
गंगा को मोक्षदायिनी नदी कहा जाता है, लेकिन बदलते भारत की तस्वीर ने नदियों को भी बदलकर रख दिया. विकास की पटरी पर दौड़ते शहरों ने इन नदियों की सांसे ही रोक दी है, लेकिन अब मोदी सरकार और दिल्ली सरकार दोनों ने ही गंगा और यमुना को साफ करने का लक्ष्य बनाया है. इसके लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल किया जाएगा. गंगा को अब जैविक तकनीक से साफ किया जाएगा.
क्या साफ होगी गंगा और यमुना?
गंगा और यमुना को अविरल करने को लेकर इसके पहले भी कई प्लान लाए जा चुके हैं. सवाल ये है कि क्या गंगा और यमुना साफ होगी? गंगा और यमुना का पानी बहुत मैला हो चुका है. गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है. वह आस्था और संस्कारों की आत्मा भी है. गंगा सफाई के नाम पर हजारों करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए, लेकिन गंगा साफ नहीं हो पाई. जहां मोदी सरकार 'नमामि गंगा परियोजना' के तहत एक बार फिर गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की शुरुआत कर चुकी है, तो वहीं यमुना के लिए दिल्ली सरकार भी कई योजनाओं पर काम कर रही है. हालांकि, इसका कोई खास नतीजा नहीं निकला है.
सात बड़े राज्यों से होकर गुजरती है गंगा
दरअसल, गंगा की लंबाई करीब 2510 किलोमीटर है और ये देश के सात बड़े राज्यों से होकर गुजरती है. जैसे-जैसे गंगा बड़े-बड़े शहरों से गुजरती है. वैसे-वैसे शहर को कचरा और गंदा पानी सीधे इसके पानी में मिलता है. 2510 किलोमीटर के गंगा के सफर में 140 बड़े नाले हैं, जिसका गंदा पानी सीधे गंगा में गिरता है. यही हाल यमुना का भी है. दिल्ली में घुसते ही यमुना काले पानी में तब्दील हो जाती है. नाला है या नदी पता ही नहीं चलता.
क्या जैविक तकनीक से साफ होगी यमुना
यमुना सफाई को लेकर दिल्ली सरकार ने जापानी तकनीक से यमुना की सफाई पर मीटिंग भी की थी, जिसमें US ENVIRON नाम की कंपनी ने प्रेजेंटेशन दिया था. मीटिंग में दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के अलावा दिल्ली के जल मंत्री कपिल मिश्रा भी मौजूद थे. कंपनी के प्रबंध निदेशक (एमडी) यूएस शर्मा ने पटना में गंगा नदी में गिरने वाले बाकरगंज नाले की इस तकनीक से हो रही सफाई का पायलट प्रोजेक्ट भी उन्हें दिखाया. यह काम केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की मंजूरी से हो रहा है. कंपनी का दावा है कि गंगा में गिरने वाले 140 नालों को दो से तीन साल में साफ किया जा सकेगा. दिल्ली के सीएम ने उन्हें टेक्निकल स्टडी के बाद काम सौंपने का भरोसा दिया है.
आखिर क्या है जैविक तकनीक
इस तकनीक में ज्वालामुखी की राख से पानी को साफ किया जाता है. उसके बाद इसे ब्लॉक में मिलाकर इको बायो ब्लॉक तैयार कर दिया जाता है. इको बायो ब्लॉक से इंटरसेप्टर बनाए जाते हैं, जो नालों में एक निश्चित दूरी पर डाल दिए जाते हैं. नाले का गंदा पानी उससे टकराता है और पानी साफ होने लगता है. साथ ही इको बायो ब्लॉक के रसायन में 20 तरह के जीवाणु होते हैं, जो पानी के संपर्क में आते ही सक्रिय हो जाते हैं. इसे एरोबिक तकनीक कहा जाता है. प्रदूषित पानी इनही जीवाणुओं का भोजन होता है. ये जीवाणु 10 से 70 डिग्री सेल्सियस तापमान में पानी साफ करते हैं.
दस साल तक साफ होता रहेगा पानी
एक बार ब्लॉक बनाने पर दस साल तक चाहे नाले में जितनी भी गंदगी होगी वह साफ होती जाएगी. दस साल बाद इस प्रक्रिया को दोहराना तभी पड़ेगा जब वापस उसी हाल में नाले हो जाएंगे. अगर गंदगी गंगा और यमुना में जाने से रुक जाए और एक निश्चित मात्रा में पानी हर समय यमुना में रहे तो पानी के बहाव के साथ स्वाभाविक गंदगी दूर हो जाएगी. जापान समेत कई देशों में इसके सफल प्रयोग हो चुके हैं. यूएस की कंपनी का दावा है कि वह एक साथ देश की दोनों प्रमुख नदियों में गिरने वाले नालों को साफ करने की क्षमता रखती है.