
सरकार ने सोमवार शाम को जैसे ही ऐलान किया कि ‘Institution of Eminence’ (उत्कृष्ट) के लिए देश के छह शिक्षण संस्थानों में जियो इंस्टीट्यूट को भी शार्ट लिस्ट किया गया है, तो हर तरफ तमाम तरह के सवाल किए जाने लगे.
ऐसा ही एक सवाल था कि जिस संस्थान को गूगल सर्च में ढूंढा तक नहीं जा सकता उसे कैसे उत्कृष्ट संस्थान का दर्जा दिया जा सकता है. 'इंडिया टुडे' की वायरल टेस्ट टीम ने अपनी पड़ताल में पाया कि जो लोग ये सवाल उठा रहे हैं, उन्होंने अपना होमवर्क ठीक तरह से नहीं किया.
सोशल मीडिया पर जियो इंस्टीट्यूट सबसे ज्यादा ट्रेंड होने वाला टॉपिक बना हुआ है. आलोचकों का कहना है कि मोदी सरकार की ओर से मुकेश अंबानी को खुश करने के लिए ये फैसला किया गया. मुख्य विपक्षी पार्टी ने इसी पर तंज कसते हुए मोदी सरकार के लिए फिर ‘सूट बूट की सरकार’ के जुमले का इस्तेमाल किया.
देखते ही देखते जियो इंस्टीट्यूट का एक पैरोडी अकाउंट भी सामने आ गया. इस ट्विटर हैंडल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुकेश अंबानी पर चुटकी लेते हुए कई ट्वीट्स किए गए. इन्हें रामचंद्र गुहा जैसे नामचीन व्यक्तियों ने शेयर भी किया.
बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा ने भी सवाल किया कि कैसे एक संस्थान जो अभी वजूद में ही नहीं आया, उसे उत्कृष्टता का तमगा दिया जा सकता है. इस प्रकरण में आलोचकों की ओर से मोटे तौर पर तीन पहलुओं पर जोर दिया गया.
1 कैसे कोई संस्थान अस्तित्व में आने से पहले ही उत्कृष्ट घोषित किया जा सकता है?
2 जियो इंस्टीट्यूट ऑफ रिलायंस फाउंडेशन को क्यों सरकार की ओर से 1,000 करोड़ रुपए दिए जाने हैं जबकि इस पर देश के सबसे अमीर शख्स की सरपरस्ती है?
3 क्या प्राइवेट सेक्टर के अन्य आवेदकों की अनदेखी कर जियो इंस्टीट्यूट को चुना गया?
ऊपर दिए गए तीनों ही कयास हकीकत से दूर है. ऐसे में कयास लगाने वालों को सच जानने के लिए गूगल पर कुछ और बातों को भी तलाशने की आवश्यकता थी. मोदी सरकार का झुकाव अंबानियों की तरफ है या नहीं, ये बहस का विषय हो सकता है, लेकिन जियो इंस्टीट्यूट प्रकरण में आलोचक फिसलन वाली जमीन पर हैं.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सितंबर 2017 में एक विज्ञापन के जरिए ‘Institution of Eminence’ के लिए प्रस्ताव मांगे थे. उस विज्ञापन में साफ तौर पर जिक्र किया गया था कि आवेदन के लिए तीन अलग अलग श्रेणियां हैं.
तीसरी श्रेणी ‘नए संस्थान स्थापित करने के लिए संगठनों को स्पॉन्सर’ करने की थी. इस श्रेणी से साफ आशय था कि ऐसे संस्थान जो अभी अस्तित्व में नहीं आए हैं वो भी आवेदन कर सकते हैं बशर्ते कि वो अन्य शर्तों को पूरा करते हों. जियो इसी तीसरी श्रेणी के तहत शॉर्टलिस्ट हुआ है.
यहां ये जिक्र करना भी अहम है कि जियो को अभी तक उत्कृष्ट संस्थान का दर्जा नहीं दिया गया है. जियो को सिर्फ ऐसा संस्थान बनाने के लिए शॉर्ट लिस्ट किया गया है. उच्च शिक्षा सचिव आर सुब्राहमण्यम इस संबंध में और साफ करते हुए कहते हैं, “अभी तक उन्हें सिर्फ एक प्रयोजन का पत्र (Letter Of Intent) ही दिया गया है.”
अब आते हैं इस कयास पर कि क्या जियो इंस्टीट्यूट को सरकार की ओर से 1,000 करोड़ रुपए दिए जाएंगे जैसा कि आरोप लगाया जा रहा है. तो इसका जवाब साफ ‘ना’ है. सिर्फ़ चुनिंदा सरकारी संस्थानों को ही वित्तीय सहायता मिलेगी.
तीसरी बात ये कि क्यों सिर्फ जियो को ही चुना गया जबकि दस और आवेदकों ने भी इस श्रेणी में आवेदन किए थे.( वो जो नए संस्थान बनाना चाहते हैं.) इस सवाल का जवाब अन्य सभी 10 आवेदकों के आवेदन को विस्तार से पढ़ने के बाद ही दिया जा सकता है. क्या वे सभी अन्य शर्तों जैसे कि जमीन की उपलब्धता, वित्तीय मजबूती और अमल के लिए विस्तृत प्लान को पूरा करते हैं.
सरकार का इस विषय पर जोर दे कर कहना है कि छह संस्थानों को शार्टलिस्ट करने का ये मतलब नहीं है कि पूरी प्रक्रिया खत्म हो गई है. 14 और संस्थानों की पहचान की जाएगी और ये काम प्रगति पर है.