
जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पर कानून मामलों के जानकार लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रिया आ रही है. इस मुद्दे पर पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने कहा, 'कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. मैंने बिल में कोई भी असंवैधानिक चीज नहीं देखी. लेकिन अदालत को यह तय करना होगा कि क्या राज्यपाल की सहमति पर्याप्त थी. यह ग्रे क्षेत्र है. इसका प्रस्ताव विधानसभा की तरफ से आना चाहिए था. लेकिन अभी वहां विधानमंडल नहीं है.'
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की नजरबंदी पर सोली सोराबजी ने कहा कि राज्य में राजनीतिक नेतृत्व की गिरफ्तारी को मंजूरी नहीं देनी चाहिए थी. इससे गलत संदेश गया. संविधान संशोधन के सवाल पर उन्होंने कहा कि इसके लिए कायदे से संविधान संशोधन की आवश्यकता है. संसद को इसे पारित करने दें. इसमें सुधार की आवश्यकता होगी.
वहीं वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि इसमें कुछ भी असंवैधानिक नहीं है. राज्य विधायिका के रूप में संसद की कार्यवाही पारित हो सकती है. यह संशोधन नहीं है. हालांकि यह पूर्व के राष्ट्रपति के आदेश का हनन है.
बहरहाल, शाह फैसल की पार्टी से जुड़ीं शेहला रशीद ने कहा कि हम इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे. सरकार को गवर्नर मान लेने और संविधान सभा की जगह विधानसभा को रखने का फैसला संविधान के साथ धोखा है. सभी प्रगतिशील ताकतें एकजुट होकर लड़ाई लड़ेंगी. हम दिल्ली और बेंगलुरु में विरोध प्रदर्शन करेंगे.