
प्रयागराज में दुनिया का सबसे बड़ा मेला कुंभ मेला लग रहा है. मकर संक्रांति के साथ कुंभ मेले की शुरुआत हो जाएगी. हिंदू धर्म के अनुसार मान्यता है कि कुंभ में किसी भी नदी में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है. यही वजह है कि कुंभ में देश-विदेश से लोग पवित्र नदी में डुबकी लगाने पहुंचते हैं. इस बार कुंभ में 12 करोड़ लोगों के आने का अनुमान है.
तीर्थ राज प्रयाग की देव भूमि पर गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है इसलिए इस स्थान का महत्व और महिमा सर्वोपरि है. तीर्थराज प्रयाग का उल्लेख धर्मशास्त्रों में भी मिलता है. कहते हैं कि यही वो स्थान है, जहां से प्रभु राम को केवट ने गंगा पार कराया था.
12 वर्षों में लगता है कुंभ
कुंभ मेले का आयोजन प्राचीन काल से हो रहा है. कुंभ मेले का आयोजन चार जगहों पर होता है. हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में कुंभ का मेला होता है. इन चार स्थानों पर प्रत्येक 3 वर्ष के अंतराल में कुंभ का आयोजन होता है इसीलिए किसी एक स्थान पर प्रत्येक 12 वर्ष बाद ही कुंभ का आयोजन होता है.
शास्त्रों में भी है कुंभ का जिक्र
कुंभ मेले का वर्णन शास्त्रों में मिलता है. कहते हैं इस पर्व का संबंध समुद्र मंथन से रहा है. इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है. इस पर्व का संबंध समुद्र मंथन के दौरान अंत में निकले अमृत कलश से जुड़ा है. देवता-असुर जब अमृत कलश को एक दूसरे से छीन रह थे, तब उसकी कुछ बूंदें धरती की तीन नदियों में गिरी थीं. जिन तीन नदियों में अमृत बूंदे गिरी थी वे हैं गंगा, गोदावरी और क्षिप्रा. जहां ये बूंदें गिरी थीं, उस स्थान पर कुंभ का आयोजन होता है.प्रयाग में इस बार अर्ध कुंभ का आयोजन हो रहा है. अब सवाल ये भी है कि कुंभ और अर्ध कुंभ में क्या अंतर है.
अर्धकुंभ क्या है?
हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच 6 वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है. पौराणिक ग्रंथों में भी कुंभ एवं अर्ध कुंभ के आयोजन को लेकर ज्योतिषीय विश्लेषण हैं. कुंभ पर्व हर 3 साल के अंतराल पर हरिद्वार से शुरू होता है. हरिद्वार के बाद कुंभ पर्व प्रयाग नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है. प्रयाग और हरिद्वार में मनाए जाने वाले कुंभ पर्व में और प्रयाग और नासिक में मनाए जाने वाले कुंभ पर्व के बीच में 3 सालों का अंतर होता है. यहां माघ मेला संगम पर आयोजित एक वार्षिक समारोह है.
कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक बहुत ही श्रद्धेय पर्व है जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व वाले स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं. शास्त्रों के मुताबिक, चार विशेष स्थानों पर ही कुंभ मेला लग सकता है. नासिक में गोदावरी नदी के तट पर, उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर, हरिद्वार और प्रयागराज में गंगा नदी के तट पर ही कुंभ का आयोजन हो सकता है. इनमें से प्रत्येक स्थान पर हर 12वें साल में, हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह साल के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है.
कुंभ मेले की महिमा
कुंभ पर्व का सीधा सम्बन्ध तारों से है. अमृत कलश को स्वर्गलोक तक ले जाने में जयंत को 12 दिन लगे. देवों का एक दिन मनुष्यों के 1 वर्ष के बराबर है. इसीलिए तारों के क्रम के अनुसार हर 12वें वर्ष कुंभ पर्व विभिन्न तीर्थ स्थानों पर आयोजित होता है. युद्ध के दौरान सूर्य, चंद्र और शनि आदि देवताओं ने कलश की रक्षा की थी. उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं. तब कुंभ का योग होता है, चारों पवित्र स्थलों पर प्रत्येक 3 वर्ष के अंतराल पर क्रमानुसार कुंभ मेले का आयोजन होता है.
अमृत की बूंदे छलकने के समय जिन राशियों में सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति की स्थिति के विशिष्ट योग के अवसर रहते हैं. वहां कुंभ पर्व का इन राशियों में गृहों के संयोग पर आयोजन होता है. इस अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरु और चन्द्रमा के विशेष प्रयत्न रहे थे. इसी कारण इन्हीं गृहों की उन विशिष्ट स्थितियों में कुंभ पर्व मनाने की परम्परा है.
कुंभ में स्नान के लाभ-
कुंभ में स्नान करने से इंसान के पापों का प्रायश्चित हो जाता है.
कुंभ का मेला मकर संक्रांति के दिन शुरु होता है.
इस दिन जो योग बनता है उसे कुंभ स्नान-योग कहते हैं.
मान्यता है कि किसी भी कुंभ मेले में पवित्र नदी में स्नान से सभी पाप धुल जाते हैं
कुंभ स्नान से मनुष्य को मोक्ष और सदंगति की प्राप्ति होती है.
मकर संक्रांति के साथ ही संगम तट पर अर्ध कुंभ की शुरुआत हो जाएगी. देश के साथ साथ विदेशों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पावन गंगा में आस्था की डुबकी लगाने पहुंचेंगे.