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किलो के भाव शव ढोने पर एयर इंडिया को हाईकोर्ट ने दिया नोटिस

शवों की ढुलाई को लेकर एयरलाइंस की नीति सवालों के घेरे में है. शवों की ढुलाई के लिए किसी सामान की तरह प्रति किलो के भाव से चार्ज तय किया जाता है. अब इसके ख‍िलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है.

शवों की ढुलाई के अमानवीय दस्तूर पर नाराजगी (प्रतीकात्मक फोटो: रायटर्स) शवों की ढुलाई के अमानवीय दस्तूर पर नाराजगी (प्रतीकात्मक फोटो: रायटर्स)
हरीश वी. नैयर/दिनेश अग्रहरि
  • नई दिल्ली,
  • 09 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 2:03 PM IST

देसी-विदेशी एयरलाइंस द्वारा शवों की ढुलाई का रेट अन्य सामान की तरह किलो के भाव से लगाने पर तमाम संगठन नाराज हैं. महंगी ढुलाई लेने वाली यह व्यवस्था काफी समय से चल रही है, लेकिन अब इसके खि‍लाफ एक एनजीओ 'प्रवासी लीगल सेल' द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है. हाईकोर्ट ने इस पर नागर विमानन मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और एयर इंडिया को नोटिस भेजा है.

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एनजीओ ने वैसे तो शिकायत एयर इंडिया के बारे में की है, लेकिन सभी एयरलाइंस इसी तरह से चार्ज लेते हैं. यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या एयरलाइंस शवों की ढुलाई के मामले में थोड़ी गरिमा नहीं अपना सकते? क्या शवों की ढुलाई का दर किलो के भाव से लेना उचित है?

दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मसले पर सुनवाई करने का निर्णय लिया है. चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और वी.के. राव की पीठ ने सोमवार को इस मामले में नागर विमानन मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और एयर इंडिया को नोटिस भेजा है. एनजीओ ने एयरलाइंस के इस दस्तूर को 'निर्दयतापूर्ण' बताया है.

गौरतलब है कि अभी जो दस्तूर चल रहा है उसमें एयरलाइंस किसी मृतक के शव या अन्य अंतिम अवशेष को बस 'कार्गो' की तरह ही देखते हैं और उनकी ढुलाई की दर वजन यानी किलो के भाव से तय की जाती है. इसलिए ढुलाई की रेट काफी महंगी होती है. उदाहरण के लिए एयर इंडिया खाड़ी देशों से किसी मृत भारतीय प्रवासी का शव लाने के लिए कम से कम 15 दिरहम प्रति किलो यानी करीब 300 रुपये प्रति किलो का चार्ज लेती है.

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एनजीओ के वकील जोस अब्राहम ने कहा,  'यह न केवल काफी अमानवीय दस्तूर है, बल्कि यह किसी शव की गरिमा के भी खिलाफ है.' पीआईएल में मांग की गई है कि विदेश में किसी भारतीय के निधन होने पर उसके शव को भारत लाने के मामले में एक गाइडलाइन बनाई जाए.

अब्राहम ने कहा, 'महंगा चार्ज होने की वजह से कई बार विदेश में किसी कामगार के निधन होने पर उनके गरीब रिश्तेदार शव मंगा नहीं पाते. ऐेसे मृतकों का विदेश में ही अंतिम संस्कार करना पड़ता है.'   

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