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जमीन से लेकर झीलों और हवा में भी घुल जाता जहर, अगर कजाकिस्तान ने मान ली होती US की ये बात, भारी पैसों के बदले हुई थी डील

करीब 2 दशक पहले कजाकिस्तान दुनिया का पहला ऐसा देश बना, जिसने न्यूक्लियर वेस्ट के आयात पर हामी भर दी. आसान ढंग से कहें तो जिस जहरीले कचरे से दुनिया के बाकी देश खौफ खाते हैं, वो उसे अपनी जमीन पर रखेगा. इसके बदले उसे भारी पैसे मिलने वाले थे, जो कि तभी-तभी आजाद हुए गरीब मुल्क के लिए निहायत जरूरी था. लेकिन फिर कुछ बदला, और कजाकिस्तान एकदम से बिदक गया.

कजाकिस्तान में चार सौ से ज्यादा न्यूक्लियर टेस्ट हो चुके थे. (Photo- Getty Images) कजाकिस्तान में चार सौ से ज्यादा न्यूक्लियर टेस्ट हो चुके थे. (Photo- Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 07 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 4:19 PM IST

भोपाल गैस कांड में निकले यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे पर इन दिनों भारी हल्ला है. हाल में इस रासायनिक वेस्ट को भोपाल से हटाकर पीथमपुर भेज दिया गया ताकि वहीं इसे जलाकर खत्म किया जा सके. इसके बाद लोग भड़क उठे. प्रोटेस्ट होने लगे कि कचरा किसी भी हाल में उनके यहां न जलाया जाए. एक्सपर्ट सारे लॉजिक देकर हार गए कि इसमें अब कोई जहर नहीं, लेकिन जनता है कि मानने को राजी नहीं.

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ये हाल एक राज्य का है, जहां एक हिस्से से दूसरे हिस्से में केमिकल वेस्ट को स्वीकारा नहीं जा रहा. वहीं दुनिया का एक मुल्क ऐसा भी है, जो सारे देशों का बेहद जहरीला न्यूक्लियर वेस्ट अपने यहां जमा करने के लिए राजी था. 

साल 2002 की बात है, जब कजाकिस्तान ने इसपर मंजूरी दे दी कि दुनियाभर के देश अपने-अपने यहां जमा परमाणु कचरा उसके यहां जमा कर सकें. सेंट्रल एशिया का ये देश नब्बे के दशक में रूस से अलग हुआ था और उसे पैसों की भारी जरूरत थी. पश्चिमी देशों और कजाक सरकार की यह डील कुछ ऐसी ही थी कि गरीब युवक जरूरत के चलते अमीर परिवार को अपनी किडनी बेच दे.  

लेकिन क्या महज पैसों के लिए उसने हामी भरी थी, या बात कुछ और थी? 

ये समझने के लिए एक बार तीन दशक पहले के कजाकिस्तान को जानते चलें. नब्बे की शुरुआत में सोवियत संघ का ये हिस्सा टूटकर आजाद देश तो बन गया लेकिन उसके पास आजादी को सेलिब्रेट करने के लिए कुछ नहीं था. उसकी पूरी इकनॉमी रूस के आसपास घूमती थी. अब रूस नहीं था. आजादी के अगले पांचेक साल के भीतर ही देश की अर्थव्यवस्था 40 फीसदी तक गिर गई.

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रूबल करेंसी की बजाए उसने अपनी मुद्रा तेंगे जारी की. कई कोशिशें हुईं लेकिन गिरावट का ग्राफ वैसा ही रहा. कजाकिस्तान में तेल, यूरेनियम और कई मिनरल्स थे लेकिन उनके खनन के लिए पैसे और एक्सपर्ट दोनों ही गायब थे. 

नूरसुल्तान नजरबायेव इस देश के पहले राष्ट्रपति थे, जो लगातार इकनॉमी पर काम कर रहे थे, इसी बीच एक आया एक प्रपोजल. न्यूक्लियर वेस्ट डंपिंग इनिशिएटिव. इसके तहत परमाणु हथियार बना रहे देशों ने प्रस्ताव दिया कि वे अपने यहां टेस्टिंग करेंगे लेकिन इस प्रोसेस में निकला वेस्ट कजाकिस्तान में भेज देंगे. अमेरिका और यूरोप के कई देशों ने मिलकर ये सुझाव दिया था. 

अपने देश में क्यों खत्म नहीं करना चाहते थे कूड़ा

परमाणु कचरे को खत्म करने में भारी जोखिम है. इसमें जमीन और पानी से लेकर हवा भी प्रदूषित हो सकती है, जिसका सीधा असर लोगों और पर्यावरण पर होगा. यही वजह है कि पश्चिमी देशों के संगठन अपने देश में न्यूक्लियर वेस्ट खत्म करने के खिलाफ थे. इन देशों ने इसे आउटसोर्स करने की सोची ताकि अपने यहां बवाल से बच सकें. कजाकिस्तान इसमें आदर्श ठहरा. बेहद लंबे-चौड़े इस देश का बड़ा हिस्सा वीरान पड़ा था और आबादी भी बहुत कम थी. 

