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2019 में गठबंधन की हां-ना से पहले बंगाल में बिखर जाएगी कांग्रेस?

पश्चिम बंगाल कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. पार्टी बेहद कमजोर हो चुकी है. हाल में हुए पंचायत चुनाव में टीएमसी, बीजेपी और वाममोर्चा के बाद चौथे स्थान पर खिसक गई है. ममता बनर्जी लगातार दिल्ली दौरे से 2019 के पहले महागठबंधन या थर्ड फ्रेंट की तैयारी में हैं.

राहुल गांधी और ममता बनर्जी राहुल गांधी और ममता बनर्जी
विवेक पाठक
  • नई दिल्ली,
  • 29 जून 2018,
  • अपडेटेड 6:59 PM IST

पश्चिम बंगाल कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. पार्टी बेहद कमजोर हो चुकी है. हाल में हुए पंचायत चुनाव में टीएमसी, बीजेपी और वाममोर्चा के बाद चौथे स्थान पर खिसक गई है. ममता बनर्जी लगातार दिल्ली दौरे से 2019 के पहले महागठबंधन या थर्ड फ्रंट की तैयारी में हैं. बीजेपी को रोकने के लिए वे बड़ी भूमिका चाहती हैं, जिस पर कांग्रेस हाईकमान ने अभी तक कुछ खुलकर नहीं कहा है. और यही चुप्पी बंगाल कांग्रेस में असमंजस की स्थिति पैदा कर रही है. बताया जा रहा है कि अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए कांग्रेस के कई बड़े नेता टीएमसी में जाने की तैयारी में हैं.

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दरअसल, इसी हफ्ते कांग्रेस के कई नेताओं ने तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की है. गुरुवार को बंगाल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद अबु हशेम खान चौधरी और पार्टी विधायक मोइनुल हक की टीएमसी महासचिव पार्थ चटर्जी से मुलाकात के बाद ऐसे कयास लगाया जा रहे हैं कि बंगाल कांग्रेस का एक धड़ा टीएमसी में शामिल हो सकता है.

हशेम चौधरी का इनकार, पार्थ का स्वागत!

हालांकि अबु हशेम खान चौधरी का कहना है कि वे आने वाले लोकसभा चुनावों में अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बनाने को लेकर टीएमसी के वरिष्ठ नेता पार्थ चटर्जी से चर्चा करने गए थे. मोइनुल हक का भी यही कहना है कि अभी हमारे लिए सबसे बड़ा लक्ष्य बंगाल में पांव पसार रही भाजपा को हराना है. इस मामले में पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी का कहना है कि पार्टी ने आधिकारिक तौर पर किसी भी नेता को गठबंधन पर चर्चा के लिए अधिकृत नही किया है.

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टीएमसी के पार्थ चटर्जी का इस मुलाकात को लेकर कहना है कि उनसे मिलने कई लोग आते हैं. जरूरी नहीं सब पार्टी में शामिल होने ही आते हों. यदि कोई टीएमसी द्वारा बंगाल में किए जा रहे विकास कार्यों में अपनी निष्ठा व्यक्त कर पार्टी से जुड़ना चाहता है तो उसका स्वागत है.

इसे पढ़े: बंगाल: इतना बढ़ा बीजेपी का ग्राफ, क्या 2019 में पूरा होगा टारगेट?

क्यों कांग्रेस के लिए अहम है चौधरी परिवार?

उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल का मालदा जिला खान चौधरी खानदान का लंबे समय से अभेद्य किला रहा है. और इस परिवार का कांग्रेस के साथ पुराना रिश्ता है. लेकिन कुछ सालों में राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते परिवार में फूट पड़ चुकी है. इसी परिवार से अबु नसीर खान चौधरी टीएमसी के नेता हैं. गनी खान चौधरी कांग्रेस से ही केंद्रीय मंत्री थे.

बंगाल कांग्रेस में क्यों सबकुछ ठीक नहीं चल रहा?

अभी कुछ दिनों पहले पश्चिम बंगाल कांग्रेस की अंदरूनी कलह तब खुलकर सामने आ गई थी, जब कांग्रेस प्रभारी गौरव गोगोई से कांग्रेस की कई जिला इकाइयों ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और बरहनपुर से सांसद अधीर रंजन चौधरी को हटाने की मांग की. दक्षिण कोलकाता जिला समिति और उत्तरी 24 परगना जिला समिति के कई कांग्रेस नेताओं ने गोगोई से मुलाकात की और पत्र सौंपे. गौरतलब है कि अधीर रंजन चौधरी शुरू से ही किसी भी तरह के कांग्रेस-तृणमूल गठजोड़ का खुले तौर पर विरोध करते आ रहे हैं.

अधीर रंजन चौधरी ने अपनी पार्टी के सांसद और वकील अभिषेक मनु सिंघवी पर पार्टी के खिलाफ काम करने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से शिकायत भी की थी. चौधरी का तर्क ये था कि जिन मामलों को लेकर प्रदेश कांग्रेस टीएमसी को बंगाल में घेर रही है उन्ही मामलों की सिंघवी पैरवी करते हैं.

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क्या कहती है बंगाल की चुनावी गणित?

2016 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस 40.2 फीसदी वोट पाकर भी 44 सीटें ही हासिल कर पाई थी. वहीं टीएमसी ने 45 प्रतिशत वोट पाकर 211 सीटों पर कब्जा किया था. मत प्रतिशत के लिहाज से कांग्रेस इस बात को लेकर आश्वस्त हो सकती है कि बंगाल में उसके पास जनाधार मौजूद है. लेकिन हाल ही में संपन्न पंचायत चुनावों में टीएमसी ने 34 फीसदी सीटें निर्विरोध ही जीत ली. हालत यह थी कि कांग्रेस को तृणमूल, भाजपा और वाम मोर्चे के बाद चौथा स्थान मिला. कांग्रेस इस बात को बखूबी जानती है कि 42 सीटों वाले पश्चिम बंगाल को नजरअंदाज करना बड़ी भूल होगी. वहीं टीएमसी की रणनीति कांग्रेस को ऐसी स्थिति में धकेलने की है कि उसके पास ममता के ब्रेन चाइल्ड फेडरल फ्रन्ट को बाहर से समर्थन करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प ही न बचे.

पश्चिम बंगाल ने कांग्रेस को प्रणब मुखर्जी, सिद्धार्थ शंकर रे, प्रियरंजन दासमुंशी और ममता बनर्जी (पहले कांग्रेस का हिस्सा थीं) सरीखे दिग्गज नेता दिए हैं. लेकिन प्रणब दा के राष्ट्रपति बनने और प्रियरंजन दासमुंशी की मौत के बाद कांग्रेस के पास पश्चिम बंगाल में ऐसा कोई दमदार चेहरा नहीं रह गया है जिसे वो ममता के बरक्स खड़ा कर सके.

 

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