठाने का आश्वासन भी दिया है.

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बता दें कि मंगलवार को भारत सरकार ने अपने बयान में सख्त रुख अपनाते हुए इस मैसेजिंग सर्विस को आगाह किया था और गैर जिम्मेदाराना रुख अपनाने का आरोप लगाया था. वॉट्सएप ने भारत सरकार को लिखी चिट्ठी में कहा है कि वो लोगों की सुरक्षा को लेकर गहराई से चिंतित है और साथ ही उसने फेक न्यूज और अफवाहों के आतंक से लड़ने के कदम उठाए हैं.  

वॉट्सएप ने चिट्ठी में कहा है कि हम हिंसा की इन खौफनाक घटनाओं को लेकर भयभीत है और आपने जो अहम मुद्दे उठाए हैं उन पर जवाब में तेजी से कार्रवाई करना चाहते हैं. कंपनी के मुताबिक वो भारतीय शोधकर्ताओं के साथ समस्या को अच्छी तरह समझने के लिए काम कर रहे हैं. साथ ही ऐसे बदलाव किए जा रहे हैं जिससे फर्जी संदेशों को फैलने से रोका जा सके.

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दरअसल ना सिर्फ वॉट्सएप बल्कि सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफॉर्म्स को भी फर्जी खबरों के प्रसार को प्रभावी ढंग से ना रोक पाने के लिए हालिया वक्त में भारी दबाव से गुजरना पड़ रहा है. व्हाट्सएप की पेरेंट कंपनी फेसबुक पहले ही मान चुकी है कि फेक न्यूज बड़ी चुनौती है. फेसबुक की ओर से इस बारे मे कई कदम भी उठाए जा चुके हैं.    

फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने इस साल 19 जनवरी को अपनी पोस्ट में आगाह किया था, ‘दुनिया में आज बहुत ज्यादा सनसनी, गलत सूचनाएं और ध्रुवीकरण है. सोशल मीडिया लोगों को पहले की तुलना में कहीं तेजी से सूचनाएं पहुंचाने का काम कर रहा है. और हमने इन समस्याओं को सही तरह से नहीं निपटा तो हम इन समस्याओं को और विकराल होता देखेंगे.’ जकरबर्ग की ये भविष्यवाणी भारत में खतरनाक ढंग से सही भी साबित हो गई.

बता दें कि सोशल प्लेटफॉर्म्स पर बच्चों को अगवा करने की अफवाहों के चलते एक साल में कम से कम 29 लोगों को पीट पीट कर मार डाला गया.  

ऐसे में सवाल ये है कि क्या टेक्नोलॉजी कंपनियां फेक न्यूज़ की चुनौती से निपटने के लिए उस स्तर पर कोशिशें नहीं कर रही हैं जिस स्तर पर उन्हें करनी चाहिए. दिल्ली स्थित साइबर एक्सपर्ट जितिन जैन का कहना है, ‘अगर यही कंपनियां एडवरटाइजिंग के लिए इंटरनेट के इस्तेमाल के आपके तौर तरीकों को सटीकता के साथ ट्रैक कर सकती हैं, आपको बैठकों, फ्लाइट सूचनाओं और होटल बुकिंग्स के लिए अपडेट करने के लिए आपकी मेल्स को स्कैन कर सकती हैं तो वो क्यों नहीं हिंसा, फेक न्यूज और मॉर्फ्ड तस्वीरों-वीडियो से जुड़े कंटेट को फिल्टर कर सकतीं?’

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जैन कहते हैं कि इन कंपनियों का मुख्य फोकस उन क्षेत्रों पर रहता है जहां से वो धन अर्जित कर सकें. ऐसे में क्या तकनीक के सहारे फेक न्यूज को छान कर अलग करने के लिए फुलप्रूफ कदम उठाए जा सकते हैं?  इसका जवाब इस बात में छुपा है कि क्या फेक या फर्जी है और क्या नहीं, इसे परिभाषित किया जाए और इसकी पुख्ता पहचान की जाए.

