
शाम ढलने को थी, दहलीज तक पानी पहुंच चुका था. मन घबरा रहा था, अब क्या होगा? जलस्तर लगातार बढ़ रहा था और उसी रफ्तार से अंधेरा भी छा रहा था. जब बाढ़ का पानी चौखट पार कर अंदर आने लगा, तब फैसला लेना पड़ा कि अब घर छोड़ना पड़ेगा. सवाल ये था कि रात का वक्त है, अब जाएं भी तो जाएं कहां? अगल-बगल के घरों में भी ताले लटकने लगे थे. क्योंकि धीरे-धीरे यमुना का पानी अपना रौद्र रूप दिखने लगा था.
दिल्ली के जैतपुर इलाके के खड्ढा कॉलोनी में रहने वाली माला वर्मा कहती हैं- 'इस इलाके में 10 साल से रहे हैं, लेकिन कभी ऐसा मंजर नहीं देखा था. बाढ़ पहले भी आती थी, लेकिन दहलीज से दूर ही रहती थी. घर छोड़ने की नौबत पहले कभी नहीं आई थी, इसलिए बीते बुधवार को जब 10 साल के बेटे ने पूछा कि मम्मी अब रात में कहां जाएंगे, तो उसे जवाब देते नहीं बन रहा था. मायूस होकर समझाना पड़ा कि जब तक बाढ़ का पानी कम नहीं हो जाता, तब तक किसी रिश्तेदार के घर रहेंगे, लेकिन बेटा अभी तो घर छोड़ना पड़ेगा और फिर एक-एक ईंट जोड़कर बनाया घर को कुछ ही मिनटों बाढ़ के हवाले कर दिया.'
दरअसल, पिछले तीन दिन से माला वर्मा अपने पति और बच्चों के साथ यमुना बांध के किनारे बैठकर जलस्तर कम होने का इंजतार कर रही हैं. वहीं कोई खाना दे देता है और कोई पानी पिला देता है. कुछ दूर पर एक रिश्तेदार का घर है, जहां तीन दिन से रात गुजरती है, लेकिन नींद नहीं आती. उनसे हमने केवल एक ही सवाल किया कि आखिर ये तीन दिन का वक्त कैसे बीता? वो बताते-बताते माला भावुक हो गईं और कहने लगीं... 'तिनका-तिनका जोड़कर घर बनाया था. घर छोड़ने का फैसला आसान नहीं होता है, लगता है कितनी जल्दी अपने घर पहुंच जाएं. केवल एक जोड़े कपड़े लेकर घर से निकल थे. सारी उम्मीदें अभी पानी में तैर रही हैं. अब जब धीरे-धीरे जलस्तर कम हो रहा है तो लगता है कि दो-दिन में घर वापस लौटेंगे. बस यहीं बैठकर तीन दिन से पानी के घटने का इंतजार करती हूं. रिश्तेदारों के भी फोन आते हैं, तो बात करते-करते रोने लग जाती हूं. क्योंकि परदेश में अपना एक घर था, जहां चैन से परिवार के साथ रहते थे, वही घर यमुना ने अपने में समा लिया है. अब तो बस उम्मीदें हैं कि एक दिन फिर अपने घर पहुंचेंगे.'
माला वर्मा जैसी यहां सैकड़ों सच्ची कहानियां हैं. यमुना में बाढ़ आने से दिल्ली-हरियाणा सीमा पर लगे बसंतपुर, खड्ढा कॉलोनी और जैतपुर में हजारों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है. इस इलाके में करीब 5000 घर बाढ़ से प्रभावित हुए हैं. इन इलाकों में हथिनीकुंड बैराज से छोड़े गए पानी ने खूब तांडव मचाया है. यहां रहने वाले अधिकतर लोग निम्न आय वर्ग के हैं, जिन्होंने पाई-पाई जोड़कर एक सपनों का आशियाना बनाया था.
