
हिमाचल प्रदेश में लाहौल स्पीति एक दुर्गम जिले के रूप में पहचाना जाता है. यहां विधानसभा की सिर्फ एक सीट के लिए चुनाव हो रहा है. जिला के कई स्थानों पर तापमान शून्य से नीचे चला गया है. मतदाताओं की नब्ज टटोलने के लिए हम पहुंचे लाहौल के सीसू गांव, जिसे खांगलिंग के नाम से भी जाना जाता है. जिस वक्त हम खांगलिंग पहुंचे, वहां का तापमान माइनस 2 डिग्री था. सबसे पहले हमारी मुलाकात हुई इस गांव के पूर्व प्रधान जगदीश कटोच से.
सीसू गांव पिछले साल अचानक सुर्खियों में आ गया था, जब चर्चा छिड़ी थी कि इस गांव में विश्व का सबसे ऊंचा क्रिकेट स्टेडियम बनाया जाएगा. जगदीश कटोच के मुताबिक, लाहौल स्पीति में विश्व के सबसे ऊंचे क्रिकेट ग्राउंड के निर्माण की रूपरेखा काफी अरसा पहले बन गई थी लेकिन कागजी कार्रवाई पूरी ना होने की वजह से यह निर्माण कार्य नहीं हो पाया. जिस जगह पर क्रिकेट स्टेडियम बनाया जाना है वह भूमि वन क्षेत्र के तहत आती है, इसलिए उसके लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की मंजूरी जरूरी है.
फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट की वजह से इस ग्राउंड के निर्माण के लिए अभी तक मंजूरी नहीं मिली है. जगदीश कटोच ने बताया कि लाहौल-स्पीति में अभी तक फारेस्ट सेटलमेंट नहीं हो पाया है इसलिए यहां पर एक इंच भी भूमि वन विभाग की नहीं, बल्कि फॉरेस्ट लैंड के तहत परिभाषित है.
जगदीश कटोच के मुताबिक, केंद्र सरकार का इस क्रिकेट ग्राउंड को बनाने के प्रति रुख साफ नहीं है. फॉरेस्ट क्लीयरेंस के लिए कागजात तैयार कर लिए गए हैं लेकिन लाहौल और स्पीति प्क्रिकेट संघ के पास नियमानुसार एनपीबी (Net Present Value) जमा करवाने के लिए पर्याप्त धनराशि नहीं है. क्रिकेट संघ को फॉरेस्टक्लीयरेंस लेने के लिए कम से कम 60 से 70 लाख रुपए जमा करवाने होंगे. ऐसा ना होने की वजह से फाइल फॉरेस्ट क्लीयरेंस के लिए नहीं भेजी जा सकी. लोगों ने ने राज्य सरकार से भी आर्थिक मदद देने की गुहार लगाई थी लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.
अटल टनल खुलने से फायदे और नुकसान दोनों
स्थानी निवासियों के मुताबिक, अगर फायदों की बात करें तो अटल टनल के अस्तित्व में आने के बाद पर्यटन व्यवसाय को जबरदस्त बढ़ावा मिला है. घाटी में अब जिप लाइन जैसी एडवेंचर टूरिज्म की गतिविधियों को बढ़ावा मिला है और गेस्ट हाउसेस की संख्या बढ़ी है.
जगदीश कटोच के मुताबिक चैनल खोलने से पहले घाटी की तरफ सिर्फ गिने-चुने वाहन निकलते थे लेकिन आज हजारों की संख्या में वाहन घाटी में प्रवेश कर रहे हैं. इससे भले ही पर्यटन कारोबारियों को फायदा हुआ हो लेकिन पर्यावरण को बहुत नुकसान हुआ है. तापमान बढ़ने से अब स्नोलाइन खिसक गई है. पहले सितंबर-अक्टूबर माह में कभी भी बर्फबारी हो जाती थी, लेकिन अब की बार नवंबर माह में भी बर्फ नहीं गिरी है. जगदीश कटोच ने बताया कि सीसू गांव में पहले आठ-दस फीट तक बर्फ गिरती थी लेकिन अब चार पांच फीट तक ही गिर पाती है.
