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कर्नाटक में वापसी के लिए BJP को एक नहीं, तोड़ने होंगे दो रिकॉर्ड? 38 साल से कोई पार्टी नहीं कर सकी सत्ता में वापसी

कर्नाटक विधानसभा चुनाव का औपचारिक ऐलान हो चुका है. कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है, पर जेडीएस और कुछ क्षेत्रीय दल भी मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं. कर्नाटक में करीब चार दशक से हर 5 साल पर सत्ता बदलने का ट्रेंड रहा है. सवाल है कि क्या यह रिवाज बदल जाएगा या फिर यूं ही आगे भी चलता रहेगा?

सिद्धरैमाया, बीएस येदियुरप्पा, बसवराज बोम्मई सिद्धरैमाया, बीएस येदियुरप्पा, बसवराज बोम्मई
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 29 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 2:22 PM IST

कर्नाटक विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. चुनाव आयोग ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है. राज्य की सभी 224 विधानसभा सीट पर 10 मई को मतदान होगा, जबकि 13 मई को नतीजे आएंगे. ऐसे में सभी की निगाहें इस बात पर है कि कर्नाटक में करीब चार दशक से चले आ रहे सत्ता परिवर्तन का रिवाज कायम रहेगा या फिर इस बार के चुनाव में सारे समीकरण बदल जाएंगे?

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दक्षिण भारत के दुर्ग की लड़ाई
कर्नाटक विधानसभा चुनाव को 2024 लोकसभा चुनाव का सेमीफाइल माना जा रहा है. दक्षिण भारत में बीजेपी के सामने अपने एकलौते दुर्ग कर्नाटक की सत्ता को बचाए रखने के लिए चुनौती है तो कांग्रेस के लिए वापसी का चैलेंज है. बसवराज बोम्मई के सहारे बीजेपी अपनी सत्ता को बरकरार रखने की जद्दोजहद कर रही है, जबकि कांग्रेस डीके शिवकुमार-सिद्धरमैया की जोड़ी को आगे कर सत्ता में वापसी की कोशिश में लगी है तो जेडीएस कुमारस्वामी के दम पर किंगमेकर बनने का ख्वाब देख रही है. 

कर्नाटक में सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड
कर्नाटक की सियासत के संयोग कुछ और कहानी बयान कर रही है. राज्य में पिछले 38 सालों के चुनावी इतिहास को देखें तो सत्ताधारी पार्टी लगातार दोबारा सत्ता में वापसी नहीं कर सकी है. इतना ही नहीं, 2013 को छोड़कर केंद्र में रहने वाली सत्तारूढ़ दल कभी भी राज्य में बहुमत का आंकड़ा भी हासिल नहीं कर सकी है. कर्नाटक उन राज्यों में शुमार है, जहां हर पांच साल पर सरकारें बदल जाती हैं. कर्नाटक में ये सिलसिला 1985 से चल रहा है, यहां की जनता पांच साल एक पार्टी को तो पांच साल दूसरी पार्टी को मौका देती है. 

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बता दें कि साल 1972 से पहले कर्नाटक को मैसूर राज्य के नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में इसका नाम कर्नाटक कर दिया गया. कर्नाटक के चार दशक के सियासी इतिहास पर नजर डाली जाए तो 1983 और 1985 में ही लगातार दो बार जनता पार्टी की सरकार बनी थी. इसके बाद से जब भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, सत्ताधारी पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी नहीं कर सकी.

पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी

मैसूर से कर्नाटक नाम पड़ने के बाद 1972 में पांचवां विधानसभा चुनाव और 1978 में हुए छठे चुनाव में कांग्रेस जीत दर्ज कर सत्ता पर असीन हुई. आपातकाल के बाद 1983 में हुए राज्य के सातवें विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सत्ता से विदाई हुई और जनता पार्टी की सरकार बनी. जनता पार्टी ने 95 सीटें जीतीं और रामकृष्ण हेगड़े ने अन्य छोटे दलों के साथ मिल कर राज्य में पहली गैरकांग्रेसी सरकार बनाई. 

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हालांकि, जनता पार्टी की ये सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी. इसके बाद साल 1985 के चुनाव हुए तो जनता पार्टी ने 139 सीटों के साथ शानदार सफालता हासिल की. ये वही दौर था जब केंद्र की सत्ता पर इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी. इसके बावजूद कर्नाटक में उनका जादू नहीं चल सका और राज्य की सत्ता में नहीं आ सकी.

