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गोविंदाचार्य की अगुवाई में EC से मिले बुद्धिजीवी, चंदे पर सख्ती की मांग

प्रतिनिधिमंडल की अगुआई कर रहे गोविंदाचार्य ने कहा कि फुल कमीशन के सामने हमने कहा कि मौजूदा नियम से तो कुछ नहीं होने वाला है इसके लिए राजनीतिक पार्टियों पर और सख्ती करनी होगी.

गोविंदाचार्य गोविंदाचार्य
संजय शर्मा/अहमद अजीम
  • नई दिल्ली,
  • 23 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 8:53 PM IST

चुनावों में कालेधन के इस्तेमाल को रोकने की कवायद में एक ओर चुनाव आयोग ने केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड को 253 ऐसी राजनीतिक पार्टियों की सूची सौंपी है जिन्होंने अब तक कोई चुनाव नहीं लड़ा और ना ही आमदनी खर्च का कोई ब्यौरा सौंपा. अब बोर्ड इन कथित राजनीतिक पार्टियों की कारगुजारियों की पड़ताल करेगा. वहीं दूसरी ओर जनता की ओर से भी आयोग को ज्ञापन सौंपा गया कि राजनीतिक पार्टियों को 20 हजार रुपये तक बेनामी चंदा लेने की छूट पर भी सख्ती और पारदर्शिता बढ़ाने की मांग की.

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यानी आयकर में छूट हो या फिर बेनामी चंदा लेने का मामला राजनीतिक पार्टियों को ही छूट क्यों.पिछले दरवाजे मिल रही छूट पर सवाल खड़े करते हुए कई बुद्धिजीवी और विचारकों ने चुनाव आयोग से मुलाकात की और अपनी मांगों और सुझावों का ज्ञापन भी आयोग को दिया. प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि आयोग ने इन मांगों पर जल्दी ही ठोस कार्रवाई करने का भरोसा दिया है, प्रतिनिधिमंडल की अगुआई कर रहे गोविंदाचार्य ने कहा कि फुल कमीशन के सामने हमने कहा कि मौजूदा नियम से तो कुछ नहीं होने वाला है इसके लिए राजनीतिक पार्टियों पर और सख्ती करनी होगी.

राजनीतिक पार्टियों पर लागू हो नियम

गोविंदाचार्य बोले कि क्योंकि जनता का भी मानना है कि सिर्फ हम पर ही सख्ती क्यों जबकि राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ बड़ी तादाद में धन की हेराफेरी के सबूत उजागर होते रहते हैं. सरकार डिजिटल पेमेंट की वकालत पारदर्शिता के लिए करती है, तो राजनीतिक पार्टियों पर भी ये नियम लागू होना चाहिेए कि वो एक रुपये का भी चंदा डिजिटल मोड में ही स्वीकार कर सकेंगी. साथ ही नकदी दस दिन से ज्यादा अपने पास नहीं रखेंगी, उन्हें बैंक में जमा कराना ही होगा. मसलन 20 हजार रुपये तक का चंदा देने वाले 100 लोगों की रकम 20 लाख रुपये अगर बैंक में जमा करने हो तो पार्टियों को आय का स्रोत बताना लाजिमी होगा, इसी तरह से ही काले धन और बेहिसाब धन पर लगाम लगाई जा सकती है. वर्ना इस पूरी नोटबंदी की कवायद का कोई मतलब नहीं है.

