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JNU के छात्र को नोबेल मिलने से मिटेगा "देशद्रोह" का दाग, छात्रों को उम्मीद

1981 में अर्थशास्त्र पढ़ने जेएनयू आए अभिजीत को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिलने से छात्रों को उम्मीद है कि इससे विश्वविद्यालय को लेकर लोगों के नजरिए में बदलाव होगा.

नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर अभिजीत बनर्जी (फाइल फोटोः PTI) नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर अभिजीत बनर्जी (फाइल फोटोः PTI)
आशुतोष मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 15 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 11:54 PM IST

  • लहर के संपादक ने बताया सरकार को करारा जवाब
  • छात्रों को विश्वास, बदलेगा समाज का नजरिया

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र रहे अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा के बाद विश्वविद्यालय के छात्रों में खुशी की लहर है. 1981 में अर्थशास्त्र पढ़ने जेएनयू आए अभिजीत को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिलने से छात्रों को उम्मीद है कि इससे विश्वविद्यालय को लेकर लोगों के नजरिए में बदलाव होगा और देशद्रोह का दाग भी मिटेगा.

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कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र लहर के संपादक और सन 1980 में जेएनयू से हिंदी साहित्य में पीएचडी करने वाले डॉक्टर राजेंद्र शर्मा ने आजतक से बात करते हुए कहा कि अभिजीत बनर्जी को नोबेल पुरस्कार मिलना इस सरकार को एक जवाब है.

उन्होंने कहा कि पिछड़ा और गरीब तबके को आसानी से प्रवेश दिलाने वाले नियमों में बदलाव के खिलाफ 1983 में छात्रों ने तत्कालीन कुलपति के आवास पर धरना दिया था. इस पर 100 से अधिक छात्रों को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया था. इसमें अभिजीत भी थे.

डॉक्टर शर्मा ने कहा कि अभिजीत किसी विचारधारा या छात्र संगठन से जुड़े हुए नहीं थे, लेकिन फिर भी वह गरीब तबके और सामाजिक तौर पर पिछड़े हुए लोगों के लिए हुए उस आंदोलन का हिस्सा बने. उन्होंने कहा कि अभिजीत बनर्जी न सिर्फ जेएनयू के पहले छात्र हैं जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिला है, बल्कि वह तिहाड़ के ऐसे पहले कैदी भी हैं, जिन्हें नोबल पुरस्कार से नवाजा गया है. जेएनयू को लेकर हाल के दिनों में उठे विवादों का जिक्र करते हुए डॉक्टर शर्मा ने कहा कि यह विवाद को हवा देने वालों को करारा जवाब है.

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अध्यापकों ने बताया प्रोत्साहन देने वाली खबर

प्रोफेसर अभिजीत बनर्जी को नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा से न सिर्फ जेएनयू के सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज के छात्र, बल्कि अध्यापक भी प्रसन्न हैं. सेंटर के पूर्व छात्र अभिजीत को लेकर प्रोफेसर हिमांशु ने कहा कि शिक्षा और एक्टिविज्म जेएनयू की संस्कृति रही है. यहां ज्यादा से ज्यादा सोचने की आजादी मिलती है. अभिजीत बनर्जी को नोबल पुरस्कार मिलना युवा छात्रों के साथ साथ संपूर्ण अध्यापक वर्ग के लिए प्रोत्साहित करने वाली खबर है.

उन्होंने विश्वविद्यालय को लेकर उठे विवादों को पूरी तरह से राजनीतिक बताया और कहा कि पढ़ने-पढ़ाने वाले लोग उसमें विश्वास नहीं करते.

छात्रों को उम्मीद, अब नहीं उठेगी उंगली

विश्वविद्यालय के छात्रों ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उम्मीद जताई कि अब उनपर कोई उंगली नहीं उठाएगा. असम के निवासी और मीडिया स्टडी डिपार्टमेंट के शोध छात्र  कल्याण सोनवाल ने कहा कि यह उन शक्तियों और संगठनों को करारा जवाब है, जो जेएनयू की प्रतिष्ठा खराब करते हैं.

दिल्ली की रहने वाली शोध छात्रा सलोनी ने कहा कि विवादों के बाद दोस्तों के बीच भी स्वयं को जेएनयू का छात्र कहते हुए काफी मुश्किल होती थी, लेकिन अब विश्वविद्यालय के एक छात्र को नोबल जैसा पुरस्कार मिलना समाज में इस विश्वविद्यालय और उसके छात्रों के प्रति लोगों का नजरिया और रवैया जरूर बदलेगा. इनके जैसे तमाम छात्रों ने भी विश्वविद्यालय के प्रति समाज के नजरिए में बदलाव का विश्वास व्यक्त किया.

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