फेसबुक की सोशल प्लेटफॉर्म के न्यूजरूम पेज पर एक शॉर्ट फिल्म ‘फाइट अगेंस्ट मिसइंफॉर्मेंशन’ इन्हीं सब सवालों और जिज्ञासाओं का जवाब ढूंढने की कोशिश करती है.

फेसबुक के न्यू फीड इंटिग्रिटी वर्टिकल में प्रोडक्ट मैनेजर टिसा लियोन्स का इस चुनौती पर कहना है, “मेरा मानना है कि इस तरह का अतिरेक वाला कदम बुरा होगा कि फेसबुक कर्मचारियों की ओर से लोग जो कुछ भी पोस्ट करने की कोशिश करते हैं, उस सबकी ही समीक्षा की जाए. साथ ही उनकी तरफ से ये तय किया जाए कि पोस्ट का कंटेट झूठा है या सच्चा. फिर उसी के हिसाब से तय किया जाए कि कंटेट को प्लेटफॉर्म पर रहने दिया जाए या नहीं.’

लियोन्स ने कहा, ‘मेरा ये भी मानना है कि ये भी बुरा होगा कि हम किसी तरह की जिम्मेदारी ना लें और हेट स्पीच और हिंसा को मोटे तौर पर वितरित होने दें. ये पर्याप्त जिम्मेदारी लेने से पल्ला झाडने जैसा होगा. सही रास्ता या जवाब इन दोनों के मध्य में है...लेकिन वो एक बड़ा मध्य है.’   

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न्यूज फीड इंटिग्रिटी सेक्शन में ही एक और प्रोडक्ट मैनेजर एंटोनिया वुडफोर्ड मानती हैं कि अगर कोई भ्रामक फोटो या वीडियो अपलोड करता है तो ये बहुत ज्यादा चुनौती वाला हो जाता है. क्योंकि वो ज्यादा विजुअल होते हैं और उन्हें देखना आपके लिए मुश्किल हो जाता है. साथ ही ये यकीन ना करना कि ये सच नहीं है.

फेसबुक न्यूजरूम ने सोशल मीडिया पर फेक न्यूज को रोकने के लिए संभावित कदमों को लिस्ट किया है. फेसबुक के न्यूजरूम का कहना है, ‘इस दिशा में कामयाबी के लिए सबसे बड़ा कदम अफवाहों की मिल की तरह काम करने वाले डिजिटल स्पैमर्स की पहचान करना है. फेसबुक पर फैलाई जाने वाली भ्रामक सूचनाओं के पीछे एक अर्थशास्त्र भी काम करता है. अगर स्पैमर्स को फर्जी कहानियों पर क्लिक करने वाले पर्याप्त लोग मिल जाते हैं और वो उनकी साइट्स पर आते हैं तो वो वहां दिखाए जाने वाले एड्स के जरिए मोटा पैसा कमाते हैं.ऐसा करने के बाद कि इस तरह के घोटालों के जरिए पैसे बनाने का स्कोप ना रहे, हम फेसबुक पर झूठी खबरों को फैलाने की उनकी मंशा को नष्ट कर देते हैं. हम स्पैमर्स की ओर से सामान्य तौर पर आजमाए जाने वाले हथकंडों की पहचान कर रहे हैं और न्यूज फीड में उस तरह की स्टोरीज के वितरण को घटा रहे हैं.’

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फेसबुक का जोर देकर कहना है कि वो ऐसे सभी पेजों और वेबसाइटों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है जो बार बार फर्जी खबरों को शेयर करते हैं. ऐसा करने से उनका समूचा न्यूज फीड वितरण घटेगा. फर्जी संदेशों को अग्रसारित करना भारत में बड़ी समस्या बन गया है. सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म्स की उपलब्धता ने इस समस्या को कई गुणा और बढ़ा दिया है. वॉट्सएप की तरफ से एक अपडेट पर काम किया जा रहा है जिसमें फॉरवर्ड किए जाने वाले टेक्स्ट पर ये शीर्षक होगा कि ये टेक्स्ट ओरिजनल नहीं है.  

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