बातचीत के दौरान Aajtak.in को स्थानीय लोगों ने बताया कि इस इलाके में यमुना के पानी का सबसे भयावह रूप गुरुवार को देखने को मिला था. वैसे जलस्तर का बढ़ना मंगलवार से ही शुरू हो गया था. अधिकतर लोग बुधवार से यमुना के किनारे शरण लिए हुए हैं. कई परिवार स्कूल, मंदिर और मस्जिद में रह रहे हैं, कुछ लोग आसपास में रिश्तेदारों के घर रात बिताने पहुंच जाते हैं. लेकिन बड़ी संख्या में लोग अब भी रात सड़कों के किनारे गुजार रहे हैं. हालांकि, बाढ़ पीड़ितों का कहना है कि सरकार ज्यादा से आम लोग मदद कर रहे हैं, खाने-पीने की चीजें मिल जा रही हैं. सरकार की तरह से भी खाना-पानी, शौचालय, मेडिकल की व्यवस्था की गई है. साथ ही NDRF की कई टीमें तैनात की गई हैं, जो बाढ़ में फंसे लोगों को मदद पहुंचा रही हैं.
लेकिन अपना घर, तो अपना ही होता है. फुटपॉथ पर जिंदगी कोई नहीं चाहता. ऐसे में हमारी मुलाकात एक परिवार से हुई, जो अपना घर वापस देखने जा रहे थे. तीन दिन से पानी घटने का इंतजार करने के बाद रविवार को जब पानी कम हुआ तो हिम्मत जुटाकर घर तक जाने को तैयार थे. हमसे बातचीत में उन्होंने कहा कि अब पानी थोड़ा कम हुआ. तीन दिन से इस पल का इंतजार कर रहे थे, अभी केवल घर देखने के लिए जा रहे हैं कि किस हालत में है. हालांकि, अभी भी घर में दो फीट से ज्यादा पानी है. लेकिन इस इलाके में बीते गुरुवार को करीब 6 से 8 फीट पानी था, एक मंजिल मकान करीब-करीब बाढ़ में डूब गया था.
सीमावर्ती इलाका होने की वजह से दिल्ली प्रशासन के लोग दिख जाते हैं. दूसरी तरफ हरियाणा की सीमा है, जहां फरीदाबाद प्रशासन के लोग तैनात हैं. इस इलाके में अधिकतर 50 से 100 गज में बने मकान हैं. मकानों के निर्माण में बाढ़ और भूकंप जैसे मापदंड़ का पालन नहीं किया गया है. जिससे केवल बाढ़ का पानी घुसने से ही भारी नुकसान हुआ है. कई मकानों के फर्श धंस गए हैं. कई मकानों की दीवारें भरभरा कर गिर गईं. ये तो शुरुआती नुकसान हैं, हफ्तेभर बाद ही सही नुकसान की तस्वीरें सामने आएंगी, क्योंकि अभी भी 90 फीसदी से ज्यादा लोग राहत शिविरों में या फिर यमुना तट पर जैसे-तैसे गुजारा कर रहे हैं. कुछ लोग NDRF टीम की मदद से नाव पर बैठकर अपने घर तक पहुंच रहे हैं और फिर लौटकर आपबीती बता रहे हैं कि कितना बड़ा नुकसान हुआ है.
हालांकि, पिछले चार दिन से घर नहीं पहुंचने का दर्द हर एक के चेहरे पर दिखा. हर कोई चाहता है कि NDRF की टीम एक बार उन्हें भी अपने घर लेकर जाए, जो संभव नहीं है. कुछ लोगों को जरूरतों के हिसाब से NDRF की टीम मदद कर रही हैं. क्योंकि, पीड़ितों की संख्या हजारों में हैं. हालांकि बाढ़ में फंसे सभी लोगों को निकालने में NDRF की टीम ने बड़ी भूमिका निभाई है.
इस बीच मदद की आस में कुछ लोग इधर-उधर भटकते दिखे. एक महिला में हमें ऐसी मिली, जो हर अपने घर तक पहुंचने के लिए पुलिसवाले से मदद की अपील कर रही थीं. हमने उनसे पूछा कि आखिर आप क्यों घर जाना चाहती हैं, तो उनकी परेशानी सुनकर हम भी मायूस गए. कहने लगीं बेटा 10 से ट्रॉमा सेंटर में भर्ती है. हमने तो बाढ़ से पहले ही घर छोड़ दिया था. लेकिन अब घर में कुछ जरूरी सामान है, जिसे निकालना चाहती हूं. इसलिए एक बार घर जाना चाहती हूं. फिर मैं अस्पताल चली जाऊंगी, जहां बेटा इंतजार कर रहा होगा. घर से कुछ भी नहीं निकाल सकी, अब एक बार देखना चाहती हूं कि पानी कम होने के बाद घर किस हालत में है.
