
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्नाटक विधानसभा चुनाव में ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं. इन रैलियों में पीएम मोदी की बात को जनता तक पहुंचाने के लिए उनके भाषण का कन्नड़ भाषा में अनुवाद भी किया जाता है. एक शख्स मोदी के भाषण के शब्दों का सिर्फ अनुवाद ही नहीं, बल्कि मोदी की भावनाओं को भी लोगों तक पहुंचाता है. इस शख्स का नाम है गणेश याहजी, जो मोदी के भाषण का अनुवाद करते हैं और कुछ कागजों के साथ रैली में दिखाई देते हैं.
याहजी भले ही मोदी के भाषण की अहम बातें कागज में लिखकर रखते हैं, लेकिन फिर भी वे बिना कागज के इस्तेमाल के मोदी के भाषण का अनुवाद करते हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, याहजी का कहना है कि मोदी की हाल ही की रैली में उनके पास बहुत कम वक्त था और उन्हें एक-एक शब्द सुनकर उसे लोगों के लिए कन्नड़ में ट्रांसलेट करना पड़ा. उन्होंने सबसे पहली बार मोदी की सांथेमरहल्ली में हुई रैली में अनुवाद का काम किया था.
उनका कहना है 'मैंने कई बार यह काम किया है. अनुवाद करना मेरे लिए कोई परेशानी का काम नहीं है. मुझे सुनिश्चित करना था कि मैं मोदी जी के भाषण में वो भावनाएं भी शामिल कर सकूं'. उन्होंने यह भी बताया कि भाषण के बाद उन्हें ध्यान में आया कि उनके हाथ में पेपर थे, लेकिन वो उसका इस्तेमाल नहीं कर सके. साथ ही जो मोदी जी बोल रहे थे वो पेपर से बहुत अलग था और इसलिए सुनकर अनुवाद करना ही बेहतर था.
कर्नाटक में मोदी बोले- अंग्रेजों के नक्शेकदम पर कांग्रेस, 'फूट डालो राज करो'
बता दें कि याहजी कर्नाटक बीजेपी की टीम का एक हिस्सा भी हैं. वे मोदी की आगामी रैलियों के लिए भी काम कर रहे हैं. याहजी के अनुसार वे कई बीजेपी नेताओं के साथ काम कर चुके हैं और उन्होंने 6 महीने पहले केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह और उसके बाद अमित शाह के लिए भी काम किया था.
प्रदेश बीजेपी के महासचिव एन रविकुमार का कहना है कि पार्टी ने 6 लोगों को सूची बनाई थी. उन्होंने बताया कि ट्रांसलेटर को सिर्फ हिंदी, कन्नड़ भाषा की जानकारी ही नहीं होनी चाहिए, बल्कि राजनीति की समझ भी होनी चाहिए. कर्नाटक में जहां याहजी दक्षिण कर्नाटक कवर करते हैं, वहीं केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार बैंगलुरु और उसके आस-पास के क्षेत्र में मोदी की स्पीच को अनुवाद करते हैं.
कर्नाटक में कांग्रेस vs बीजेपी: कितना अलग है दोनों दलों का घोषणापत्र, इन मुद्दों पर हुए एक
गौरतलब है कि याहजी ने साल 1993 में पहली बार अनुवाद किया था, जब फारुक अब्दुल्ला कर्नाटक में स्थानीय नेताओं से बातचीत करने आए थे. उन्होंने इस काम के लिए कभी ट्रेनिंग नहीं ली और ना उन्होंने कभी हिंदी सिखी है. उन्होंने बताया कि मैंने कई हिंदी फिल्में देखी हैं और उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में दिल्ली में राजनीति सीखी है.