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भारतीय मूल के अमेरिकी जवान सीखाना चाहते हैं उरी के दोषियों को सबक

दोनों देशों के बीच इस अभ्यास में अमेरिका की लगभग 225 सैन्यकर्मियों की एक टुकड़ी और इतने ही सैन्यकर्मियों की एक टुकड़ी भारतीय सेना की ओर से हिस्सा ले रही है.

भारत-अमेरिका का संयुक्त अभ्यास भारत-अमेरिका का संयुक्त अभ्यास
मंजीत नेगी
  • रानीखेत,
  • 26 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 4:51 PM IST

उरी में आतंकी हमले के बीच एक तरफ जहां सारे देश में पाकिस्तान में बैठे आतंकियों को सबक सिखाने का माहौल उफान पर है, वहीं दूसरी तरफ भारतीय फौज के जांबाज अमेरिकी सेना के जवानों के साथ मिलकर आतंक की बढ़ती चुनौती से निपटने की मुहिम में जुटे हैं.

दोनों देशों के बीच इस अभ्यास में अमेरिका की लगभग 225 सैन्यकर्मियों की एक टुकड़ी और इतने ही सैन्यकर्मियों की एक टुकड़ी भारतीय सेना की ओर से हिस्सा ले रही है. भारतीय सैनिकों के पास कश्मीर के जटिल हालात से निपटने का अनुभव है, जबकि अमेरिकी सैनिकों के पास इराक और अफगानिस्तान का. दोनों सेनाएं मिलकर उग्रवादियों की घुसपैठ और आतंकवाद से मुकाबले के लिए एक साथ लड़ने का अभ्यास कर रही हैं.

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भारत की बेटी का अमेरिका में पराक्रम
भारत के रहने वाली चंडीगढ़ निवासी बलरीत खेरा अमेरिकी सेना में सार्जेंट है. उच्च शिक्षा के बीच में ही देश की यह बेटी 2006 मे यूएस आर्मी मे भर्ती हुई तो पंजाब की दिलेरी ने उसे अमेरिकी फौज मे एक अलग पहचान दिला दी. खास बात ये है कि ठीक एक साल बाद वर्ष 2007 व 2009 मे बलरीत को अमेरिकी इंफेट्री यूनिट ने विशेष ऑपरेशन के तहत उसे इराक भेजा. जहां यह जांबाज अकेली महिला कमांडो के रूप मे कसौटी पर खरी उतरी.

ये हैं दूसरे जवान
इसी तरह पंजाब के होशियारपुर टांडा के गबरू गुरप्रीत सिंह गिल भी यूएस आर्मी के फूर्तीले जांबाजो में हैं. उसे कारगिल युद्ध ने सेना मे जाने की प्रेरणा दी. मगर संयोग देखिए भारत के बजाय अमेरिकी फौज का सिपाही बन गया. इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई जयपुर से ही की. 2008 मे कोटा से बीटेक किया. इन दोनों जवानों ने 'आज तक' से खास बातचीत में बताया कि उनके दिल में आज भी भारत के लिए प्यार और हिम्मत का जज्बा है. उरी हमले को लेकर दोनों ही जवान आतंकियों को सबक सिखाने के लिए तत्पर हैं.

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भारत-अमेरिका का संयुक्त अभ्यास
भारत और अमेरिकी सेना का संयुक्त युद्ध अभ्यास उत्तराखंड के रानीखेत के पास चौबटिया में चल रहा है. दोनों देशों के बीच हुए हाल में हुए लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरंडम ऑफ अग्रीमेंट (LEMOA) सामरिक समझौते के बाद ये पहला बड़ा अभ्यास है. इस अग्रीमेंट के मुताबिक रिपेयर और सप्लाई के लिए एक-दूसरे के बेस का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा ईंधन लेने, संयुक्त अभ्यास, ट्रेनिंग, मानवीय मदद और आपदा राहत के मामले में भी एक-दूसरे की सुविधाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है.

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