
जम्मू-कश्मीर राजमार्ग पर पुलवामा को 14 फरवरी को दोपहर बाद 3.10 बजे आत्मघाती आतंकी हमले ने दहला दिया. हमले को अंजाम देने वाले आदिल अहमद डार का आधे घंटे में ही वीडियो सामने आ गया था.
वीडियो को जारी करने की टाइमिंग इस तरह थी कि वो तेज़ी से वायरल होकर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके. ये सब उस वक्त हुआ जब आतंकी हमले से स्तब्ध भारत काले धुएं के गुबार से पुलवामा हमले के शहीद जवानों के शवों को इकट्ठा करने में लगा था.
घाटी में तेज़ हवा के दौरान शूट हुआ आतंकी का वीडियो, लेकिन आत्मघाती हमले को अंजाम देने वाले डार का वीडियो किसी गुफ़ा, जंगल या किसी शहरी मलीन बस्ती की में नहीं फिल्माया गया था.
इंडिया टुडे के खास फॉरेंसिक विश्लेषण से सामने आया कि डार के वीडियो को तेज़ हवाओं से जूझ रही कश्मीर घाटी में मेकशिफ्ट टेरर स्टूडियो की चारदीवारी के बीच फिल्माया गया था.
भारतीय मीडिया के लिए अपनी तरह की इस पहली जांच में क्लिप की बारीक से बारीक आवाज़ को भी पकड़ा गया. इसके लिए हाईटेक टूल्स और सेंसर्स का सहारा लिया गया.
बारीक ऑडियो से मिले अहम सुराग
ऑडियो वेवफॉर्म्स जिन्हें मानव कान सुनने में सक्षम नहीं है, उन्हें अत्याधुनिक उपकरणों के ज़रिए प्रोसेस किया गया. इनसे तत्काल संकेत मिला कि जब डार का ये फुटेज रिकॉर्ड किया गया उस वक्त सुसाइड बॉम्बर पुलवामा से ज्यादा दूर नहीं था. हाईटेक टूल्स ने अनोखे Acoustic signatures (ध्वनिक संकेतक) पकड़े जिनके जरिए इंडिया टुडे की ओपन-सोर्स टीम को डार के वीडियो को शूट करने वाली जगह की पहचान करने में मदद मिली.
दरवाजे पर दस्तक, बाहर चल रही तेज़ हवा समेत हर तरह की आवाज़ जो फुटेज को रिकॉर्ड करते समय मौजूद थी, उसे अत्याधुनिक गैजेट्स के जरिए कैद किया गया. इनसे तार्किक तौर पर ये निर्णय तक पहुंचने में मदद मिली की पुलवामा सुसाइड बॉम्बर का वीडियो खुली जगह में फिल्माया गया था.
फॉरेन्सिक टेस्ट में कम से कम ध्वनि से जुड़ी 21 बारीकियों को पकड़ा गया, जिनमें से हर एक अपने आप में खास संकेतक थी. उपकरणों से हवाओं से दरवाज़ों के हिलने तक की आवाज़ की पहचान हुई.
ये आवाज़ लगातार नहीं आ रही थी जिसने वहां किसी इलेक्ट्रिक पंखे की मौजूदगी की संभावना को नकारा. इसकी जगह ये आवाज़ ऐसी थी कि जैसे बाहर रूक रूक कर हवा चल रही है.
ऑडियो स्ट्रीम्स को छानने से ऑडियो और वीडियो के बीच तालमेल ना होने का भी पता चला. इससे संकेत मिलता है कि फुटेज की रिकॉर्डिंग के बाद डबिंग की गई.
जैश ने किया फ्री एडिट एप का इस्तेमाल
वीडियो की सतहों के नीचे स्थित मेटाडेटा दिखाता है कि फुटेज को काइनमास्टर नामक एप के फ्री वर्शन के जरिए एडिट किया गया. फुटेज को फिल्माने वाली जैश की टेक टीम ने जानबूझकर एप के प्रीमियम वैरिएंट को नहीं इस्तेमाल किया जिससे कि ट्रांजेक्शन ट्रेल में इसके प्रिंट्स से बचा जा सके.
अकेला नहीं था हमले को अंजाम देने वाला आतंकी
20 साल के आत्मघाती आतंकी डार का वीडियो संकेत देता है कि पुलवामा हमले को अंजाम देने के पीछे डार अकेला नहीं था जैसा कि पाकिस्तान दिखाने की कोशिश कर रहा है.
इंडिया टुडे की स्टेट-ऑफ-द-आर्ट जांच ने स्थापित किया कि जैश-ए-मोहम्मद ने डार के टेरर वीडियो को फिल्माने के लिए उसकी मदद को टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स की टीम तैनात की थी. फॉरेंसिक विश्लेषण से सामने आया कि फुटेज को ठोस सतह पर सेल-फोन के जरिए फिल्माया गया. जिस डिवाइस से शूट किया गया उसे कोई और हैंडल कर रहा था.
दूसरों के निर्देश को मान रहा था पुलवामा आतंकी
इंडिया टुडे के फॉरेन्सिक निरीक्षण से ये भी पता चला कि डार ने अपना संदेश पहले से तैयार स्क्रिप्ट से पढ़ा जो उसके सामने आंखों तक की ऊंचाई पर मोबाइल कैमरे से पांच फीट की दूरी पर रखी गई थी.
सर्टिफाइड व्वयहार विश्लेषक और मनोविज्ञानी डॉ कपिल कक्कर ने क्लिप में आतंकवादी की बॉडी लैंग्वेज और बोलने के ढंग के आधार पर इंडिया टुडे की जांच के निष्कर्षों की पुष्टि की. डॉ कक्कर कहते हैं कि जब वो अपना बयान देना शुरू करता है तो ऐसा लगता है कि वो कहीं और से उसे पढ़ रहा है.
डॉ कक्कर स्पष्ट करते हैं, “वहां कैमरा और कैमरे के पीछे कुछ लोग डार के दाएं और बाएं खड़े हैं. वो उनकी सहमति ले रहा है. उसकी आंखें इधर से उधर होती रहती हैं.”
आवाज़ और हावभाव में तालमेल नहीं
इंडिया टुडे के फॉरेन्सिक एक्सपर्ट्स ने आतंकी के हावभावों को भी बारीकी से पकड़ा. जांच से सामने आया कि आतंकी के हावभावों और उसकी आवाज़ में तालमेल नहीं था. 10 मिनट के जेहादी टेप में आतंकी के चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखते. आतंकी जब अपने जीवन के कथित बाद के बारे में बात करता है तो उसके चेहरा भावशून्य रहता है.
डॉ कक्कर कहते है कि सुसाइड बॉम्बर की बॉडी लैंग्वेज से साफ है कि वो अपने हैंडलर्स के निर्देशों पर चल रहा था. डॉ कक्कर कहते हैं, “उसके हाथों के मूवमेंट देखो. उसके चेहरे के भावों को देखो. उनका आपस में कोई तालमेल नहीं है. अगर उसकी पूरी बॉडी लैंग्वेज को देखें, आवाज़ के प्रवाह, उतार चढ़ाव, मनोभाव का स्तर, सब कुछ दिखाता है कि वो दूसरों के निर्देशों का पालन कर रहा था.”