
1857 में मंगल पांडे आजादी का बिगुल तो पहले ही बजा चुके थे. आजादी के मतवाले आगे बढ़ते गए और एक के बाद एक क्रांति होने लगीं. गोरखपुर की महान धरती पर हुए चौरी-चौरा कांड ने पूरे आंदोलन की दिशा ही बदल दी थी. वो तारीख थी 4 फरवरी, 1922. उपेक्षा की इंतेहा देखिए कि इतिहास की बहुत सी स्मृतियों में लंबे समये तक ये वारदात 5 फरवरी की तारीख पर भी दर्ज की जाती रही. वो भी तब जबकि इसका मुकदमा गोरखपुर जिला जेल से लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के आखिरी फैसला आने तक तकरीबन एक साल लगातार चला.
जानिए, चौरी-चौरा कांड की दास्तानः
- 4 फरवरी, 1922 को हुआ था चौरी-चौरा कांड. ये इतिहास की वो घटना थी, जिसने महात्मा गांधी को इस कदर परेशान कर दिया था कि उन्होंने अपना असहयोग आंदोलन वापस लेने का फैसला किया. चौरी-चौरा के सपूतों ने ब्रिटिश हुकूमत को हिलाकर रख दिया था.
- पुलिस ज्यादती से क्षुब्ध क्रांतिकारियों ने इस दिन चौरी-चौरा थाने में आग लगा दी थी, जिसमें थानाध्यक्ष समेत 22 पुलिसकर्मी जिंदा जल गए. घटना में 222 लोगों को आरोपी बनाया गया, जिसमें से 19 लोगों को दो जुलाई, 1923 को फांसी की सजा हुई थी.
- दरअसल अंग्रेजी शासन के विरोध में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी. उस समय यूपी का चौरी-चौरा ब्रिटिश कपड़ों और अन्य वस्तुओं की बड़ी मंडी हुआ करता था. आंदोलन के तहत देशवासी ब्रिटिश उपाधियों, सरकारी स्कूलों और अन्य वस्तुओं का त्याग कर रहे थे.
- इसी के तहत स्थानीय बाजार में भी विरोध जारी था. 2 फरवरी, 1922 को पुलिस ने आंदोलनकारियों के दो नेताओं को गिरफ्तार कर लिया. इसके विरोध में 4 फरवरी को करीब तीन हजार आंदोलनकारियों ने थाने के सामने प्रदर्शन कर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नारेबाजी की.
- इसे रोकने के लिए पुलिस ने हवाई फायरिंग की, लेकिन सत्याग्रहियों पर इसका असर नहीं हुआ. फिर पुलिस ने सीधे फायरिंग कर दी, इसमें तीन लोगों की मौत हो गई जबकि कई लोग घायल हुए. इसी बीच पुलिसकर्मियों की गोलियां खत्म हो गईं और वह थाने में छिप गए.
- साथियों की मौत से भड़के आक्रोशित क्रांतिकारियों ने थाने में आग लगा दी. इस घटना में तत्कालीन दरोगा गुप्तेश्वर सिंह समेत कुल 22 पुलिसकर्मी जलकर मारे गए. इस घटना की जानकारी मिलते ही गांधी जी ने अपना असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया.
- वहीं इस घटना के बाद से स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल क्रांतिकारियों के दो दल बन गए थे. एक था नरम दल और दूसरा गरम दल. शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, राम प्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद जैसे कई क्रांतिकारी गरम दल के नायक बने.
- पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने चौरी-चौरा की घटना के 60 साल बाद शहीद स्मारक भवन का 6 फरवरी, 1982 को शिलान्यास किया था. जबकि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. नरसिम्हा राव ने 19 जुलाई, 1993 को इसका लोकार्पण किया. चौरी-चौरा के आंदोलनकारियों की याद में बना यह स्मारक आज रख-रखाव के अभाव में बदहाल हो चुका है.