Advertisement

नोटबंदी और GST से पर्यावरण पर पॉजीटिव असर, कार्बन उत्सर्जन घटा

2017 ग्लोबल कार्बन बजट रिपोर्ट के मुताबिक इस साल के अंत तक जीवाश्म ईंधन और औद्योगिक इस्तेमाल से निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन पिछले साल के मुकाबले दो फीसदी बढ़ सकता है

प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो
केशवानंद धर दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 13 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 4:09 PM IST

नोटबंदी और जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण आर्थिक फैसले अर्थव्यवस्था और कारोबार के लिए चाहे जैसे रहे हों लेकिन पर्यावरण पर इसका एक अच्छा प्रभाव पड़ा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2017 में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन पिछले 10 साल के औसत से काफी कम हुआ है. इसके पीछे नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदम ही मुख्य कारण माने जा रहे हैं.

Advertisement

2017 ग्लोबल कार्बन बजट रिपोर्ट के मुताबिक इस साल के अंत तक जीवाश्म ईंधन और औद्योगिक इस्तेमाल से निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन पिछले साल के मुकाबले दो फीसदी बढ़ सकता है.

रिपोर्ट के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि हालांकि भारत का उत्सर्जन भी 2017 में बढ़ने का अनुमान है. लेकिन ये पिछले साल के मुकाबले महज 2 फीसदी ज्यादा है. पिछले एक साल में भारत में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 6 फीसदी प्रतिवर्ष की औसत से बढ़ा है. पिछले साल ये आंकड़ा 6.7 फीसदी था. रिपोर्ट मानती है कि इसके पीछे भारत में सोलर एनर्जी के इस्तेमाल में आई तेजी है लेकिन रिपोर्ट ये भी कहती है कि अर्थव्यवस्था में आई मंदी भी इसकी वजह हो सकती है.

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सौर ऊर्जा क्षमता 2016 में तकरीबन दोगुनी होकर 12 गीगावॉट्स हुई थी लेकिन इस साल के उतसर्जन में आई कमी के कई कारण हैं, जिनमें आयात में कमी, जीडीपी में औद्योगिक और कृषि उत्पादों की हिस्सेदारी घटना, उपभोक्ता मांग में कमी, 2016 के आखिर में नोटबंदी के चलते कैश की अचानक पैदा हुई किल्लत और 2017 में आया गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी है. 

Advertisement

रिपोर्ट के मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था इन बाधाओं से पार पाने में सक्षम है इसलिए 2018 में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन फिर से 5 फीसदी से ज्यादा रह सकता है. जीवाश्म ईंधन और औद्योगिक इस्तेमाल से भारत का ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन 2.5 गीगाटन है दूसरी ओर वैश्विक स्तर पर ये 36.8 गीगाटन है. इसमें चीन की हिस्सेदारी 10.5 गीगाटन, अमेरिका की 5.3 गीगाटन, यूरोपीय यूनियन की 3.5 गीगाटन और बाकी दुनिया की 15.1 गीगाटन हिस्सेदारी है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement