
अगर औसत निकालें तो केंद्र से जम्मू-कश्मीर को हिमाचल प्रदेश के मुकाबले पिछले चार साल में 24 फीसदी से ज्यादा वित्तीय मदद मिली, जबकि अगर आतंकवाद को छोड़ दें तो दोनों राज्यों की स्थिति बिल्कुल समान है. वित्त वर्ष 2016 में जम्मू-कश्मीर को केंद्र से 10,489 करोड़ रुपए की वित्तीय मदद मिली. इसी साल हिमाचल को मिली वित्तीय मदद से यह करीब 2000 करोड़ ज्यादा थी. जम्मू-कश्मीर को मिलने वाला यह फायदा वित्त वर्ष 2019 तक जारी रहा.
वित्त मंत्रालय के आंकड़े कहते हैं कि अप्रैल 2006 से लेकर मार्च 2016 तक जम्मू-कश्मीर को केंद्र से 1.06 लाख करोड़ रुपए मिले, जबकि इसी अवधि में हिमाचल प्रदेश को 53,670 करोड़ जारी हुए. जम्मू-कश्मीर का भौगोलिक क्षेत्रफल पूरे भारतीय भूभाग का 3.2 प्रतिशत है, और भारत की कुल जनसंख्या का एक फीसदी जम्मू-कश्मीर में रहती है. कुल राष्ट्रीय आय में जम्मू कश्मीर की हिस्सेदारी (1999 में) 0.85 फीसदी से घटकर फिलहाल 0.7 फीसदी रह गई है.
हिमाचल प्रदेश का भौगोलिक क्षेत्रफल और जनसंख्या दोनों ही जम्मू-कश्मीर के मुकाबले करीब आधा है, लेकिन जम्मू-कश्मीर की प्रति व्यक्ति आय जम्मू-कश्मीर के मुकाबले 48 फीसदी अधिक है. 'आर्टिकल 370 एंड इकोनॉमी आफ जम्मू-कश्मीर' किताब के सह लेखक और वकील प्रणव तंवर ने इंडिया टुडे से कहा, 'इसमें कोई दो राय नहीं कि कश्मीर का मुद्दा बहुआयामी है. लेकिन इस क्षेत्र के लिए सबसे ज्यादा नुकसान अगर किसी का हुआ है तो वह है अर्थव्यवस्था.'
आगे उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 का हटना और इनवेस्टर समिट जैसे कुछ निर्णयों का दूरगामी असर होगा. सुदृढ़ आर्थिक नीति के चलते शांति और स्थिरता आएगी. हालांकि, जो बदलाव लाया गया है, अब उसे बनाए रखने की चुनौती होगी. कब्रिस्तान में कोई भी निवेश नहीं करना चाहता.
हालांकि, प्रणव तंवर ने एक आरटीआई फाइल की थी, जिसके जवाब में उनसे कहा गया कि वित्त मंत्रालय को कोई अनुमान नहीं है कि अनुच्छेद 370 के चलते जम्मू कश्मीर के कुल वित्तीय आवंटन पर क्या असर पड़ा. अपने जवाब में मंत्रालय ने कहा कि जिस तरह की जानकारी आप चाह रहे हैं, विभाग के पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है.