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64 साल में बाढ़ से 1 लाख लोगों की मौत, 3.65 लाख करोड़ का नुकसान, फिर भी हम नहीं सुधरे

पिछले साल मार्च में राज्यसभा में बारिश और बाढ़ से जुड़े पूछे गए एक सवाल पर केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि 1953 से लेकर 2017 तक बारिश और बाढ़ की वजह से देश को 3 लाख 65 हजार 860 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था.

मुंबई में बारिश से हर साल करोड़ों का नुकसान होता है (फाइल) मुंबई में बारिश से हर साल करोड़ों का नुकसान होता है (फाइल)
सुरेंद्र कुमार वर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 02 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 8:29 AM IST

जून महीना बीत जाने के बाद भी राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली समेत उत्तर भारत को जोरदार बारिश का इंतजार है, वहीं मॉनसून की कमी से गर्मी और तपिश भी लगातार बढ़ रही है. वहीं दूसरी ओर आर्थिक राजधानी मुंबई और उसके आसपास के इलाकों में मूसलाधार बारिश हो रही है, जिससे अब तक 16 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. झमाझम बारिश से मुंबई की रफ्तार पर थम गई है, जगह-जगह सड़कों पर पानी भर गया, रेलवे ट्रैक पर पानी भर जाने से ट्रेनों के परिचालन पर असर पड़ा है.

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एक ओर सूखा तो दूसरी ओर बारिश. समय से बारिश न हो तो सूखे की स्थिति बन जाती है. बारिश अधिक हो और फिर सूखे की स्थिति दोनों ही स्थिति में सबसे ज्यादा असर खेती पर पड़ता है. यह स्थिति दोनों ही हाल में ठीक नहीं. इंसानों के साथ-साथ पशु-पक्षियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. सूखे और इसकी वजह से भीषण गर्मी तथा बाढ़ से हर साल देश को जन-धन की भारी क्षति होती है. इन 2 प्राकृतिक आपदाओं की वजह से आजादी के बाद से ही न सिर्फ लाखों की संख्या में लोग मारे गए बल्कि कई लाख करोड़ रुपए का नुकसान भी देश को उठाना पड़ा है.

3 लाख करोड़ रुपए का नुकसान

उत्तर भारत में भले ही अभी बारिश का इंतजार किया जा रहा हो लेकिन जब इसकी शुरुआत होती है तो इससे जुड़ी तबाही हर तरह की तबाही को पीछे छोड़ देती है. भारी बारिश से हर साल मुंबई के अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पूर्वोत्तर भारत समेत कई राज्य प्रभावित होते हैं. हर साल तबाही के दौरान और इसके बाद इससे बचने के उपायों पर जमकर चर्चा और बहस भी होती है, लेकिन वक्त गुजरने के साथ इसे भुला दिया जाता है. इस बार भी बाढ़ से बचने को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं.

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पिछले साल मार्च में राज्यसभा में बारिश और बाढ़ से जुड़े पूछे गए एक सवाल पर केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि 1953 से लेकर 2017 तक बारिश और बाढ़ की वजह से देश को 3 लाख 65 हजार 860 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था. 1 लाख से ज्यादा लोग (1,07,487) बाढ़ और बारिश की भेंट चढ़ गए.

1977 में आई सबसे बड़ी विपदा

सरकार की ओर से कहा गया कि 1953 से 2017 के बीच भारी बारिश और बाढ़ से हुई तबाही में इन गुजरे 64 सालों में कुल 1,07,487 लोग इस विनाश की भेंट चढ़ गए. जन हानि के आधार पर 1977 में आई प्राकृतिक आपदा सबसे विनाशकारी थी क्योंकि इस साल सबसे ज्यादा 11,316 लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी.

1977 की विपदा के 11 साल बाद दूसरी सबसे बड़ी विपदा आई 1988 में जिसमें 4,252 लोगों की मौत हो गई. बीते 64 सालों में 6 बार बाढ़ के कारण 3 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई. सरकार की ओर से पेश आंकड़ों में 1953 में बाढ़ आपदा में सबसे कम 37 लोग मारे गए. इसके बाद 1965 में 79 लोगों की मौत हुई. बाढ़ और भारी बारिश से हर साल होने वाली मौतों में कोई कमी नहीं आ रही.