इसी दौरान हमें एक और महिला मिली, जिसे किसी पड़ोसी ने आकर कहा कि आपके घर का ताला टूटा हुआ है, जब से उन्हें ये खबर मिली है, तभी से वो घर जाने के लिए परेशान हैं. लेकिन अभी भी घरों में काफी पानी भरा हुआ है. घर तक जाना खतरों से खाली नहीं है. ताला टूटने की खबर लोगों में बड़ी तेजी से फैल रही थी. हर किसी को अपने घर की चिंता सताने लगी. हालांकि, प्रशासन का कहना है कि ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है. पुलिस के साथ-साथ NDRF की टीमें गश्त लगा रही हैं, ताकि कोई बिना इजाजत पानी में न उतरे. क्योंकि सड़क के किनारे नाले बने हैं और अधिकतर नालियों में ढक्कन नहीं लगे हैं, थोड़ी-सी चूक से जान आफत में फंस सकती है. इसलिए किसी को भी बिना इजाजत पानी में उतरने नहीं दिया जा रहा है.
हमने दर्जनों लोगों से बात की सबने एक ही बात कहीं, घर से कुछ निकाल नहीं पाए, सारा खाने-पीने की चीजें बर्बाद हो गईं. क्योंकि अचानक घर छोड़ना पड़ा. प्रशासन ने कुछ ही मिनटों का समय दिया था, किसी तरह परिवार के साथ जान बचाकर बाहर निकल आए, अब लगता है कि घर जाएंगे, तो क्या खाएंगे, किस हाल में घर होगा. पिछले 5 दिन से घर पानी में डूबा है. जो समान में घर में है, सब सड़ने लगा है. उससे निपटना एक चुनौती होगी.
इस बीच एक युवक ने बताया कि सभी इलेक्ट्रॉनिक्स सामान खत्म हो चुके हैं. हर घर में फ्रीज, वॉशिंग मशीन, कूलर, पंखे, मिक्सी समेत तमाम तरह के इलेक्ट्रॉनिक्स सामान होते हैं, जो कबाड़ में बदल चुके हैं. पूरे घर की वारयिंग को नुकसान पहुंचा है. अब कब से फिर जिंदगी पटरी पर लौटेगी, इसके लिए लंबा इंतजार करना होगा.
इस बीच एक सवाल उठ रहा था कि ये जो घर बाढ़ में डूबे हैं, वो बिल्कुल यमुना नदी से सटे हैं, यहां से यमुना नदी महज 500 मीटर की दूरी पर है. बीच में कोई बांध नहीं है. जब-जब यमुना का जलस्तर बढ़ता होगा, इन इलाकों में बाढ़ खतरा बढ़ जाता होगा. फिर ऐसे इलाकों में लोगों ने घर बनाने का क्यों सोचा? जवाब में अधिकतर लोग कहते हैं कि उन्हें इस खतरे का अंदाजा नहीं था. इतना पानी आ जाएगा कि घरों में घुस आएगा और उन्हें घर छोड़कर जाना पड़ेगा. इस इलाके में अधिकांश लोग दूसरे राज्यों से आकर बसे हैं. कुछ लोग तो इस हालात को देखकर कह रहे हैं कि अब यहां रहना छोड़ देंगे. लेकिन अधिकतर बाढ़ पीड़ित कह रहे हैं कि जिंदगी भर कमाई घर में लगा दी है, कैसे छोड़ दें और कहां जाएंगे? दिल्ली से जैसे शहर में किसी तरह से एक घर अपना बनाया था. वो भी पानी में डूब गया है. इसलिए जीना-मरना अब यहीं होगा. बस अब केवल घर लौटने का इंतजार है.
इस बीच गंदगी भी एक बड़ी समस्या बन गई है. इस बाढ़ के पानी में कई मरे हुए जानवर बहकर आए हैं. जिससे बीमारी फैलने का खतरा है. अभी से बदबू आनी शुरू हो गई है. जब बाढ़ का पानी उतरेगा और लोग अपने घरों तक लौटेंगे, तो उन्हें संभलने के लिए हर तरह की मदद चाहिए, जहां से सरकार की भूमिका बढ़ जाएगी. बाढ़ पीड़ितों के लिए खाने-पीने के साथ इलाज और इलाके की सफाई को लेकर खास ध्यान देना होगा. ताकि इलाके में कोई बीमारी न फैले. लेकिन अभी तो बस हर चेहरा यमुना तट पर बैठकर तिल-तिल पानी के घटने का इंतजार कर रहा है.