
अमेरिका में नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ताजपोशी के बाद उठाए गए सबसे बड़े कदमों में से एक H-1B वीजा बिल अमेरिकी संसद में पेश हो गया है. बिल के तहत H-1B वीजाधारकों के न्यूनतम वेतन को दोगुना करके एक लाख 30 हजार अमेरिकी डॉलर करने का प्रस्ताव है. भारतीय आईटी कंपनियों के लिए ये एक बुरी खबर है. यही वजह है कि बिल पेश होने के बाद आईटी शेयर नीचे जा रहे हैं.
इस बीच भारतीय विदेश मंत्रालय ने एच 1 बी वीजा के मुद्दे पर कहा है कि भारत के हितों और चिंताओं से अमेरिकी प्रशासन और अमेरिकी कांग्रेस दोनों के वरिष्ठ स्तरों को अवगत करा दिया गया है.
क्या है H-1B वीजा?
H-1B वीजा एक नॉन-इमीग्रेंट वीजा है जिसके तहत अमेरिकी कंपनियां विदेशी एक्सपर्ट्स को अपने यहां रख सकती हैं. H-1B वीजा के तहत टेक्नोलॉजी कंपनियां हर साल हजारों कर्मचारियों की भर्ती करती हैं. H-1B वीजा दक्ष पेशेवरों को दिया जाता है, वहीं L1 वीजा किसी कंपनी के कर्मचारी के अमेरिका ट्रांसफर होने पर दिया जाता है. दोनों ही वीजा का भारतीय कंपनियां जमकर इस्तेमाल करती हैं.
क्या पड़ेगा असर
एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 86% भारतीयों को H-1B वीजा कंप्यूटर और 46.5% को इंजीनियरिंग पोजीशन के लिए दिया गया है. 2016 में 2.36 लाख लोगों ने H-1B वीजा के लिए अप्लाई किया था जिसके चलते लॉटरी से वीजा दिया गया. अमेरिका हर साल 85 हजार लोगों को H-1B वीजा देता है. इनमें से करीब 20 हजार अमेरिकी यूनिवर्सिटीज में मास्टर्स डिग्री करने वाले स्टूडेंट्स को जारी किए जाते हैं.