
केंद्र सरकार की ओर से जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और लद्दाख को अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के फैसले के बाद पाकिस्तान में हलचल बढ़ी हुई है. पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा है कि उनका देश शिमला समझौते की कानूनी वैधता को परखेगा.
उधर, मोदी सरकार के फैसले से बौखलाए पाकिस्तान ने जब इस मसले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के सामने उठाना चाहा तो पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी. यूएनएससी की अध्यक्ष जोआना रोनक्का ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 में किए गए बदलाव पर अपनी प्रतिक्रिया देने से न केवल इनकार कर दिया, बल्कि पाकिस्तान को 1972 शिमला समझौते का भी हवाला दे दिया.
दरअसल, जम्मू और कश्मीर के ताजा मसले को लेकर पाकिस्तान ने यूएनएससी को पत्र लिखकर हस्तक्षेप करने की मांग की थी. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने गुरुवार को जम्मू और कश्मीर में मौजूदा स्थिति पर अधिकतम संयम बरतने की अपील की थी. संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कश्मीर के समाधान के लिए पाकिस्तान को द्विपक्षीय शिमला समझौते का निर्देश दिया. यूएन में पाकिस्तान के दूत मलीहा लोधी ने मामले में यूएन से हस्तक्षेप की मांग की थी.
क्या था शिमला समझौता
दरअसल, 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बाद 2 जुलाई 1972 को यह समझौता हुआ था. युद्ध के दौरान भारत की ओर से 90 हजार से ज्यादा पाक सैनिकों को बंदी बनाए जाने के बाद घुटनों पर आए पाकिस्तान ने यह समझौता किया था. भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. जिसमें तय हुआ था कि दोनों देश आपस में बातचीत के जरिए कश्मीर से जुड़े विवाद सुलझाएंगे, इसमें किसी तीसरी ताकत का दखल स्वीकार नहीं होगा.
इस प्रकार शिमला समझौते से स्पष्ट हो गया कि कश्मीर के मसले पर यूएन दखल नहीं दे सकता. माना जा रहा है कि शिमला समझौते की इसी शर्त के कारण संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने दखल देने से इनकार कर दिया. शिमला समझौते में अन्य कई फैसले हुए थे. जिसमें संबंध सामान्य बनाए रखने के लिए द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने पर बल देने, बातचीत के जरिए समाधान तलाशने, व्यापार और आर्थिक संबंध मजबूत करने पर सहमति बनी थी. यह भी तय हुआ था कि दोनों देश एक दूसरे की सीमाओं का अतिक्रमण नहीं करेंगे.