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ज्यादा सीटें जीतने का रिकार्ड

साल 1989 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव हुए. इस चुनाव में जनता पार्टी की विदाई हुई और कांग्रेस ने जबर्दस्त जीत के साथ सत्ता में वापसी की. राज्य के इतिहास में अब तक की सबसे ज्यादा 178 सीटें जीतने का कांग्रेस ने रिकॉर्ड बनाया, जिसे कोई दल अभी तक तोड़ नहीं सका. पांच साल के बाद साल 1994 में विधानसभा चुनाव हुए में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल 115 सीटें जीतकर सरकार बनाने में सफल रही. जबकि केंद्र की सत्ता में पी वी नरसिंहराव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी. 

देवगौड़ा सीएम से पीएम बने

हालांकि, 1996 में संयुक्त मोर्चा की केंद्र में सरकार बनी तो एचडी देवगौड़ा देश के प्रधानमंत्री बन गए और कर्नाटक में सत्ता की कमान जेएच पाटिल को सौंप दिया. इसके बाद 1999 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथों जनता दल को करारी हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस ने 132 सीटें जीतकर राज्य की सत्ता में वापसी की. ये वही समय था, जब केंद्र की सत्ता में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी गठबंधन एनडीए की सरकार थी.

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राज्य में पहली बार गठबंधन सरकार

साल 2006 में हुए कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा. बीजेपी 79 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और कांग्रेस को 65 सीटें मिलीं. कांग्रेस ने जेडीएस के साथ मिलकर कर्नाटक में सरकार बनाई जो राज्य की पहली गठबंधन की सरकार बनी. वहीं, केंद्र की सत्ता में कांग्रेस गठबंधन की सरकार थी. इसके बाद जेडीएस ने बीजेपी के साथ सरकार बनाया और मुख्यमंत्री कुमारस्वामी बने. 

कर्नाटक में पहली बार खिला कमल

2008 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जेडीएस को करारी हार का मुंह देखना पड़ा. बीजेपी 110 सीटों के साथ सत्ता पर विराजमान हुई और सीएम की कमान बीएस येदियुरप्पा को मिली. दक्षिण भारत में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी थी. 2008 में केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार थी. इसके बावजूद कांग्रेस महज 80 सीटों पर सिमट गई, लेकिन पांच साल के बाद 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की और बीजेपी को करारी मात खानी पड़ी थी. 

कांग्रेस ने रचा जब इतिहास

2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 122 सीट मिली थी जबकि बीजेपी और जेडीएस के हिस्से में 40-40 सीटे ही आ सकी थी. इस चुनाव में बीएस येदियुरप्पा बीजेपी से बगावत कर अपनी अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़े थे, जिससे बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा था और कांग्रेस को फायदा मिला. कांग्रेस के दिग्गज नेता सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बने थे. कर्नाटक के सियासी इतिहास में चार दशक में पहली बार था जब केंद्र की सत्ताधारी दल राज्य में बहुमत का आंकड़ा हासिल करने में कामयाब रही थी. 

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पांच साल बाद 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अपनी सत्ता गवांनी पड़ी. कांग्रेस को 80 सीटें मिली थी जबकि बीजेपी के हिस्से में 104 विधानसभा सीटें आई थी. वहीं, जेडीएस 37 सीटें, एक सीट बसपा और दो सीटें अन्य को मिली थी. बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन बहुमत के आंकड़ा नहीं पा सकी थी. 
 

कांग्रेस-जेडीएस की दोस्ती नहीं चली

राज्यपाल ने बीजेपी को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया था, लेकिन बीएस येदियुरप्पा सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाए थे, जिसके चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. इसके बाद जेडीएस और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई थी और मुख्यमंत्री का ताज कुमारस्वामी के सिर सजा था. हालांकि, 2019 के चुनाव के बाद कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों के बगावत के बाद बीजेपी फिर से सरकार बनाने में कामयाब रही थी. येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन 2021 में बीजेपी ने येदियुरप्पा को हटाकर बसवराज बोम्मई को प्रदेश की कमान सौंप दी और अब उनकी सियासी अग्निपरीक्षा है. 

बोम्मई के सामने सत्ता बचाने का चैलैंज

बीजेपी बोम्मई के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा रही है. ऐसे में इस बार बड़ा सवाल यही है कि बोम्मई क्या सत्ता परिवर्तन का रिवाज बदल पाएंगे या फिर उन्हें अपनी सत्ता गवांनी पड़ेगी. बीजेपी के लिए एक तरफ सत्ता परिवर्तन की चुनौती है तो दूसरी तरफ केंद्र में बीजेपी की सरकार है. ऐसे में बहुमत का आंकड़ा जुटाना भी बीजेपी के लिए बड़ा चैलेंज होगा. इधर चार दशक के सियासी इतिहास को देखते हुए कांग्रेस के हौसले भी बुलंद है और उसे अपनी वापसी की उम्मदी नजर आ रही है. ऐसे में देखना है कि इस बार सत्ता परिवर्तन का इतिहास दोहराएगा या फिर नए समीकरण बनेंगे? 

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