
तीन साल में तीन बार हरियाणा जला और सत्ता के सिंहासन पर बैठे लोग तमाशाबीन बनकर दंगाइयों का नंगा नाच देखते रहे. सूबे में पिछले तीन सालों ऐसे तीन मौके आए हैं, जब कानून व्यवस्था नाम का खुलेआम मजाक बनाया गया है. इसमें दो बार तो अंध भक्ती में लीन भक्तों ने अपने संत को पुलिस की गिरफ्तारी से बचाने के लिए नंगा नाच किया. वहीं एक बार सूबे की सबसे संपन्न और ताकतवर जाति ने आरक्षण की मांग को लेकर कानून को अपने हाथ में लेकर सरे आम धज्जियां उड़ाते रहे, लेकिन सत्ता में बैठे लोगों पर फर्क नहीं पड़ा.
राम रहीम के गुंडों का आतंक
यौन शोषण केस में डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को सीबीआई कोर्ट के दोषी करार देते ही उनके समर्थक बेकाबू हो गए. हरियाणा-पंजाब से लेकर कई जगहों पर तोड़फोड़ और आगजनी कर रहे हैं. पुलिस और डेरा समर्थकों के बीच हुई हिंसा में 30 लोगों की मौत हो गई और करीब 250 लोग घायल हुए हैं. इतना ही नहीं डेरा क गुंडों ने रेलगाड़ियां, बसें सहित सरकारी संपत्तियों को जलाकर खाक कर दिया है. उन्होंने मीडिया पर भी हमला बोल दिया है. आजतक की टीम पर हमले के साथ ही ओबी वैन में आग लगा दी गई है. जबकि खट्टर सरकार को पहले से ही स्थिति बिगड़ने की खबर थी. इसके बावजूद उन्होंने राम रहीम के समर्थकों के खिलाफ कड़ा कदम नहीं उठा सके हैं.
आरक्षण की मांग पर जाटों ने किया शर्मसार
खट्टर सरकार में पहली बार हरियाणा नहीं जल रह है, बल्कि इससे पहले 2016 में भी इसी तरह सूबे की कानून व्यवस्था का मजाक बनाया जा चुका है. जाट समुदाय ने आरक्षण की मांग लेकर जो किया वह सूबे के लिए शर्मसार करने वाला था. जाट आंदोलनकारियों ने दुकानों, मकानों और संस्थानों को आग के हवाले कर दिया था. सड़कों पर उपद्रवियों का नंगा नाच चल रहा था और लोग उनके शिकार बन रहे थे बसों, ट्रेनों और अन्य वाहनों में आ लगाई जा रही थी और खुलेआम लूट हो रही थी.
इस हिंसा में 30 से ज्यादा लोगों की जान गई है और लगभग 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति का नुकसान हुआ. पुलिस हालात पर काबू पाने में बुरी तरह विफल हो गई तो सेना और अर्द्ध सैनिक बलों को तैनात किया गया. मुरथल में जालिमों ने महिलाओं को भी नहीं बख्शा और उनके कपड़े तक फाड़ दिए आरोप है कि महिलाओं और लड़कियों को उपद्रवी पास के खेतों में खींचकर ले गए और उनको हवस का शिकार बनाया.
रामपाल के भक्तों का कोहराम
बात 2014 की है जब सूबे में भुपिंदर सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली सरकार थी. इंजीनियर से बाब बने संत रामपाल के भी अंध भक्तों की लंबी फौज है. 2006 में स्वामी दयानंद की लिखी एक किताब पर संत रामपाल की टिप्पणी से आर्यसमाज औऱ समर्थकों के बीच हिंसक झड़प हुई. एक बार नहीं कई बार दोनों समर्थक आमने सामने हुए उसमें कई लोगों की जाने गई. इसी मामले में नवंबर 2014 में पेश होना था लेकिन वो नहीं पेश हुए, तो पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने उन्हें गिरफ्तार कर लाने को कहा. इसके बाद रामपाल समर्थक सतलोक आश्रम के चारों ओर मानव श्रृंखला बनाकर घेराबंदी कर रखी थी. युवा समर्थकों ने हेलमेट पहन कहने और उनके हाथों में लाठियां और हथियार के साथ लामबंद थे .
पुलिस और समर्थकों के बीच कई राउंड फायरिंग हुए. रामपाल को गिरफ्तार करने करीब 40 हजार जवानों को लगाया था, जिसमें रैपिड एक्शन फोर्स, नेवी कमांडो, सीआरपीएफ और राज्य पुलिस शामिल थे. इसके बाद भी पुलिस को समर्थकों ने नाको चने चबवा दिए. जबकि पुलिस प्रशासन ने आश्रम में रोजमर्रा के सामानों की सप्लाई बंद कर दी. कई दिन के बाद रामपाल को पुलिस गिरफ्तार कर पाई, लेकिन इस बीच आगजनी तोड़फोड़ जमकर हुई.
सत्ता का संत कनेक्शन
सूबे में राजनीतिक दल और राज्य की सरजमी पर फलने फूलने वाले संतों के बीच कुछ इस तरह गठबंधन है कि दोनों एक दूसरे के लिए ढाल बनकर काम करते हैं. राजनीतिक दल सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होने के लिए जहां इनका समर्थन लेते हैं. ऐसे में उनके खिलाफ कड़ा कदम उठाने से परहेज करते हैं. इसे उनकी मजबूरी कहा जाए या फिर सत्ता की लालसा . सूबे की कानून व्यवस्था के साथ जब खिलवाड़ इनके लोग करते हैं, तो सत्ता के सिंहासन पर बैठे लोग सिर्फ तमाशा देते हैं. जबकि ये गुंडे सरेआम लोगों के जानमाल का नुकसान पहुंचाने के साथ सरकारी संपत्तियों की जलाकर खाक कर देते हैं.