
अनुच्छेद 370 पर कदम उठाने की तैयारी सरकार काफी पहले से कर रही थी. अप्रैल महीने से ही सरकार जम्मू-कश्मीर में अनाज का भंडार काफी तेजी से बढ़ा रही थी, जो राज्य की मासिक औसत जरूरतों से काफी ज्यादा था. इससे ऐसा लगता है कि सरकार कश्मीर में लंबे समय तक बंदी के लिए पहले से तैयार थी.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. खबर के अनुसार, मई 2019 में राज्य में अनाज का भंडार 1.53 लाख मीट्रिक टन था, लेकिन जुलाई में 15 तारीख तक ही यह बढ़कर 1.79 लाख मीट्रिक टन हो गया. यह राज्य की औसत जरूरतों के मुकाबले 2.75 गुना ज्यादा था.
जम्मू-कश्मीर में हर महीने करीब 62,590 मीट्रिक टन अनाज की खपत होती है. अप्रैल से जून के दौरान राज्य में कुल 2.77 लाख मीट्रिक टन अनाज भेजा गया. इसके अलावा तमाम सरकारी योजनाओं में वितरित किया जाने वाला अनाज भी पहले से था. हालांकि सरकारी अधिकारियों का दावा है कि यह तो जम्मू-कश्मीर में अनाज का भंडारण करने का 'लगातार जारी रहने वाला प्रयास' है.
जम्मू-कश्मीर सरकार ने फरवरी, 2016 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लागू किया था, जिसके लिए सालाना 4.77 लाख मीट्रिक टन अनाज का आवंटन किया जाता है. इसमें 1.41 लाख टन गेहूं और 3.36 लाख टन चावल होता है.
गौरतलब है कि कश्मीर को लेकर मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसला किया है. सोमवार को गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में अनुच्छेद 370 हटाने का संकल्प पेश किया. उन्होंने कहा कि कश्मीर में लागू धारा 370 में सिर्फ खंड-1 रहेगा, बाकी प्रावधानों को हटा दिया जाएगा.
इसके अलावा नए प्रावधान में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन का प्रस्ताव भी शामिल है. उसके तहत जम्मू कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश होगा और लद्दाख को जम्मू कश्मीर से अलग कर दिया गया है. उसे भी केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है. हालांकि वहां विधानसभा नहीं होगी.
बता दें कि कश्मीर में धारा-144 लगी हुई है. कानूनन एक स्थान पर चार से ज्यादा लोगों के जमा होने पर मनाही है. जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार देने वाली धारा-370 के कई प्रावधानों को खत्म करने और जम्मू-कश्मीर राज्य को दो भागों में बांटने के बाद वहां तनाव है. सरकार ने शांति बनाए रखने के लिए संचार के सभी साधनों पर रोक लगा दी है. श्रीनगर में मोबाइल, इंटरनेट, ब्रॉडबैंड पर रोक लगी हुई है.