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चुनावी साल में होगी सौगातों की बौछार, इस बार अंतरिम नहीं पूर्ण बजट पेश कर सकती है मोदी सरकार

Modi Government Budget 2019 यह एक परंपरा बन गई है कि चुनावी साल में सरकारें अंतरिम बजट पेश करती हैं, क्योंकि यह माना जाता है कि चुनाव के बाद आने वाली सरकार अपने हिसाब से नीतियां बनाएगी और इसलिए पूर्ण बजट पेश करना उसके लिए ही ठीक है. लेकिन इस बार मोदी सरकार यह परंपरा तोड़ सकती है.

इस बार बजट में हो सकती है लोकलुभावन घोषणाएं इस बार बजट में हो सकती है लोकलुभावन घोषणाएं
राजीव दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 17 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 3:55 PM IST

इस बात को लेकर काफी कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार 1 फरवरी को जब वित्त मंत्री बजट पेश करेंगे तो वह लेखानुदान (अंतरिम बजट) होगा या बीजेपी सरकार परंपरा को तोड़ते हुए पूर्ण बजट पेश करेगी. ऐसा कहा जा रहा है कि एनडीए सरकार इस बार पूर्ण बजट पेश करेगी, यह भरोसा जताने के लिए कि 2019 के आम चुनाव में जीतकर वह फिर से सत्ता में आएगी. यह माना जा रहा है कि इस बजट में कई लोकलुभावन घोषणाएं की जा सकती हैं.

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वित्त मंत्रालय और भारत सरकार के हाल के ट्वीट देखें तो यह बात साफ नजर आती है. ऐसे कई ट्वीट में आगामी एक फरवरी को 'केंद्रीय बजट' या 'बजट 2019' पेश करने की बात कही गई है, जबकि पहले ऐसे अंतरिम बजट के लिए ज्यादा स्वीकार्य 'वोट-आन-अकाउंट' (लेखानुदान) शब्द का इस्तेमाल किया जाता था. यहां तक कि सोशल मीडिया के हैशटैग्स में भी #Budget2019 लिखा गया है.

इस वजह से बनी परंपरा

गौरतलब है कि आम परंपरा यह रही है कि चुनाव के साल में सरकार लेखानुदान या अंतरिम बजट पेश करती रही है. यह असल में नैतिकता का मसला है. जाने वाली सरकार तब तक के खर्च के लिए लेखानुदान पेश करती है और इस पर संसद की इजाजत लेती है, जब तक कि नई सरकार का बजट नहीं आता. सरकार आने वाली सरकार पर अपनी नीतियां नहीं थोपना चाहती. हो सकता है चुनाव के बाद जो नई सरकार आए उसे पिछली सरकार की नीतियां पसंद न आएं और वह इसे पूरी तरह से पलट दे. इसलिए यह परंपरा बन गई है कि किसी भी सरकार का अंतिम यानी चुनाव के साल वाला बजट अंतरिम बजट होता है और चुनाव के बाद जो सरकार आती है, वह पूर्ण बजट पेश करती है.

उद्योग जगत को मिले संकेत

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लेकिन शायद इस बार सरकार ऐसे किसी बंधन में नहीं बंधने वाली. पिछले कुछ हफ्तों से उद्योग चैंबर्स, कॉरपोरेट जगत, एकाउंटेंट्स, कंसल्टेंट्स आदि सरकार से मिलकर बजट पर अपनी विशलिस्ट या सलाह दे रहे हैं और इन बैठकों से लौटने वाले लोगों में यह राय बनती दिख रही है कि सरकार उसी तरह से पूर्ण बजट पेश करने जा रही है जैसा कि पिछले वर्षों में किया गया. उसी तरीके से बजट भाषण होगा, यानी इस बार भी बजट में सरकार लोगों को टैक्स स्लैब में बदलाव, नई स्कीम, छूट, नई घोषणाओं का तोहफा दे सकती है.

एक शीर्ष उद्योग चैंबर के प्रमुख कहते हैं, 'सरकार यह संकेत देने की कोशिश करेगी कि आप यदि फिर से इस सरकार को चुनेंगे तो जो कुछ बताया जा रहा है, वह मिलेगा.' तो सरकार इस बार बजट में कर रियायतों (जैसे इनकम टैक्स छूट की सीमा 5 लाख करने), उत्पाद शुल्क में बदलाव, नई योजनाओं और नई घोषणाओं पर जोर दे सकती है.

उद्योग चैंबर्स का कहना है कि तमाम सेक्टर के लोगों ने इस बार यह मानकर सरकार को अपनी सिफारिश नहीं भेजी थी कि चुनावी साल में अंतरिम बजट ही आएगा. लेकिन सरकार की तरफ से कुछ काफी उत्साह दिखाते हुए सिफारिशें मांगी गईं. उद्योग जगत इसके लिए तैयार नहीं था और कई उद्योग संगठनों को तो युद्ध स्तर पर रातोरात सिफारिशें तैयार करानी पड़ीं.

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इसके पहले अगर इतिहास पर गौर करें तो 1991 में चंद्रशेखर की सरकार में वित्त मंत्र रहे यशवंत सिन्हा ने लेखानुदान में सार्वजनिक कंपनियों के विनिवेश करने जैसी बड़ी घोषणा की थी. यही नहीं फरवरी, 2014 में यूपीए सरकार का अंतरिम बजट पेश करते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने भी कार, बाइक सहित कई चीजों पर उत्पाद शुल्क में कटौती की घोषणा की थी.

एक दिन पहले ही वित्त मंत्रालय ने बजट को आम जनता को समझाने के लिए 'नो योर बजट' शीर्षक से एक्सप्लेनर ट्वीट करना शुरू किया है. बजट क्या है? लेखानुदान क्या है? राजस्व बजट क्या है? आदि बातों की जानकारी इसमें दी जा रही है.

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