
आइए जानते हैं कि इन पांच सालों में मंगलयान ने क्या-क्या सफलताएं हासिल की...
24 सितंबर 2014 को मंगलयान को मंगल की कक्षा में डाला गया था. जिसके बाद से लगातार वह काम कर रहा है. यह भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी का पहला ऐसा मिशन हैं, जिसपर अध्ययन करने के लिए देश के वैज्ञानिक समुदाय के बीच 32 रिसर्च टीम बनीं. 23 से ज्यादा लेख और रिसर्च पेपर प्रकाशित किए गए. अब तक मंगलयान ने मंगल ग्रह की 1000 से ज्यादा तस्वीरें भेजी हैं. 5 साल में अब तक मंगलयान से इसरो के डाटा सेंटर को 5 टीबी से ज्यादा डाटा मिल चुका है. जिसका उपयोग देश भर के वैज्ञानिक मंगल के अध्ययन में कर रहे हैं. यह दुनिया का सबसे सस्ता मंगल मिशन था. इस पर कुल लागत 450 करोड़ रुपए आई थी.
अभी क्या हालचाल हैं मंगलयान के?
मंगलयान अब भी मंगल ग्रह के चारों तरफ अंडाकार कक्षा में चक्कर लगा रहा है. इसकी मंगल ग्रह से सबसे नजदीकी दूरी (पेरीजी) 421.7 किमी और सबसे अधिक दूरी (एपोजी) 76,993 किमी है. पांच साल से अकेले मंगल ग्रह की कक्षा में काम करने के बावजूद मॉम थका नहीं है. दुनिया को लगातार हैरत में डाल रहा है. ऐसा नहीं है कि इसके लिए उसे अंतरिक्ष में संघर्ष नहीं करना पड़ा. लेकिन मंगलयान ने सभी बाधाओं को पार करके अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया. इसरो वैज्ञानिकों के अनुसार मंगलयान अब भी सेहतमंद है.
अद्भुत नजारे दिखाए मंगलयान ने
ओलिंपिस मॉन्स ज्वालामुखीः एवरेस्ट से ढाई गुना ज्यादा ऊंचा
मंगलयान ने मंगल ग्रह पर ओलिंपिस मॉन्स नाम के ज्वालामुखी की तस्वीर ली. यह ज्वालामुखी हमारे सौर मंडल में मौजूद किसी भी पहाड़ से बहुत ज्यादा बड़ा है. यह माउंड एवरेस्ट से ढाई गुना ज्यादा ऊंचा है. इसकी ऊंचाई 22 किमी है और व्यास 600 किमी.
मंगल पर घटती-बढ़ती रहती है बर्फ की चादर
मंगलयान ने जो तस्वीरें भेजी हैं उससे पता चलता है कि मंगल ग्रह पर बर्फ की चादर है. यह घटती-बढ़ती रहती है. इस बर्फ के चादर के अधिकतम क्षेत्रफल 9,52,700 किमी और न्यूनतम क्षेत्रफल 6,33,825 किमी है.
मंगल ग्रह पर 4000 किमी लंबी घाटी की तस्वीरें भी लीं
मंगलयान ने मंगल ग्रह पर वैलेस मैरिनेरिस (मंगल की घाटी) की तस्वीरें भी लीं. ये घाटी मंगल ग्रह के इक्वेटर के नजदीक है. इसकी लंबाई 4000 किमी है और कई जगहों पर इसकी गहराई 7 किमी से ज्यादा है.