
भारत-चीन व्यापार घाटे को पाटने के लिए दोनों देशों में अहम सहमति हो गई है. केन्द्रीय कॉमर्स और इंडस्ट्री मंत्री सुरेश प्रभु ने बताया कि चीन सरकार भारत से अपना आयात बढ़ाने के लिए तैयार हो गया है. कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) के मंच से प्रभु ने दावा किया कि मौजूदा वैश्विक चुनौतियों ने भारत को अपना निर्यात बढ़ाने का सुनहरा का दिया है.
प्रभु के मुताबिक चीन सरकार ने नवंबर में भारतीय एक्सपोर्टर से मुलाकात करने का फैसला लिया है. इस मुलाकात में भारतीय एक्सपोर्टर द्वार चीन में ट्रेड बाधाओं को दूर करने के लिए अहम कदम उठाने की कवायद की जाएगी.
वैश्विक कारोबार में जहां चीन दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है वहीं भारत को चीन से सर्वाधिक व्यापार घाटा उठाना पड़ता है. न्यूज एजेंसी रॉयटर के मुताबिक भारत सरकार इस व्यापार घाटे को कम करने के लिए चावल और सफेद सरसों के निर्यात को बढ़ावा देने की तैयारी में है.
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गौरतलब है कि लंबे समय से भारत गंभीर व्यापार घाटे की समस्या से जूझ रहा है. व्यापार घाटा यानी किसी देश के आयात और निर्यात में अंतर. यदि कोई देश अपनी जरूरत के उत्पाद को वैश्विक बाजार से खरीदता है लेकिन उतनी कीमत का निर्यात दुनिया को नहीं करता तो वह व्यापार घाटे का शिकार होता है. इस व्यापार घाटे का खामियाजा देश की अर्थव्यवस्था को उठाना पड़ता है.
भारत के आयात में कच्चा तेल, सोना, कोयला और स्मार्टफोन प्रमुख उत्पाद हैं जो उसके बड़े व्यापार घाटे के लिए जिम्मेदार है. इस घाटे को पाटने के लिए जहां एक विकल्प इन उत्पादों में वैश्विक बाजार पर निर्भरता कम करना है, वहीं दूसरा विकल्प अन्य उत्पादों में अधिक निर्यात करते हुए भी व्यापार घाटे को पाटा जा सकता है. जहां कच्चा तेल, सोना और कोयला नैचुरल रिसोर्स की श्रेणी में हैं और इनके लिए आयात की बाध्यता है लिहाजा दूसरे विकल्प के जरिए ही देश के व्यापार घाटे को पाटा जा सकता है.
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वहीं उत्पाद के अलावा चीन, स्विटजरलैंड और साउदी अरब से व्यापार में भारत को सबसे ज्यादा घाटा होता है, लिहाजा इन देशों को भारत अन्य उत्पाद बेचकर ही अपने व्यापार घाटे को कम कर सकता है. देश के ट्रेड आंकड़ों के मुताबिक 2017 तक भारत को सभी उत्पादों के आयात-निर्यात में लगभग 150 बिलियन डॉलर का घाटा उठाना पड़ता है. वहीं 2010 तक यह व्यापार घाटा लगभग 130 बिलियन डॉलर के स्तर पर था.
अब इस घाटे को पाटने के लिए मोदी सरकार ने देश में पैदा रहे चावल और सफेद सरसों पर दांव खेलने की तैयारी की है. गौरतलब है कि हाल ही में चीन सरकार ने भारत से गैर-बासमती चावल खरीदने पर प्रतिबंध को हटाने के बाद अब सफेद सरसों और सोयाबीन पर प्रतिबंध हटाना का फैसला लिया है. चीन ने 2012 में भारत के सरसों और सोयाबीन पर कीट और मिलावट का हवाला देते प्रतिबंध लगाया था. वहीं अब अमेरिका-चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर और चीन में भारत से सरसो और सोयाबीन की बढ़ती मांग के बाद प्रतिबंध को हटाने का फैसला लिया है.