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सौ साल पहले फैली महामारी और उससे निपटने के लिए गांधी की जनभागीदारी

गांधी ने कबाड़ पड़े एक गोदाम को साफ-सुथरा कर इसे एक कामचलाऊ अस्पताल में तब्दील कर दिया. जिसके बाद सारे मरीजों को वहां पहुंचा दिया गया. बीमारी का प्रकोप देखते हुए गांधी नर्स को मरीजों को छूने नहीं देते थे. वे स्वंय ही मरीजों को देखते थे, उन्हें दवाई देते थे.

प्लेग महामारी के दौरान गांधी खुद ही बीमारों का करते रहे इलाज (फाइल फोटो) प्लेग महामारी के दौरान गांधी खुद ही बीमारों का करते रहे इलाज (फाइल फोटो)
दीपक सिंह स्वरोची
  • नई दिल्ली,
  • 30 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 2:11 PM IST

  • जोहान्सबर्ग में हिंदुस्तानी बस्ती में फैला था प्लेग
  • गांधी खुद उनका मल-मूत्र करते थे साफ
भारत में कोरोना वायरस के मामले 15 लाख के पार हो गए हैं. चंद दिनों में ही इस वायरस ने एक बड़ी आबादी को अपना शिकार बना लिया है. अब भी संक्रमण का फैलना जारी है और रोजाना 50 हजार केस सामने आ रहे हैं. ऐसी महामारियां नई नहीं हैं. न तो दुनिया के लिए और न ही हम भारतीयों के लिए. सौ साल पहले भी ऐसा ही एक संकट आया था और तब हजारों भारतीयों के लिए संकटमोचक बने थे बैरिस्टर मोहन दास जिन्हें दुनिया ने बाद में महात्मा कहा और हमने राष्ट्रपिता.

1904 में दक्षिण अफ्रीका के जोहानसबर्ग में हिंदुस्तानियों की आबादी में प्लेग फैल गया. उस दौरान महात्मा गांधी ने समुदाय और उसके नेतृत्व की जिम्मेदारी तय की और जनभागीदारी से महामारी का सामना किया.

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प्लेग अफ्रीका की हिंदुस्तानी बस्ती ‘कुली-लोकेशन’ में फैला था. ये बस्ती घनी आबादी वाली और गंदगी से सराबोर थी. बीमारी का पता चलते ही गांधी को वहां बुलाया गया. एक खाली पड़े मकान को अस्पताल के रूप में तैयार किया गया.

गांधी ने बीमार लोगों की सारी जिम्मेदारी अपने हाथों में ले ली. वे बीमारों को दवा देते, उनका मल-मूत्र तक साफ करते और इलाके की साफ-सफाई का भी ख्याल रखते. बीमार लोगों से बातचीत करके उनका मनोबल भी बढ़ाते. इन सभी कार्यों में महात्मा गांधी को उनके दोस्तों का भी खूब साथ मिला.

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जोहानसबर्ग म्युनिसिपैलिटी भी गांधी जी के काम से प्रभावित होकर उनकी मदद के लिए साथ आ गई. उसने एक गोदाम उनके हवाले कर दिया. साथ ही एक नर्स, ब्रांडी और दवाएं भेजी गईं. संक्रमितों और उनके संपर्क में आने वाले लोगों को ब्रांडी पिलाने के फरमान हुए.

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गांधी जी ने जल्द ही कबाड़ पड़े इस गोदाम को साफ-सुथरा कर इसे एक कामचलाऊ अस्पताल में तब्दील कर दिया. बीमारी का प्रकोप देखते हुए वे नर्स को मरीजों को छूने नहीं देते थे बल्कि स्वयं ही मरीजों को देखते थे, उन्हें दवाई देते थे. हालांकि गांधी ब्रांडी पिलाए जाने के खिलाफ थे. उन्होंने ना तो स्वयं पी और ना ही किसी और हिंदू को इसे लेने दिया.

