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कर्नाटक चुनाव के लिए राहुल की तैयारी, गुजरात की तर्ज पर जारी रहेगा 'सॉफ्ट हिंदुत्व'

गुजरात में चुनाव पूरा होने तक कांग्रेस में ये हिचकिचाहट भी रही कि कहीं दांव उल्टा ना पड़ जाए. ये बात अलग है कि गुजरात में कुछ हद तक ये दांव कांग्रेस के लिए कारगर रहा. ऐसे में सवाल ये है कि क्या कांग्रेस और टीम राहुल आने वाले चुनावों में भी सॉफ्ट हिंदुत्व की उसी लाइन को आगे बढ़ाएगी जो गुजरात मे पकड़ी थी? 

राहुल गांधी राहुल गांधी
अंकुर कुमार/खुशदीप सहगल/कुमार विक्रांत
  • नई दिल्ली,
  • 09 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 8:36 PM IST

गुजरात में हाल में हुए विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की ओर से मंदिर-मंदिर जाकर दर्शन करने ने बहुत सुर्खियां बटोरीं. राहुल और कांग्रेस की ओर से ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’  की लाइन पकड़ने की भी खूब चर्चा हुई. गुजरात चुनाव के दौरान ही राहुल के ‘जनेऊधारी हिन्दू’ और ‘शिवभक्त’ अवतार भी सामने आए.

गुजरात में चुनाव पूरा होने तक कांग्रेस में ये हिचकिचाहट भी रही कि कहीं दांव उल्टा ना पड़ जाए. ये बात अलग है कि गुजरात में कुछ हद तक ये दांव कांग्रेस के लिए कारगर रहा. ऐसे में सवाल ये है कि क्या कांग्रेस और टीम राहुल आने वाले चुनावों में भी सॉफ्ट हिंदुत्व की उसी लाइन को आगे बढ़ाएगी जो गुजरात मे पकड़ी थी?  

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गुजरात नतीजे आने के बाद बेशक कांग्रेस गुजरात में बहुमत नहीं पा सकी लेकिन बीजेपी को 100 सीटों से नीचे रोककर मजबूत टक्कर देने में जरूर कामयाब रही. कांग्रेस और टीम राहुल को लगता है कि गुजरात में उनकी अपनाई नई नीति कारगर रही और इसी के चलते गुजरात में बीजेपी हिंदुत्व का मुद्दा नहीं भुना सकी.

ये भी हकीकत है कि राहुल गुजरात में जहां जहां बड़े मंदिरों में दर्शन के लिए गए, उन विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को अच्छी कामयाबी मिली. राहुल के मंदिर दर्शन के सवाल पर कांग्रेस प्रवक्ता राजबब्बर याद दिलाते हैं कि प्रभात फेरी और भजन कीर्तन कांग्रेस वर्षों पहले से करती आई है, पार्टी के लिए ये कोई नई बात नहीं है.

अब यहां सवाल ये उठता है कि क्या ‘ग्रैंड ओल्ड पार्टी’ आने वाले चुनावों की रणनीति भी उसी लाइन के इर्द गिर्द बुनेगी जो उसने गुजरात चुनाव में अपनाई. बड़े राज्यों की बात की जाए तो अब सबसे पहले कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने हैं. अगले हफ्ते कर्नाटक के पार्टी नेताओं के साथ दिल्ली में राहुल गांधी की बैठक के दौरान राज्य के लिए चुनावी प्लान पर मुहर लगेगी.

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20 जनवरी के बाद कर्नाटक में राहुल गांधी की ओर से प्रचार अभियान के पहले चरण की शुरुआत हो सकती है. इस दौरे के लिए कर्नाटक कांग्रेस ने अपना प्रस्ताव तैयार कर लिया है, जिसको राहुल के साथ बैठक में चर्चा के बाद घोषित किया जाएगा. इसमें तारीखों को लेकर ही थोड़े बहुत फेरबदल की ही संभावना है.

कर्नाटक यात्रा के पहले चरण में राहुल तीन बड़ी जगहों पर जाएंगे. इन जगहों को ऐसे चुना जा रहा है कि अलग अलग वर्गों को साथ जोड़ा जा सके. राहुल पहले चरण के दौरान मैसूर, बेलगाम और बेल्लारी जा सकते हैं.

मैसूर- यहां राहुल के छोटे मोटे कार्यक्रमों के अलावा एक बड़ा युवा सम्मेलन रखा गया है. ये शहर बेंगलुरू के करीब है. टेक्नोलॉजी और युवाओं के जॉब के लिहाज से युवा सम्मेलन के लिए मैसूर को चुना गया है.

बेलगाम- ये वो शहर है जहां महात्मा गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपी गई थी. यहां राहुल महिला सम्मेलन को संबोधित कर सकते हैं.

बेल्लारी- ये जिला आदिवासियों की बहुलता वाला है इसलिए यहां कांग्रेस की ओर से आदिवासी सम्मेलन करना तय हुआ है. बेल्लारी का कांग्रेस के लिए खासा सियासी महत्व भी है. सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाते हुए 1999 में इसी सीट से बीजेपी नेता सुषमा स्वराज ने लोकसभा चुनाव में उन्हें चुनौती दी थी. उस वक्त बेल्लारी के मतदाताओं ने सोनिया गांधी पर ही भरोसा दिखाया था और सुषमा स्वराज को चुनाव में शिकस्त का सामना करना पडा था.  

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राहुल के कर्नाटक दौरे के पहले चरण में गुजरात की तर्ज पर आदि वेदांत से सम्बंधित बड़ा धार्मिक स्थल श्रृंगेरी मठ भी शामिल है. कभी राहुल की दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी शृंगेरी मठ के दर्शन के लिए चिकमंगलूर गयी थीं. इंदिरा ने चिकमंगलूर से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था. उस वक्त इंदिरा के सामने 10 उम्मीदवारों ने पर्चा भरा था. उस चुवाव में स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने विवादित नारा भी लगाया था-  “एक शेरनी दस लंगूर, चिकमंगलूर-चिकमंगलूर.”

राहुल कर्नाटक में भी मंदिर-मठों में जाकर सॉफ्ट हिंदुत्व की लाइन को पकड़े रहते हैं तो सियासी गलियारों में फिर उसकी चर्चा होने के पूरे आसार हैं. इस मुद्दे पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आरपीएन सिंह का कहना है,  “मंदिरों में अगर कोई हिन्दू आशीर्वाद लेने जाता है तो बीजेपी को क्यों ऐतराज होता है. हिन्दू मंदिरों में तब से जाते हैं, जब बीजेपी का जन्म भी नहीं हुआ था.”  

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