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लता ने पहले कर दिया था ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’गाने से इनकार

उस गीत के पीछे की पूरी कहानी, जो बन गया राष्ट्रप्रेम की पहचान

Lata Mangeshkar during Republic Day ceremony in New Delhi Lata Mangeshkar during Republic Day ceremony in New Delhi
महेन्द्र गुप्ता
  • नई दिल्‍ली,
  • 13 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 12:18 PM IST

साल 1962 में चीन से युद्ध हारने के बाद देश निराशा में डूबा था. इस हार से एक नवस्वाधीन राष्ट्र का मनोबल पूरी तरह टूट चुका था। कवि प्रदीप भी युद्ध के नतीजे से बेहद दुखी थे। एक शाम जब वे मुंबई के माहिम बीच पर टहल रहे थे, तभी उनके मन में कुछ शब्द आए, उन्होंने अपने साथी से कलम और कागज मांगा, एक सिगरेट सुलगाई और उसके कश लेते हुए तत्काल उन शब्दों को कागज पर उतार दिया. ये शब्द उस गीत के थे, जो आज 50 साल बाद भी राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत के बाद सबसे अधिक लोकप्रिय बना हुआ है. यह गीत है ‘ऐ मेरे वतन के लोगो…’

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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आर्ट गैलरी में तब्दील हुआ दिल्ली का ये सबवे

इस गीत को गाने का प्रस्ताव प्रदीप ने लता मंगेशकर के सामने रखा था, लेकिन लता ने शुरू में इसे गाने से इंकार कर दिया था, क्योंकि उनके पास रिहर्सल के लिए वक्त नहीं था. लता का कहना था कि वे किसी एक गाने पर खास ध्यान नहीं दे सकतीं. लेकिन बाद में जब प्रदीप ने उनसे जिद की तो लता मान गईं. ‘ऐ मेरे वतन के लोगो…’ की पहली प्रस्तुति दिल्ली में 1963 में गणतंत्र दिवस समारोह को होनी थी. लता ने इसकी रिहर्सल शुरू की. वे चाहती थीं कि इसे वे अपनी बहन आशा भोसले के साथ युगल सुरों में गाएं. दोनों इसकी रिहर्सल साथ में कर चुकी थीं. लेकिन जिस रोज उन्हें दिल्ली जाना था, उसके एक दिन पहले आशा ने जाने से इंकार कर दिया. वे अपना फैसला बदलने को तैयार नहीं थीं. अंतत: लता को अकेले ही जाना पड़ा.

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कवि प्रदीप के 100 बरस, यादगार गीतों के जरिए

इस गाने के कंपोजर सी. रामचंद्र ने लता को गाने का म्यूजिक टैप दिया. इसे वे जहाज में रास्तेभर सुनती गईं. दिल्ली के जिस स्टेडियम में ये समारोह होना था, उसमें राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णनन, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनकी बेटी इंदिरा गांधी भी शामिल होने वालीं थीं. इसके अलावा दिलीप कुमार, राज कपूर, मेहबूब खान, शंकर-जयकिशन, मदन मोहन सहित तमाम बड़ी शख्सियतें आमंत्रित थीं. यह आयोजन आर्मी के जवानों के लिए फंड इकट्ठा करने आयोजित किया गया था. इसके जरिए करीब दो लाख रुपए जमा हुए, जो कि आज के 1.2 करोड़ रुपए के बराबर है. दुर्भाग्य देखिए कि समारोह में इस गीत को लिखने वाले कवि प्रदीप को आमंत्रित नहीं किया गया था. (प्रदीप की बेटी मितुल प्रदीप के अनुसार)

लता इस गाने की प्रस्तुति को लेकर थोड़ी नर्वस थीं. बकौल लता, ‘छकाछक भरे स्टेडियम में मैंने भजन अल्लाह तेरो नाम और फिर ऐ मेरे वतन के लोगों… गाया. मैंने अपनी प्रस्तुति के बाद काफी राहत महसूस की. इसके बाद मैं स्टेज के पीछे गई और मैंने एक कप काफी पी. मुझे नहीं पता था कि दर्शक इस गीत से बेहद प्रभावित हैं. कुछ देर बाद मेहबूब खान मेरे पास आए और बोले चलो आपको पंडित जी ने बुलाया है. जब मैं उनके पास गई तो पंडितजी सहित सभी लोगों ने खड़े होकर मेरा अभिवादन किया. उन्होंने कहा, ‘बहुत अच्छा मेरी आंखों में पानी आ गया’. जब मैं मुंबई लौटी तो मुझे इसका कोई अंदाजा नहीं था कि ये गीत इतना लोकप्रिय हो जाएगा. कवि प्रदीप ने इस प्रस्तुति से पहले मुझसे कहा था कि देखना लता ये गाना बहुत चलेगा. लोग हमेशा के लिए इसे याद रखेंगे.

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कवि प्रदीप के कहे शब्द आज यथार्थ में बदल गए हैं. किसी हिन्दी फिल्म का हिस्सा न होते हुए भी ये गीत हर हिन्दुस्तानी के जुबां पर चढ़ा रहता है. यह गीत देश के लिए जान देने वाले शहीदों के लिए एक श्रद्धांजलि स्वर में तब्दील हो गया है.

 

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