
अभी तक कहा जाता था कि गंगा की लंबाई 2500 किलोमीटर है. कहीं कम लिखा जाता था, कहीं ज्यादा लिखा जाता था. लेकिन बहुत जल्द गंगा की नई और सटीक लंबाई का पता चल जाएगा. वह भी बेहद अचूक आंकड़ों के साथ. ये आंकड़े देगा सर्वे ऑफ इंडिया (Survey of India) संगठन. वह भी बेहद जल्द.
यानी गंगा की लंबाई, चौड़ाई, गहराई, बहाव क्षेत्र, नदी किनारे के शहरों के डूब क्षेत्र आदि का नया नक्शा बनेगा. जियोस्पेशियल मीडिया और कम्युनिकेशन की ओर से आयोजित जियोस्मार्ट इंडिया कार्यक्रम से इतर Aajtak.in से विशेष बातचीत करते हुए सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया लेफ्टिनेंट जनरल गिरीश कुमार ने ये जानकारी दी.
लेफ्टि. जनरल गिरीश कुमार ने बताया कि हम गंगा की लंबाई नाप रहे हैं. ऋषिकेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक. इस पूरी लंबाई को हम एरियल लाईडार (LiDAR) टेक्नोलॉजी से माप रहे हैं. इस टेक्नोलॉजी की मदद से हम न सिर्फ हमें गंगा की सटीक लंबाई का पता चलेगा बल्कि गंगा कहां कितनी गहरी हैं, कितनी छिछली हैं, कितनी चौड़ी हैं और इसके बहाव क्षेत्र में कौन-कौन से शहर आ रहे हैं.
कैसे बनेगा गंगा का नक्शा?
जलशक्ति मंत्रालय के नमामि गंगे प्रोजेक्ट के लिए सरकार ने सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया से गंगा का विस्तृत नक्शा मांगा था. इसके बाद सर्वे ऑफ इंडिया ने अपना काम शुरू किया. सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया के लेफ्टिनेंट जनरल गिरीश कुमार ने बताया कि हम ऋषिकेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक गंगा की पूरी लंबाई तो नाप ही रहे हैं. साथ ही उसके दोनों किनारों पर 10 किलोमीटर दूरी तक का नक्शा भी बनाएंगे. इसके लिए लाईडार प्रणाली का उपयोग किया जा रहा है.
इस नक्शे से फायदा क्या होगा?
लेफ्टिनेंट जनरल गिरीश कुमार ने बताया गंगा का यह मैप पूरी तरह से हाई रिजोल्यूशन वाला डिजिटल एलिवेटेड मॉडल मैप होगा. इससे गंगा की लंबाई के साथ-साथ उसकी गहराई का भी सटीक पता चल जाएगा. यानी यह पता चल जाएगा कि गंगा किस शहर के पास कितनी गहरी है. बाढ़ में कितना पानी आ सकता है. कितनी दूर तक बहाव क्षेत्र बढ़ सकता है. या किस शहर का कितना हिस्सा बाढ़ में डूब सकता है. ऐसे में बाढ़ आने से पहले हम लाखों लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचा देंगे.
आखिर लाईडार कैसे काम करता है?
लेफ्टिनेंट जनरल गिरीश कुमार ने बताया एक हवाई जहाज पर लाईडार (LiDAR) प्रणाली का उपकरण लगाया जाता है. यह उपकरण उड़ते समय एक सेकंड में 75000 से ज्यादा पल्सेज (सामान्य भाषा में तरंगें) छोड़ता है. यह तरंगे धरती के ऊपर, नीचे से टकराने के बाद वापस उपकरण तक आती हैं इससे उस जगह का थ्रीडी डेटा जमा होता है. बाद में उसी डेटा को प्रोसेस करके थ्रीडी नक्शा तैयार किया जाता है. अभी करीब 4 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल का नक्शा तैयार हो चुका है. लेकिन मॉनसून की वजह से काम रुक गया था. अब कोहरे की वजह से रूका हुआ है. लेकिन हम इसे फिर जनवरी के अंत में शुरू करेंगे.
कब तक बन जाएगा गंगा का नया नक्शा?
सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया लेफ्टिनेंट जनरल गिरीश कुमार ने बताया जनवरी में फिर से नक्शा बनाने के लिए फ्लाइंग शुरू कर देंगे. अप्रैल 2020 तक हमारे पास पूरे गंगा का नया डेटा आ जाएगा. जून 2020 तक हम गंगा का नया हाई रिजोल्यूशन डिजिटल एलिवेटेड नक्शा सरकार को सौंप देंगे. इस नक्शे के आने के बाद से नमामि गंगे प्रोजेक्ट में काफी मदद मिलेगी.
पांच और नदियों का बन रहा है नक्शा
लेफ्टिनेंट जनरल गिरीश कुमार ने बताया उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल की पांच और प्रमुख नदियों का नक्शा बना रहे हैं. अभी हम करीब 8 लाख वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल कवर करेंगे. ये पूरा नक्शा जमीन, नदी, आसपास के इलाकों का थ्रीडी मैप होगा. ताकि बाढ़ की समस्या से शहरों को निजात दिलाई जा सके. इससे शहरी विकास में मदद मिलेगी. प्रदूषण पर रोक लगाने में भी मदद मिलेगी.