
जयललिता ने 2001 में जब तमिलनाडु के मख्यमंत्री पद की शपथ ली तो कांची के शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती उनके आध्यात्मिक गुरू थे. चार साल बाद नवंबर में जयललिता ने पड़ोसी राज्य आंध्रप्रदेश के महबूबनगर में राज्य की पुलिस को भेजकर जयेन्द्र सरस्वती को गिरफ्तार कर चेन्नई बुला लिया.
यह गिरफ्तारी शाम के उस पहर की गई जब जयेन्द्र सरस्वती त्रिकाल संध्या पूजन करने की तैयारी कर रहे थे. अगले दिन से कार्तिक का महीना शुरू हो रहा था और शंकराचार्य को रातभर जागकर पूजा-पाठ करना था. लेकिन तमिलनाडु की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर एक खास हवाई जहाज से चेन्नई ले आए क्योंकि जयललिता का यही आदेश था.
'तुम्हें पता है मैं कौन हूं? मुझे कुछ हो गया तो पूरा देश हिल उठेगा.'
जयललिता से गिरफ्तारी का आदेश लेकर पहुंचे पुलिस दल से जयेन्द्र सरस्वती ने कहा. लेकिन गिरफ्तारी की जिम्मेदारी लेकर आए पुलिस अफसर की कान में जूं तक नहीं रेंगी. कुछ ही पल में जयेन्द्र सरस्वती को भी समझ आ गया कि अब पुलिसबल के साथ जाने के सिवाए उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा है. लिहाजा एक आखिरी कोशिश उन्होंने की-
'मुझे जयललिता से बात करनी है.'
तमिलनाडु की पुलिस कुछ देर शांत रही. जब जयेन्द्र सरस्वती की जयललिता से संपर्क साधने की कोशिश विफल हो गई तो वह अपनी पूजा बीच में छोड़कर जाने के लिए तैयार हो गए. विशेष विमान से चेन्नई पहुंचने के बाद तमिलनाडु पुलिस का बड़ा दस्ता एयरपोर्ट पर इंतजार कर रहा था. जहाज से उतरते ही उन्हें पुलिस की जीप में बैठने के लिए कहा गया.
'क्या मैं वीरप्पन हूं, जो पुलिस की गाड़ी में इस तरह बैठा कर ले जाया जाएगा?'
इस बयान के साथ ही जयेन्द्र सरस्वती का राजनीतिक सत्ता के प्रति सींचा हुआ भ्रम टूट रहा था. वह पुलिस की जीप में बैठ गए. बस एक उम्मीद बची थी कि उन्हें पूछताछ के लिए कांचिपुरम के उनके मठ ले जाया जाएगा. लेकिन पुलिस की जीप सीधे कांचीपुरम मजिस्ट्रेट के यहां रुकी. वहां एक आरोपी की तरह उनकी पेशी हुई और 15 दिन की न्यायिक हिरासत में वेल्लोर जेल भेज दिया गया. जेल में उन्हें एक सामान्य कैदी की तरह ढ़ाई बटा ढ़ाई की सेल में रखा गया.
दरअसल, जयेन्द्र सरस्वती की यह गिरफ्तारी एक कत्ल के सिलसिले में हुई थी. जयेन्द्र सरस्वती पर कत्ल के आरोप के साथ कत्ल की साजिश रचने और साक्ष्यों को छिपाने का आरोप भी लगा. सितंबर 2004 में कांची मठ के ही शंकरारामन का तीन मोटरसाइकिल पर सवार बदमाशों ने कत्ल कर दिया था. कत्ल से पहले और बाद में बदमाशों की बातचीत जयेन्द्र सरस्वती के साथ होने के साक्ष्य पुलिस के पास थे. वहीं कत्ल के लिए दी गई रकम की रिकवरी भी की जा चुकी थी.
हालांकि पूरा मामला इतना आसान नहीं था. राजनीतिक गलियारों और मठ के कर्मचारियों के बयान के मुताबिक जयललिता ने अपने आध्यात्मिक गुरू जयेन्द्र सरस्वती को महज इसलिए सलाखों के पीछे भेज दिया था क्योंकि जयललिता के कुछ नजदीकियों की नजर मठ की किसी जमीन पर थी. मठ उक्त जमीन पर अपना अस्पताल बनवाना चाहता था वहीं जयललिता के करीबी इस जमीन का अधिग्रहण कर अस्पताल का निर्माण कराना चाह रहे थे.
बहरहाल, खास बात यह है कि जयललिता के इस कदम का विरोध देश में किसी पार्टी ने नहीं किया. उनके धुर विरोधी डीएमके ने तमिलनाडु सरकार के फैसले के समर्थन में कहा कि कानून की नजर में सभी बराबर हैं. कांग्रेस ने पूरी तरह घटना को नजरअंदाज कर दिया. राष्ट्रपति रहे आर वेंकटरमन और मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन जयेन्द्र सरस्वती के भक्तों में थे लेकिन उन्होंने भी किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दी थी. महज, भारतीय जनता पार्टी, जो कि राज्य में निराधार थी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ-साथ विश्व हिंदू परिषद ने तमिलनाडु सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए उन्हें रिहा करने की अपील की थी.