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हर साल 1700 की जाती है जान

1976 से लेकर 2017 तक हर साल (1999 में 745 और 2012 में 933 मौतों को छोड़कर) इस प्राकृतिक विपदा से मरने वालों की संख्या 1 हजार से ज्यादा ही रही है. औसतन हर साल 1,654 लोग पानी की आपदा के भेंट चढ़ जाते हैं.

जल संबंधी आपदा से अगर फसल, घर और सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान होने की बात करें तो बीते 64 सालों में 3,65,860 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. 2013 और 2015 का साल सबसे विनाशकारी साल साबित हुआ. 2013 में उत्तराखंड में मूसलाधार बारिश ने अपनी विनाशलीला दिखाई जिसमें 36937.843 करोड़ रुपए सार्वजनिक संपत्ति बारिश की भेंट चढ़ गए. जबकि सार्वजनिक संपत्ति के साथ-साथ फसल और मकान को हुए नुकसान का आकलन करने पर यह नुकसान 47348.751 करोड़ रुपए तक रहा.

फसल और मकान को भारी नुकसान

2 साल बाद 2015 में आई प्राकृतिक आपदा से फसल और मकान के साथ-साथ सार्वजनिक संपत्ति (32,200.182 करोड़ रुपए) को भारी नुकसान हुआ जो पिछले 64 सालों में सबसे ज्यादा रहा. इस साल 57291.099 करोड़ इस आपदा में स्वाहा हो गए. हर साल औसतन जान के अलावा संपत्ति के रूप में 5628.628 करोड़ पानी में बह जाते हैं, लेकिन प्रशासन हर साल इसे सुधारने का वादा करता है जो सिर्फ जुबानी वादे होते हैं.

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दूसरी ओर बाढ़ से फसल और मकानों को सबसे कम नुकसान 1965 में हुआ और उस साल 7.135 करोड़ रुपए की संपत्ति ही बर्बाद हुई. 1967 से हर साल 150 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ जो साल दर साल बढ़ता ही चला गया और 1977 में यह नुकसान पहली बार हजार करोड़ के आंकड़े को पार कर गया.

भीषण गर्मी से 9 सालों में 6100 लोगों की मौत

बाढ़ से बेहिसाब विपदा आती है तो सूखे से भी कम तबाही नहीं होती. 2010 से लेकर 2018 तक सूखे की वजह से 6,100 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है, जिसमें 2015 में सबसे ज्यादा मौतें दर्ज की गई और यह इस दौरान हुई कुल मौतों का एक तिहाई है. इस दौरान सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित लोग आंध्र प्रदेश के रहे. संसद में दिए गए एक जवाब के अनुसार, 2015 में गर्मी और लू की वजह से 2081 लोग मारे गए. अविभाजित आंध्र प्रदेश में 2081 में अकेले 1,422 लोगों की मौत हो गई.

हालांकि भीषण गर्मी के कारण होने वाली मौतों की संख्या में कमी जरुर आई. 2016 में 700 और 2018 में 20 लोगों की मौत हुई. 2010 में गरमी की वजह से 269 लोग मारे गए.

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देश में प्राकृतिक आपदाओं से हर साल हजारों की संख्या में लोग मारे जाते हैं. बाढ़ की तबाही से जान-माल का भारी नुकसान होता ही है, साथ राजस्व को नुकसान पहुंचता है. वहीं सूखे और गरमी से भी लोगों को खासा तकलीफ उठानी पड़ती है. पिछले एक दशक में भीषण गर्मी ने धरती को बेहद गर्म कर दिया है और अब कई जगहों पर तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के करीब रहता है, लेकिन हम पर्यावरण को सुधारने की कोशिश करने की बात करते हैं पर हकीकत में कोई सुधार नहीं होता. बाढ़ की विभीषिका से बिहार, पूर्वोत्तर और यूपी समेत कई राज्य हर साल प्रभावित होते हैं, लेकिन आज तक हम कोई ठोस प्रगति नहीं हासिल कर सके. अभी हम बारिश का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन जब एक बार यह शुरू हो जाएगी तो हर जगह बाढ़ से घर ढहने, फसलों के बर्बाद होने और लोगों के मारे जाने की खबरों का सामना करना शुरू कर देंगे. अभी मुंबई की बारिश ने इसकी एक झलक दिखला ही दी है.

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