एक कारण और भी था

सोवियत संघ के तले रहते हुए इस देश में लगातार परमाणु परीक्षण हुए थे. वहां के सेमिकपालातिंस्क (अब सेमेय) इलाके में साल 1949 से 1989 तक लगभग 450 परमाणु परीक्षण हुए, जिससे यहां की जमीन लगभग बेकार हो गई. सोवियत से अलग होने पर इस देश के पास परमाणु भंडार था, लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति ने इसे सरेंडर कर दिया. इससे इंटरनेशनल स्तर पर तो देश की जमकर वाहवाही हुई लेकिन साथ ही एक अलग किस्म का खतरा मंडराने लगा. 

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आर्थिक फायदे के बदले राजी होने लगा देश

देश गरीब था, साथ ही सैन्य तौर पर कमजोर भी. अपनी ताकत खुद ही उसने खत्म कर डाली थी. ऐसे में पश्चिमी देशों ने मिलकर उसे तैयार कर लिया कि वे अपने यहां का जहरीला कचरा उसके यहां डंप करेंगे. दलील ये थी कि कजाकिस्तान में पहले भी तो परीक्षण होते रहे हैं. कजाकिस्तान को बदले में अरबों डॉलर की आर्थिक मदद और निवेश की पेशकश की गई. शुरुआती ड्राफ्ट में फंड्स फॉर स्टोरेज की बात थी. ये डील उस वक्त खुद कजाक सरकार को अच्छी लगी. 

जनता और संगठन करने लगे विरोध 

कुछ ही महीनों के भीतर जनता को पता लग गया कि वे ग्लोबल न्यूक्लियर वेस्ट इंपोर्टर बनने जा रहे हैं. योजना के खुलते ही लोगों और पर्यावरण पर काम कर रहे संगठनों ने इसका विरोध शुरू किया. इसे इकनॉमिक ब्लैकमेलिंग कहा गया जो कि सच था. गरीबी की वजह से ही अमीर देश उसके सामने ऐसी योजना रख सके थे. 

वक्त बीतते- न बीतते तत्कालीन सरकार को अहसास हो गया कि इस प्रस्ताव पर आधिकारिक सहमति से देश में बगावत हो सकती है, साथ ही इससे उनके ताजा-ताजा आजाद देश की सेहत भी गड़बड़ा जाएगी. आखिरकार, साल 1998 में सरकार ने आधिकारिक तौर पर प्रस्ताव को खारिज कर दिया. 

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अब क्या है सैकड़ों परमाणु टेस्टिंग झेल चुके इलाके का हाल

सेमिकपालातिंस्क में साल 1949 से लेकर अगले चालीस सालों के बीच साढ़े चार सौ से ज्यादा परमाणु टेस्ट हुए. इनमें से एक सैकड़ा से ज्यादा टेस्ट जमीन के ऊपर, जबकि बाकी जमीन के नीचे हुए. इसकी वजह से दस हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा का इलाका रेडियोएक्टिव विकिरणों से प्रदूषित हो गया. वहां के हवा, पानी और मिट्टी में यह जगह आज भी मौजूद है. जमीन बंजर हो चुकी है और कई इलाकों में खेती या पशुपालन मुमकिन नहीं. यहां स्थित झीलें और नदियां भी जहर से बची नहीं रहीं, और न ही लोग बच सके.

विकिरणों की वजह से यहां आज भी कैंसर, स्किन की बीमारियां और जन्मजात बीमारियां आम हैं. टेस्टिंग रुके इतने साल बीतने के बाद भी स्थानीय लोगों और नई पीढ़ियों में भी असर दिख रहा है. यही वजह है कि इस इलाके की आबादी लगातार कम होती गई. खासकर आजादी के तुरंत बाद लोग इसे छोड़कर देश के बाकी हिस्सों में जाने लगे. जहां देश के बाकी हिस्सों में लोग बढ़ रहे हैं, वहीं यहां सोवियत काल के समय की आबादी के मुकाबले आज भी लोग कम हैं. 

फिलहाल कहां है यूएस और यूरोप का न्यूक्लियर वेस्ट

प्रस्ताव तो खारिज हो गया, लिहाजा सारे ताकतवर देशों ने अपना-अपना अलग प्लान बनाया. अमेरिका ने कई अस्थाई भंडार बनाए हुए हैं, जहां ये जहरीला वेस्ट रखा जा रहा है. हालांकि इनकी क्षमता सीमित है और लंबे समय तक काम नहीं चल सकेगा. नब्बे के दशक में अमेरिका ने अपने ही एक राज्य को भी इसी तरह से डंपिंग ग्राउंड बनाना चाहा लेकिन लड़ाई-फसाद के बाद बात अटक गई. यूरोप में परमाणु कचरे के निपटारे के लिए कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं. 

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