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ये है आइसलैंड का वो ग्लेशियर जिसकी मौत पर बनाया गया दुनिया का पहला स्मारक

आइसलैंड का ओकजोकुल ग्लेशियर अपना अस्तित्व खोने वाला दुनिया का पहला ग्लेशियर बन गया है. रविवार को इस ग्लेशियर के सम्मान में कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस ग्लेशियर की याद में अमेरिकी की राइस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक कांस्य पट्टिका का अनावरण किया.

नासा ने ली थी तस्वीरें. बाएं 1986 की है और दूसरी 2019 की. नासा ने ली थी तस्वीरें. बाएं 1986 की है और दूसरी 2019 की.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 19 अगस्त 2019,
  • अपडेटेड 10:49 AM IST

आइसलैंड का ओकजोकुल ग्लेशियर अपना अस्तित्व खोने वाला दुनिया का पहला ग्लेशियर बन गया है. कभी आइसलैंड की पहचान रहे इस ग्लेशियर की उम्र करीब 700 साल थी. लेकिन 2014 में ही यह ग्लेशियर पूरी तरह से पिघल चुका था. यह सब हुआ है जलवायु परिवर्तन की वजह से. रविवार को इस ग्लेशियर के सम्मान में कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस ग्लेशियर की याद में स्थानीय और अमेरिका की राइस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक कांस्य पट्टिका का अनावरण किया. 15.53 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैले इस ग्लेशियर की सबसे ज्यादा गहराई 164 फीट थी. लेकिन, अब वहां बर्फ के कुछ टुकड़े ही बचे हैं.

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आइसलैंड के प्रधानमंत्री कैटरिन जैकॉब्सडॉटिर, पर्यावरण मंत्री गुडमुंडुर इनगी गडब्रैंडसन और मानवाधिकार के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त मैरी रॉबिन्सन ने भी इस कार्यक्रम में मौजूद थे. राइस यूनिवर्सिटी में एंथ्रोपोलॉजी की प्रो. साइनेन होवे ने जुलाई में कहा था कि यह दुनिया में जलवायु परिवर्तन की वजह से खत्म होने वाले ग्लेशियर का पहला स्मारक होगा. होवे पिछले 50 सालों से ओकजोकुल ग्लेशियर की तस्वीरें ले रहे थे.

पट्टिका में लिखा गया है कि भविष्य के लिए एक पत्र (A letter to the future) और इसका उद्देश्य ग्लेशियरों की हो रही कमी और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में जागरुकता बढ़ाना है. अगले 200 वर्षों में हमारे सभी ग्लेशियरों के खत्म होने की उम्मीद है. यह स्मारक इस बात को स्वीकार करना है कि हम जानते हैं कि क्या हो रहा है और क्या करने की जरूरत है.

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ओकजाकुल ग्लेशियर की याद में लगाई गई कांस्य पट्टिका.

अगले 200 साल में खत्म हो जाएंगे दुनियाभर के ग्लेशियर

शोधकर्ता हॉवे ने कहा कि हर जगह स्मारक या तो मानवीय उपलब्धियों के लिए बने होते हैं. जिन्हें हम महत्वपूर्ण मानते हैं. उन्होंने कहा कि खत्म हो चुके ग्लेशियर को स्मारक बनाकर हम यह बताना चाहते हैं कि दुनियाभर में क्या खो रहा है या मर रहा है. एक खोए हुए ग्लेशियर का स्मारक यह बताने का अच्छा तरीका है कि अब कैसा नुकसान देख रहे हैं. यह गर्व का नहीं दुख का स्मारक है. आइसलैंड में हर साल करीब 11 अरब टन बर्फ खत्म हो रही है. एक अनुमान के अनुसार अगले 200 साल में दुनिया के सभी ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे.

भारत में भी है ग्लेशियर खत्म होने का खतरा

भारत में हिमालय के ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं. भारतीय वैज्ञानिकों का मानना है कि ज्यादातर मध्य और पूर्वी हिमालयी ग्लेशियर 2035 तक पिघल कर गायब हो जाएंगे. इनसे भारी तबाही आएगी. तापमान में भी बढ़ोतरी होगी. ग्लेशियर पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ता है.

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