गांधी ने डॉक्टर की इजाजत लेकर मरीजों का इलाज मिट्टी से करना शुरू किया. मरीजों को शरीर के जिस हिस्से में दर्द होता था, गांधी वहां पर मिट्टी की पट्टी रख देते थे. गांधी ने तीन मरीजों पर मिट्टी की पट्टी का प्रयोग किया था, जिनमें से दो लोग एकदम ठीक हो गए.

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वहीं कई सारे मरीज अब भी बीमारी से जूझ रहे थे. इन सभी को हिंदू बस्ती से दूर बने संक्रामक रोगों के एक अस्पताल में भर्ती किया गया. जहां पर डॉक्टर और नर्स मरीजों की देखभाल करने लगे. जिस लोकेशन पर संक्रमित हिंदू आबादी रहा करती थी, उसे गांधी की मदद से खाली करवा लिया गया. बाद में जोहानसबर्ग म्युनिसिपैलिटी ने उसे जला दिया, क्योंकि वहां के मार्केट के आस-पास कई मरे हुए चूहे मिले थे. इस घटना के बाद उस जगह से प्लेग का प्रकोप टल गया.

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महात्मा गांधी अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ में इस बात का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि महामारी के दौर में उन्होंने और उनके साथी सेवकों ने अपना भोजन घटा लिया था. गांधी रात का भोजन नहीं करते थे. इस प्रयोग को लेकर गांधी का तर्क था कि जब आसपास महामारी की हवा हो तब पेट जितना हल्का रहे उतना अच्छा.

गांधी मरीजों की देखभाल में लगे रहते थे. इसलिए वे दोपहर का भोजन, जिस भोजनालय में करते थे वहां वे तय समय से पहले ही पहुंच जाते थे. जिससे दूसरे लोगों तक संक्रमण ना फैले. प्लेग जैसी महामारी के बीच भी उन्होंने अपना सेवा भाव बनाए रखा. गांधी खुद भी आश्चर्यचकित थे कि संक्रमितों के बीच रहने के बावजूद भी वो संक्रमण से कैसे बच गए.

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गांधी पीस फाउंडेशन के अध्यक्ष कुमार प्रशांत उनकी सेवा-निष्ठा को लेकर कहते हैं कि गांधी सबको साथ लेकर चलने में विश्वास करते थे. बहुत सारे लोग थे जो आंदोलन में उनके साथ नहीं थे या जो आंदोलन के विरोधी थे. लेकिन गांधी ने संकट के समय में भी उनको जोड़ कर रखने का काम किया. उनके साथ मदनमोहन मालवीय भी होते थे और वो अंबेडकर को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश करते थे. कम्युनिस्टों को लेकर भी उनका यही रुख था.

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वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन बताते हैं कि गांधी बीमार का साथ देते हुए बीमारी से लड़ने में यकीन रखते थे. वो अपने से ज्यादा दूसरों की साफ-सफाई करने पर ध्यान देते थे. गंदगी की सफाई के लिए खुद नाले में उतर जाते थे. लोगों को जोड़कर एक मुहिम तैयार करते थे. वो मेडिकल सिस्टम को धंधा बनाने के खिलाफ थे. उनकी कोशिश थी कि लोगों में अपनी बीमारी को लेकर जागरूकता होनी चाहिए. साथ ही इसके इलाज के लिए घरेलू उपचार पर ज्यादा जोर दिया जाए, क्योंकि ये सभी वर्गों के लोगों के लिए सुलभ है.

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महामारी पर गांधी के विचार आज कोरोना काल में भी प्रासंगिक हैं. स्वच्छता पर उनका जोर कोरोना को फैलने से रोकने में भी मददगार है. लोगों को आत्मनिर्भर और गांव को सशक्त बनाने की उनकी कोशिशें इस आर्थिक संकट के दौर से निकलने का कारगर तरीका हैं. कोरोना का प्रकोप शुरू होते ही मुनाफे की होड़ में फंसे अस्पतालों-दवा कंपनियों के लिए भी गांधी के सिद्धांत एक सबक हैं.

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