अटल टनल के निर्माण में दोनों सरकारों का योगदान
भाजपा के चुनाव प्रचार में जोर शोर से दावा किया जा रहा है कि अटल टनल का निर्माण पार्टी की बड़ी उपलब्धि है. भाजपा टनल निर्माण के नाम पर वोट मांग रही है. लेकिन लाहौल स्पीति के स्थानीय निवासियों से बात करें तो अटल टनल के निर्माण में कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारों का योगदान है.
दरअसल, अटल टनल की नींव 1972 में उस समय रखी गई थी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी लाहौल स्पीति के केलंग में आकर ठहरी थी. उस वक्त स्थानीय लोगों ने विधायक लता ठाकुर के नेतृत्व में उनसे एक ऐसा सड़क मार्ग बनाने की मांग की थी जो साल भर चालू रहे. इंदिरा गांधी ने तुरंत रक्षा मंत्रालय को इस सड़क के निर्माण की संभावनाओं का पता लगाने के लिए कहा था. सुरंग के निर्माण का कार्य 1983 में शुरू हो गया था.
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेई का भी मनाली से नाता रहा है. उन्होंने भी अपने दोस्त टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल से स्पीति घाटी का सफर कम करने के लिए एक सुरंग बनाने का वायदा किया था. उन्होंने जून 2000 को केलंग में रोहतांग सुरंग निर्माण की घोषणा की थी. फिर बाजपाई ने ही साल 2002 में रोहतांग सुरंग तक संपर्क मार्ग बनाने की आधारशिला रखी थी.
उसके बाद जून 28, 2010 को तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अटल टनल की आधारशिला रखी और इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1355 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत किया, लेकिन 2014 में जब केंद्र में भाजपा की सरकार आई तो रोहतांग सुरंग निर्माण का कार्य तेजी से हुआ. टनल निर्माण में 3200 करोड रुपए का खर्च आया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 अक्टूबर 2020 को रोहतांग टनल का नाम अटल टनल रखकर इसे देश के लोगों को समर्पित किया.
अटल टनल बनने के बाद ना सिर्फ घाटी के लोगों को सालभर आवाजाही की सुविधा मिली बल्कि लाहौल स्पीति की यात्रा 46 किलोमीटर कम हो गई. जगदीश कटोच के मुताबिक, अटल टनल का निर्माण इस चुनाव में कोई बड़ा मुद्दा नहीं है क्योंकि टनल निर्माण के दौरान कई चुनाव हो चुके हैं और यह पहला चुनाव नहीं है.
यह है लाहौल स्पीति चुनाव के बड़े मुद्दे
सर्दियों के मौसम में लोन स्पीति का तापमान शून्य से काफी नीचे चला जाता है और पीने के पानी के स्त्रोत जम जाते हैं. लोगों की मांग है कि सरकार कुछ ऐसी व्यवस्था करें कि पेयजल की आपूर्ति बाधित ना हो.
घाटी के लोगों की दूसरी बड़ी मांग
फॉरेस्ट राइट एक्ट (FRA) को लागू करने की है. दिसंबर 2005 से पहले स्थानीय लोग जंगलात का इस्तेमाल करते थे उसको इस कानून के तहत रेगुलराइज यानी नियमितीकरण करना था जो कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारें नहीं कर पाई. लाहौल स्पीति के लोग कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारों से नाराज हैं क्योंकि इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया.
घाटी में हो रहे बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण की वजह से यहां के जनजीवन पर असर पड़ रहा है. वातावरण दूषित हो रहा है लेकिन सरकारों का इस ओर कोई ध्यान नहीं है. लोग चाहते हैं कि घाटी में बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं ना बनें. इसके अलावा प्रदूषण नियंत्रण को लेकर भी लोग चिंतित हैं. घाटी में पर्यटकों की आवाजाही बढ़ने से प्रदूषण बढ़ा है. अटल टनल के दोनों और ना शौचालय की व्यवस्था है और ना ही पर्यटन निगम का कोई होटल रेस्टोरेंट.