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जलप्रलय, कोरोना, फिर निपाह और अब सैलाब...2018 से केरल में तबाही के खौफनाक मंजर

साल 2018 में केरल में जो बाढ़ से तबाही देखी गई वो बीते 100 वर्षों में नहीं देखी गई. इस महात्रासदी में सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी. इडुक्की, वायनाड, त्रिवेंद्रम और पलक्कड जिले में सबसे ज्यादा बुरे हालात थे.

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aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 19 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 12:43 PM IST
  • 2018 में कोझ‍िकोड़ में पहले निपाह केस का पता चला था
  • कोरोना का पहला मामला भी केरल से आया था  

भारत में साक्षरता के मामले में केरल भले ही आज पहले पायदान पर हो, लेकिन साल 2018 के बाद से उसका आपदाओं से नाता नहीं टूट रहा है. जल प्रलय, कोरोना, निपाह वायरस से बुरी तरह प्रभावित रहने वाले केरल में अब बेहिसाब बारिश ने जो हालात बना दिए हैं, उससे निपटना फिर एक नई चुनौती है. 

फिलहाल केरल में लगातार हो रही बारिश से हालात बेहद गंभीर बने हुए हैं. लैंडस्लाइड और फ्लैश फ्लड के चलते कई जिलों में जनजीवन अस्त व्यस्त है. इस तबाही से राज्य भर में मरने वालों का आंकड़ा 27 पहुंच गया है. कोट्टायम में 14, इडुक्की में 10, तिरुवनंतपुरम, त्रिशूर और कोझीकोड जिले में एक-एक लोगों की मौत हुई है. 

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केरल में हो रही जबरदस्त बारिश से नदियों, तालाबों का जलस्तर बढ़ने के कारण 11 बांधों के लिए रेड अलर्ट जारी किया गया है. आज (मंगलवार) इडुक्की बांध का गेट खोला जाएगा. एशिया के सबसे ऊंचे इडुक्की डैम का जलस्तर इस वक्त 2,396.96 फुट है. सोमवार को पंबा नदी पर कक्की बांध के गेट खोले गए थे.

साल 2018 में आई थी महात्रासदी 

साल 2018 में केरल में जो बाढ़ से तबाही देखी गई थी वो बीते 100 वर्षों में नहीं देखी गई. इस महात्रासदी में सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी. इडुक्की, वायनाड, त्रिवेंद्रम और पलक्कड जिले में सबसे ज्यादा बुरे हालात थे. यहां जो हालात बने उसके बाद कई और मुल्क भी मदद के लिए आगे आए थे. वहीं, उन दिनों कहा जा रहा था कि पारिस्थितिक रूप से नाज़ुक पर्वत श्रृंखलाओं की रक्षा करने में सरकार की विफलता भी बाढ़ का एक बड़ा कारण था. 

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बीबीसी की एक रिपोर्ट में केरल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (KFRI) के पूर्व निदेशक डॉक्टर पीएस. एसा का भी मानना था कि ये सब इंसानों का किया-धरा है. प्राकृतिक आपदाएं हमेशा आती रही हैं, लेकिन हम इंसानों ने मुश्किलों को बढ़ा दिया है. पहाड़ी इलाकों में धड़ल्ले से होता निर्माण कार्य और ढलानों पर बनी इमारतों ने नदियों और नहरों के रास्ते संकरे कर दिए हैं. नदियों के पानी को बहने के लिए जगह ही नहीं बची है.

भूमि और आपदा प्रबंधन संस्थान, तिरुवनंतपुरम की ओर से साल 2004 में ही कई राज्यों से संपर्क किया गया था. इस दौरान बाढ़ वाले इलाकों को जोनों बांटने पर रंजामंदी हुई थी, लेकिन न तो केरल और न ही किसी राज्य ने इस बारे में कोई परवाह दिखाई. इसे भी 2018 के त्रासदी का बड़ा कारण माना गया था. 

निपाह वायरस का खौफ

2018 में कोझ‍िकोड़ में पहले निपाह केस का पता चला था, उस वक्‍त के आउटब्रेक में 19 लोग संक्रमित हुए थे जिनमें से 17 की मौत हो गई थी. इस वायरस ने राज्य के लोगों को खौफ में डाल दिया था. इसको लेकर अफवाहें भी खूब चली थीं. हालांकि अब तक निपाह वायरस के जितने भी आउटब्रेक्‍स हुए हैं, सभी स्‍थानीय स्‍तर पर मैनेज कर लिए गए हैं. कोरोना के मुकाबले यह थोड़ा कम संक्रमणकारी है.  

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SARS-CoV-2 के मुकाबले, निपाह वायरस बेहद धीमी रफ्तार से फैलता है, मगर यह काफी जानलेवा है. पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में जब पहला आउटब्रेक हुआ था तो 66 संक्रमितों में से 45 की जान चली गई थी. 

कोरोना का पहला केस केरल में आया 

भारत में कोरोना का पहले केस केरल में ही आया था. चीन के वुहान विश्वविद्यालय से आई एक छात्रा में कोरोना वायरस के लक्षण पाए गए थे. इस महामारी ने पूरे देश में कोहराम मचा हुआ है, लेकिन अब इसकी धीमी पड़ती दिखाई दे रही है. हालांकि केरल में अभी भी हालात में कोई खास सुधार नहीं दिखाई दे रहा है. वहां बीते कई दिनों से हजारों में मामले सामने आ रहे हैं. यानी कुल मिलाकर कोरोना की मार से भी केरल उभर नहीं पा रहा है. 

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