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26/11 के बाद PAK पर क्यों नहीं हुई एयर स्ट्राइक? पूर्व NSA एमके नारायणन ने बताई वजह

पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन के मुताबिक 26/11 मुंबई हमले के बाद तत्कालीन सरकार में पाकिस्तान पर जवाबी कार्रवाई को लेकर तमाम विकल्पों पर चर्चा हुई थी, लेकिन तब युद्ध में ना जाकर राजनयिक विकल्प ज्यादा मुनासिब समझा गया. 

26/11 मुंबई हमले में 170 लोगों की मौत हो गई थी (फाइल फोटो-पीटीआई) 26/11 मुंबई हमले में 170 लोगों की मौत हो गई थी (फाइल फोटो-पीटीआई)
aajtak.in
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  • 04 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 1:17 PM IST

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के बालाकोट में एयर स्ट्राइक कर जैश-ए-मोहम्मद के ट्रेनिंग सेंटर को तबाह कर दिया. वायुसेना की इस कार्रवाई पर स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सत्ता पक्ष के तमाम नेता, पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा 26/11 मुंबई हमले के बाद आतंक पर मजबूती से प्रहार करने का निर्णय न ले पाने को कमजोरी के तौर प्रचारित कर रहे हैं. ऐसे में तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) एमके नारायणन का कहना है कि भारत ने इस तरह का निर्णय इसलिए नहीं लिया क्योंकि यह युद्ध छेड़ने जैसा होता और यह राजनयिक मोर्चे पर भारत की दलील को कमजोर करता.

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पुलवामा में 14 फरवरी को हुए आत्मघाती हमले में सुरक्षाबलों के 40 जवान शहीद हो गए. इस घटना को जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खूनी इतिहास की सबसे बड़ी घटना बताया जा रहा है. यहां गौर करने वाली बात यह है कि पुलवामा में हुआ आतंकी हमला उस वक्त हुआ जब कुछ ही महीने बाद देश में आम चुनाव होने हैं. तो वहीं 26 नवंबर 2008 का मुंबई हमला भी 2009 के लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही हुआ था. मुंबई हमले के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) रहे एमके नारायणन ने एक अंग्रेजी अखबार में अपने लेख में बताया है कि लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ी उस समय की सरकार दुविधा में थी कि पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी ठिकानों पर हमला कर युद्ध की स्थिति में जाया जाय या राजनयिक विकल्प तलाशे जाएं.

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एमके नारायणन के मुताबिक मुंबई हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ संभावित कार्रवाई के विकल्पों पर व्यापक चर्चा हुई थी. जिसमें नियंत्रण रेखा और उसके पार आतंकवादियों के ट्रेनिंग कैंप पर इसी तरह की प्री-एम्पटिव स्ट्राइक की जाए जैसी पुलवामा हमले के बाद हुई है. लेकिन विस्तृत चर्चा के बाद इस विकल्प को छोड़ दिया गया. नारायणन का कहना है कि उस समय यह वास्तविकता थी और अभी भी है कि भारत के पास ऐसे सटीक हमले को सूक्ष्मता से अंजाम देने वाली स्पेशल फोर्स नहीं है जैसी अन्य देश- जैसे रूस की स्पेत्सनाज, जर्मनी की जीएसजी-9, अमेरिका के सील कमांडो और ब्रिटेन के एसएएस और एसबीएस की क्षमता है.

नारायणन का कहना है कि उस वक्त यह महसूस किया गया कि लश्कर या जैश के मुख्यालयों को सटीक निशाना बनाकर हमला नहीं किया जा सकता. वहीं सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के बीच इस बात पर भी चर्चा हुई कि क्या भारत को पाकिस्तान के वायुक्षेत्र का उल्लंघन करना चाहिए, लेकिन उस समय के सलाहकारों का मानना था कि इस तरह की कार्रवाई युद्ध से कम कुछ नहीं माना जाएगा. नारायणन का कहना है कि मुंबई हमले के जवाब में सैन्य कार्रवाई करने में विफलता को आज कुछ हलकों में बुरा-भला कहा जा रहा है, लेकिन यह याद रखने की आवश्यकता है कि भारत के कुछ बेहतरीन वर्ष 2009-2012 की अवधि के दौरान थे.

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पूर्व NSA एमके नारायणन का मानना है कि एक बार कदम उठाने के बाद अब पीछे नहीं हटा जा सकता. हालांकि भारतीय नेताओं को याद रखना चाहिए कि पिछले आतंकी हमलों के जवाब में भारत का संयम देश को विश्वसनीयता प्रदान करने का महत्वपूर्ण कारक रहा है. वहीं एयर स्ट्राइक को राजनयिक भाषा में प्री-एम्पटिव स्ट्राइक का कितना भी नाम दिया जाए, दुनिया में इसे युद्ध के तौर पर ही देखा जाएगा.

नारायणन के मुताबिक सवाल यह है कि अब भविष्य में भारत के शब्दों को कितना पवित्र माना जाएगा, वो भी ऐसे समय जब भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता की मांग कर रहा है. यह एक ऐसी चीज है जिसपर हमें विचार करने की जरूरत है.

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