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मुख्य चुनाव आयुक्त को  सौंपा प्रतिवेदन

केएन गोविंदाचार्य ने प्रतिनिधि मंडल के साथ मुख्य चुनाव आयुक्त को विस्तृत कानूनी प्रतिवेदन दिया जिसे एकता परिषद के पीवीराजगोपाल, सुश्री राजश्री चौधरी (नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रपौत्री), बासवराजपाटिल और चंद्रशेखर प्राण का अनुमोदन मिला है. गोविंदाचार्य ने पहले दिए गए प्रतिवदेन में कहा की चुनाव आयोग ने 23 अक्टूबर 2013 को सोशल मीडिया की गाइडलाइंस अधिसूचित की थी. प्रतिवेदन के अनुसार राजनीतिक दल वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक द्वारा नोटबंदी के लिए अधिसूचित कई कानूनों का पालन नहीं कर रहे हैं. 15 नवंबर को जारी अधिसूचना के अनुसार बैंक करंट अकाउंट में 12.5 लाख रुपए से अधिक जमा करने पर इसकी सूचना इनकम टैक्स विभाग को देना आवश्यक है जिससे जमा राशि की वैधता की जांच की जा सके. राजनीतिक दलों को इनकम टैक्स के चंदे में छूट है पर नोटबंदी कानून में कोई छूट नहीं है.

देश को कालेधन से मुक्त कराने के लिए पूरे देश की जनता जब संघर्ष कर रही है तब राजनीतिक दल मनीलाड्रिंग का नेटवर्क बन गए हैं जैसा की पूर्व चुनाव आयुक्त कृष्णमूर्ति ने आरोप लगाया है और अब राजनीतिक दल कानून का पालन करके जवाबदेह बनने की बजाय व्यापक चुनाव सुधार से मामले को टालने की कोशिश कर रहे हैं.

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चुनाव आयोग ने पहले ही दिया है आदेश

चुनाव आयोग द्वारा जारी 19 नवंबर 2014 के आदेश से स्पष्ट है कि राजनीतिक दल अपने पैसों को 10 दिनों के भीतर ही बैंक अकाउंट में जमा कराएं इसलिए 18 नवंबर के बाद किसी भी राजनीतिक दल द्वारा बैंक में जमा कराए गए 500 व 1000 के पुराने नोटों को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29 (सी) के अनुसार 20,000 रुपए से ऊपर के चंदे को चेक या डिजिटल पेमेंट से लेना चाहिए और नगद लेने पर उसका हिसाब रखना जरूरी है. राजनीतिक दलों द्वारा 75 फीसदी से अधिक चंदा नगदी लिया जाता है जिसे 20,000 रुपए से नीचे की प्राप्ति दिखाई जाती है.

प्रतिवेदन के अनुसार यदि बैंक में 20,000 रुपए से ऊपर नगद जमा किया जाए तो बगैर विवरण के उसे 29 (सी) का लाभ नहीं दिया जा सकता और ऐसी आमदनी पर राजनीतिक दलों को इनकम टैक्स की धारा 13 (ए) के तहत टैक्स देना चाहिए. प्रतिवेदन में 200 बोगस राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई का स्वागत किया गया है और चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों का रेगुलेटर बताते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त से राजनीतिक दलों के विरुद्ध कानून के सख्त अनुपालन सुनिश्चित कराने का निवेदन किया गया है.

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आयकर विभाग से चुनाव आयोग ने की बात

 

आयोग के सूत्रों के मुताबिक मीटिंग में आयोग के सामने आयकर विभाग के आला अधिकारियों की टीम भी थी, अनुमान है कि प्रतिनिधिमंडल की बातचीत के बाद आयोग ने आयकर अधिकारियों के साथ भी मीटिंग की है और अपने अधिकार क्षेत्र के तहत इस बाबत सख्त कदम उठाने पर विचार किया. तभी आयोग ने प्रतिनिधिमंडल से कहा भी है कि कुछ दिनों में आपको इस बारे में काफी कुछ दिखेगा. यानी फर्जी पार्टियों का रजिस्ट्रेशन खत्म करने का हक भले चुनाव आयोग को ना हो लेकिन उनकी आर्थिक कारगुजारियों का भंडाफोड़ कर उनको बेनकाब करने का हक तो आयोग को ही है. आयोग आयकर विभाग और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड से मिलकर इसी को अंजाम देना चाहता है.

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