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मोसुल में टीले के नीचे 39 भारतीयों के शव का ऐसे चला पता

वीके सिंह की अगुवाई में भारतीय टीम और इराकी सैनिकों के दल ने इन टीलों को खोदने का फैसला लिया, ताकि 2014 के बाद आईएस के कब्जे में रहे पीड़ितों के बचे हुए अवशेष को तलाशा जा सके. यही वो समय था जब आईएस ने इराक और सीरिया के महत्वपूर्ण इलाकों पर अपना कब्जा जमाना शुरू कर दिया था.

केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह
नंदलाल शर्मा/मंजीत नेगी
  • नई दिल्ली,
  • 21 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 10:47 AM IST

इराक में गायब 39 भारतीयों की खोज में लगे पूर्व आर्मी चीफ और केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह को बदूश शहर में टीलों के बारे में इनपुट मिला था, जिन्हें देखकर लगता था कि यहां कुछ दबा हुआ है.

वीके सिंह की अगुवाई में भारतीय टीम और इराकी सैनिकों के दल ने इन टीलों को खोदने का फैसला लिया, ताकि 2014 के बाद आईएस के कब्जे में रहे पीड़ितों के बचे हुए अवशेष को तलाशा जा सके. यही वो समय था जब आईएस ने इराक और सीरिया के महत्वपूर्ण इलाकों पर अपना कब्जा जमाना शुरू कर दिया था.

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टीले की खुदाई ऐसे शुरू हुई जैसे कि पुरातात्विक साइट पर किसी प्राचीन कलाकृतियों को ढूंढ़ा जा रहा हो.

जनरल वीके सिंह ने मेल टुडे को बताया, 'जब उन्होंने पहले खुदाई करना शुरू किया, तो उन्हें एक कड़ा और लंबे बालों का गुच्छा हाथ लगा. ये इस बात की ताकीद कर रहा था कि वे लोग पंजाब के हमारे अपने हो सकते हैं. हालांकि ये स्पष्ट नहीं था कि वहां कितने लोग हो सकते हैं.'

जैसे-जैसे खुदाई आगे बढ़ी, इराकी प्रशासन को मानव अवशेष मिलने लगे. इस खुदाई में जिस व्यक्ति की सबसे पहले पहचान हुई वो पंजाब के संदीप कुमार थे. भारत सरकार द्वारा बगदाद फोरेंसिक लैबोरेट्रीज को भेजे गए डीएनए सैंपल से मिलान के साथ अन्य शवों की पहचान शुरू हुई.

सभी भारतीयों के शवों की पहचान होने के बाद उनके परिवारों को इस बारे में जानकारी देने का फैसला लिया गया.

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जून 2014 में, भारतीय अधिकारियों का इराक में मौजूद 40 कंस्ट्रक्शन मजूदरों से संपर्क टूट गया था. इनमें से ज्यादातर पंजाब के रहने वाले थे. ये सभी इराक के मोसुल में एक सरकारी इमारत के निर्माण में लगे हुए थे. इन मजदूरों को आईएस ने अगवा कर लिया था, इनके साथ कुछ बांग्लादेशी मजदूर भी थे.

अगवा करने के कुछ दिन बाद आईएस ने 55 बांग्लादेशियों को रिहा कर दिया. एक भारतीय वर्कर हरजीत मसीह भी भागने में सफल रहा, जिसने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से संपर्क किया.

इराकी सुरक्षा बलों और आईएस के बीच जंग में बदूश की जेल पूरी तरह नष्ट हो गई थी. साथ ही बगदाद की सरकार ने यह भी ऐलान कर दिया था कि जेल में कोई भी कैदी नहीं है.

पिछले साल के आखिर तक, इराकी सरकार को भी नहीं मालूम था कि भारतीय जिंदा हैं या मारे गए.

2014 में 39 भारतीयों को ढूंढ़ने का काम जनरल वीके सिंह की अगुवाई और देख रेख में शुरू हुआ. सिंह ने इसके लिए इराक के युद्धग्रस्त इलाकों का हफ्तों तक दौरा किया. एक समय तो वे इराकी आर्मी और आईएस आतंकियों के बीच जारी जंग के बीच ही भारतीयों को ढूंढ़ने के लिए इराक के युद्ध ग्रस्त इलाके में थे.

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मंत्री ने कहा, 'ये एक दिन का मामला नहीं था, इसके लिए आपको पूरी जानकारी जुटानी थी. जुलाई में मोसुल के आजाद होने के घोषणा की गई लेकिन लड़ाई अब भी जारी थी और केंद्रीय मोसुल में जाना आसान नहीं था. हालांकि बाद में मोसुल के दूसरे तरफ से मैं इरबिल और पेशमेगरा तक पहुंचा.'

39 भारतीयों को ढूंढ़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वादे को पूरा करने में लगे जनरल वीके सिंह ने कहा कि भारतीय अधिकारियों को मिला हर एक इनपुट बदूश शहर के बारे में था, क्योंकि भारतीयों का आखिरी ज्ञात लोकेशन बदूश शहर ही था.

हालांकि आईएस के चंगुल से निकलकर आए मसीह ने दावा किया था कि अगवा करने के बाद ही आईएस ने सभी भारतीयों को गोलियों से भून दिया था, लेकिन वह बचने और भागने में सफल रहा. हालांकि मसीह की कहानी को शुरू में भारत सरकार ने स्वीकार नहीं किया. सरकार का दावा था कि उन्हें 39 भारतीयों के जीवित होने की जानकारी मिली है.

सिंह के साथ ट्रेवल करने वाले अधिकारियों ने कहा कि बहुत बार उन्हें मंत्री और उनके स्टाफ के साथ रूम शेयर करना पड़ा. बाद में इसी रूम को कॉन्फ्रेंस रूम में तब्दील कर दिया जाता. ताकि इराकी फोर्सेज के साथ चल रहे सर्च ऑपरेशन पर चर्चा की जा सके.

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अब जबकि 39 भारतीयों की पहचान हो चुकी है, उनके अवशेष को वापस लाने के लिए विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह को कमान सौंपी गई है.

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