
केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खिलाफ बन रहे महागठबंधन के मद्देनजर कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में शनिवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी का शक्ति प्रदर्शन सफल रहा. इस मौके पर कई राज्यों के मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री समेत कुल 22 राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं ने हिस्सा लिया और केंद्र से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को हटाने का संकल्प लिया.
हालांकि महागठबंधन का नेता कौन होगा इसे लेकर सस्पेंस अभी भी बरकार है. ममता बनर्जी ने मंच से कहा कि प्रधानमंत्री कौन होगा यह बाद में तय कर लेंगे. जबकि गठबंधन के सबसे बड़े दल कांग्रेस के नेता लोकसभा चुनाव 2019 के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार मानते हैं और राहुल भी अपने एक बयान में कह चुके हैं कि बहुमत आने पर उन्हें प्रधानमंत्री बनने में कोई गुरेज नहीं.
राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन फेल
कोलकाता में ममता बनर्जी की अगुवाई में हुई महारैली से महागठबंधन की जो तस्वीर बनती है वो बीजेपी को परेशान करने वाली तो है, लेकिन विभिन्न राज्यों के राजनीतिक धारतल पर हकीकत में जो हो रहा वो पूरी तरह से अलग है. क्योंकि बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन बनता दिख नहीं रहा. इस रैली में शामिल तमाम दल प्रदेश स्तर पर गठबंधन करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि विपक्ष प्रधानमंत्री पद के दावेदार को लेकर एकमत नहीं है और इसमें विभिन्न राज्यों के क्षत्रपों का अहम भी आड़े आ रहा है. लिहाजा सभी दल आम चुनावों के बाद अपने विकल्प खुले रखना चाहते हैं.
उदाहरण के तौर पर पश्चिम बंगाल में कांग्रेस इस मुद्दे पर बंटी है कि लोकसभा चुनाव में सीपीएम से हाथा मिलाया जाय या टीएमसी से. कांग्रेस की प्रदेश इकाई राज्य में मुख्य विपक्षी दल है और पिछला विधानसभा चुनाव वाम दलों के साथ मिलकर लड़ी थी. ममता बनर्जी ने इस रैली में शामिल होने के लिए यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी को निमंत्रण दिया था. लेकिन इस रैली में न तो राहुल ही पहुंचे और न ही सोनिया. इस रैली में कांग्रेस की तरफ से मल्लिकार्जुन खड़गे और अभिषेक मनु सिंघवी शामिल हुए. बता दें कि फेडरल फ्रंट की कवायद सबसे पहले ममता बनर्जी ने ही की थी और इस सिलसिले में उन्होंने दिल्ली में तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं से मुलाकात भी की थी.
यूपी में माया-अखिलेश ने कांग्रेस से किया किनारा
कमोवेश ऐसी ही स्थिति उत्तर प्रदेश में बनती है जब सीटों के लिहाज से सबसे बड़े सूबे में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी लोकसभा चुनाव 2019 के लिए गठबंधन का ऐलान करते हुए कांग्रेस के लिए महज 2 सीट छोड़ते हैं. लिहाजा कांग्रेस ने यूपी की सभी 80 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. हालांकि सपा-बसपा गठबंधन की चर्चा काफी पहले से चल रही थी और इस पर मुहर महज औपचारिकता भर ही थी. लेकिन इसमे भी कोई दो राय नहीं कि यूपी के इन दो बड़े क्षेत्रीय दलों के बिना महागठबंधन की कल्पना करना गलत होगा. लिहाजा अब यह साफ है कि उत्तर प्रदेश में बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा.
राज्य आधारित गठबंधन कर रही कांग्रेस
राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की पैरोकार रही कांग्रेस अब राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन न बनता देख राज्य आधारित गंठबंधन पर जोर दे रही है. कांग्रेस पार्टी आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर दो तरह की रणनीति पर काम कर रही है. पहला जिन राज्यों में पार्टी मजबूत है वहां अकेले लड़ेगी, जबकि जहां कमजोर है उन राज्यों में क्षेत्रीय दलों से समझौता करेगी. बिहार में कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल के गठबंधन में एनडीए के साथी उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी भी जुड़ गई है. वहीं महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी का गठबंधन तय है और सीट शेयरिंग भी दोनो दलों में बातचीत अंतिम स्तर पर है. वहीं गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का क्षेत्रीय युवा नेता हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को अपने साथ लाने का प्रयोग सफल रहा. लोकसभा में भी इसके बने रहने की उम्मीद है.
टीडीपी-कांग्रेस गठबंधन पर संदेह
तमिलनाडु में कांग्रेस-डीएमके गठबंधन यूपीए सरकार के दौरान से मजबूत है, और डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ने विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल गांधी के नाम का प्रस्ताव देकर इसे और मजबूत किया है. कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस की गठबंधन सरकार है और यह माना जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में दोनो दल साथ लड़ेंगे. तेलंगाना विधानसभा चुनाव में चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी के साथ कांग्रेस का गठबंधन का प्रयोग असफल रहा.
तेलंगाना की कांग्रेस इकाई का मानना है कि इसका विपरीत प्रभाव ही पड़ा. कभी कांग्रेस का गढ़ रहे आंध्र प्रदेश में पार्टी की हालात खस्ता है. आज की तारीख में आंध्र से कांग्रेस का न ही कोई विधायक है और न ही सांसद. आंध्र विभाजन की वजह राज्य में कांग्रेस के खिलाफ अभी भी रोष है. लिहाजा टीडीपी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर नुकसान उठाने का जोखिम नहीं उठाना चाहेगी. जबकि तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव गैर कांग्रेस, गैर बीजेपी गठबंधन पर जोर दे रहे हैं जिसका ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी समर्थन किया है.
कांग्रेस के लिए है छिपा संदेश
केरल में कांग्रेस पहले से ही यूडीएफ गठबंधन की अगुवाई पहले ही कर रही है. लिहाजा कांग्रेस उत्तर प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, हिमांचल प्रदेश, असम, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, गोवा और पुडुचेरी में अकेले चुनाव लड़ सकती है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की मेगा रैली के सफल प्रदर्शन के बाद अब चंद्रबाबू नायडू, आम आदमी पार्टी के संयोजन अरविंद केजरीवाल और सपा-बसपा भी ऐसी रैली करने का प्लान बना रहे हैं. जाहिर है बीजेपी के खिलाफ इस शक्ति प्रदर्शन से दो संदेश निकलेंगे एक तो इन रैलियों की अगुवाई करने वाला नेता इसके जरिए अपनी ताकत दिखाएगा और दूसरा छिपा हुआ संदेश कांग्रेस नेतृत्व के लिए भी होगा, जो अपने पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का सपना संजोए है.